अजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से
क्या सुमित , तुम ऐसे हम सबको छोड़कर चले गए ? तुम्हारा बेजान जिस्म सामने पड़ा है और यकीं ही नहीं हो रहा कि तुम अब कभी नहीं उठोगे। उसी छत के नीचे फर्श पर लेटे हो तुम, जिस छत के नीचे और ऊपर हमने दर्जनों बार तुम्हारे ठहाके सुने हैं। तुम्हारी महफिलों के किरदार रहे हैं। गप्पें, किस्से , बहसें , झगड़े सब का गवाह रहा तुम्हारा ये घर , ये ड्रॉइंग रूम। तुम लंबे समय से बीमार थे और हम जैसे नालायक मित्र तुम्हारी हालत से बेखबर आज तब आये जब तुम गाली देते हुए ये भी नहीं कह सकते -साले तुम तो टाइम कीपर हो फिर इतनी देर से क्यों आ रहे हो?
आजतक में साथ काम करने के दौरान एक -दो बार लेट आने के कारण मैंने सुमित को टोका था तो उसने बेलौस अंदाज में मेरी बातों को हवा में उड़ाते हुए कहा – साले तुम पिछले जन्म में टाइम कीपर थे क्या ? तब से वो अक्सर मुझे टाइम कीपर कहता। दोस्ती की गर्माहट और तुम्हारा बेतकल्लुफ अंदाज ही था कि कभी हम औपचारिक नहीं रहे। अब तुम तो अपनी बीमारी से लड़ते हुए चले गए। हम अफसोस करने के लिए रह गए कि इतने दिनों से मिले क्यों नहीं ?
सुमित लंबे अरसे से TV TODAY ग्रुप का हिस्सा थे। उसके पहले जनसत्ता में रहे। अपना पुराना दोस्त ..हरदिल अजीज सुमित अब नहीं रहा। सुमित को हमने जनसत्ता के शानदार रिपोर्टर के तौर पर देखा। उसकी सैंकड़ों रिपोर्ट्स पढ़ी। आजतक में एक साल साथ काम किया। मेरा रास्ता आजतक से अलग हुआ। सुमित उसी संस्थान के दिल्ली आजतक चैनल में शिफ्ट हो गया और 2002 से अब तक TV TODAY का हिस्सा था। पहले लिवर की बीमारी फिर लिवर ट्रांसप्लांट की वजह से एक साल से छुट्टी पर था।
दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से
सुमित मिश्रा, आजतक के पुराने साथी। छद्म मीडिया के दौर में एक सच्चे पत्रकार और इंसान । उनके भाई, फ़िल्म अभिनेता संजय मिश्रा के क़िस्सों से बॉलीवुड के बारे में बेहद इन्साइड इनफ़ारमेशन मिलती थीं। संजय और सुमित की अंडरस्टैंडिंग का भी जवाब नहीं था। अक्सर सुमित की कलाई पर संजय की गिफ़्ट की हुई कोई बढ़िया घड़ी देखनी को मिलती, और फिर चर्चा संजय की अगली फ़िल्म के बारे में शुरू हो जाती। संजय की फ़िल्म से टॉपिक फ़िल्मी दुनिया और परदे के पीछे की घटनाओं पर शिफ़्ट हो जाता। सुमित जी की साहित्य, मीडिया और फ़िल्म पर अच्छी पकड़ रही। जितना भी कष्ट रहा हो उनके जीवन में, उन्होंने हमेशा उसे छिपाया और बातें अपनी निजी समस्याओं से उठकर की। वे कुछ दिनो से बीमार थे।
राजेश शर्मा के फेसबुक वॉल से
हमउम्र और मस्तमौला सुमित मिश्रा के जाने की खबर मिली तो खुद को रोक पाना मुश्किल था। साथ काम ना करने के बावजूद प्रेस क्लब समेत कई बार घंटों साथ गुज़ारे। उससे हमेशा एक पेशेवर नहीं बल्कि व्यक्तिगत रिश्ता रहा, नवभारत टाइम्स, मुंबई के अपने सहयोगी सुमंत मिश्रा की वजह से। यादें कई सारी हैं पर एक ख़ास अंदाज़ में उसका एक तरफ थोड़ा झुक कर खड़े होना और जेबों में हाथ होना वो छवि है,जो तुरंत उभर आती है। यह एक समानता रही है हम दोनों के बीच।
बहुत सालों से एक बात परेशान करती आई है कि लोग RIP का इस्तेमाल क्यों करते हैं। ज़िंदादिल सुमित की ना आदत थी और ना फितरत कि वो आराम से बैठें। इस बात का वो तब भी बुरा नहीं मानते और अब भी नहीं मानेंगे कि उन्हें Rest In Peace की कोई ज़रूरत नहीं है। बंधु! जल्दी वापस आओ। जब देश में, दुनिया में, किसी कल्पित दुनिया में, तुम्हारे मन, मस्तिष्क और आत्मा को peace मुहैया ही नहीं है तो rest कर भी नहीं सकते तुम! यह तुम्हारा मूल स्वभाव रहा ही नहीं कभी। इतना जानने का दावा मैं बेहिचक कर सकता हूं।
मिहिर रंजन के फेसबुक वॉल से
टीवी में गिनती के वरिष्ठ सहयोगी हैं या रहे, जिन्हें मैंने कभी गुस्से में या हाइपर होते नहीं देखा। आप उन विरल लोगों में से एक हैं। थे नहीं लिखूंगा क्योंकि आप मेरे लिए कभी थे होने वाले नहीं। आपका इस तरीके से जाना खल गया है सर। ऐसी उम्मीद थी कि आप कुछ दिनों बाद पूरी तरह से फिट होकर वापस न्यूज रुम में लौट आएंगे पर नियति को मंजूर कुछ और था। अलविदा सुमित जी। आपकी याद हमेशा एक अच्छा, नेक, ईमानदार, मददगार और सहज इंसान बने की प्रेरणा देती रहेगी।