किसानों के खून-पसीने से उपजाई गयी फसल जब कौडियों के मोल बिकने लगे तो उनका दर्द समझना सब के लिए आसान नहीं होता। कभी-कभी जीवन में बहुत कुछ ऐसा देखने-सुनने को मिलता है जो अनुभव में काफी गहराई तक उतरने के बाबजूद अभिव्यक्ति के लिए काफी कठिन हो जाता है। पुरानी गंवयी कहावत अचानक याद आ जाती है-‘जा के पैर न फटे बेबाई सो का जाने पीड पराई।’ यहां मैं बात कर रहा हूं उन छोटे और सीमांत किसानों की, बड़े किसानों से हजार बारह सौ रूपये प्रति कठ्ठा सालाना पट्टे पर जमीन ले कर उन भूमिहीन मजदूरों की जो बड़े पैमाने पर इस इलाके में सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं ।इस तरह की खेती उनके लिए नकदी आमदनी का मुख्य स्रोत होता है। इसी आमदनी से वे अपनी जरूरतों, बच्चों की पढ़ाई, बीमारी का इलाज, कपडा-लत्ता, न्योता-पेहानी सहित अन्य फसलों की खेती का खर्च पूरा करते हैं । नोटबंदी के बाद छोटे मूल्य वाले नोटों की किल्लत से ग्रामीण क्षेत्रों के हाट-बाजारों में सब्जी का मार्केट अचानक धड़ाम हो जाने से जहां इन किसानों के सपने चकनाचूर हुए हैं वहां रब्बी की खेती के लिए खाद-बीज का जुगाड़ करना भी इनके लिए मुश्किल हो रहा है। छठ पर्व तक 25 से 30रूपये प्रति किलो बिकने वाली फूलगोभी 6 से 8 रूपये किलो, दस से पन्द्रह रूपये प्रतिकिलो का बैगन चार रुपये किलो और 15 से 20 रूपये प्रति पीस वाला कद्दू 5-7 रूपये पीस की दर से बिकने लगा है।
की बिक्री पर नोटबंदी का असर जानने के लिए मैंने इस इलाके की एक बडी़ सब्जी मंडी शर्फुद्दीनपुर का जायजा लिया । यहां काफी दूर-दूर से सब्जी उत्पादक अह सुबह प्रति दिन सब्जियां ले कर पहुंचते हैं ।गांवों से मंडी जानेवाली सडकों पर सब्जियों से लदी सवारियों का तांता सुबह से लग जाता है। लोग साईकिल, पिकप आदि पर सब्जी ढो कर मंडी मे लाते हैं जहां से व्यापारी सब्जी खरीद कर सुदूर क्षेत्रों मे पहुंचाते हें । बैगरा गांव के उमेश महतो अपनी मोटर साईकिल से 110 किलो फूलगोभी मंडी मे लाए हुए थे ।वह 770 रूपये में बिका । वे 10 कठ्ठा में इसकी खेती किए हुए हैं। तीन कठ्ठा छठ के समय 30 रूपये किलो की दर से बिक गया ।लेकिन सात कठ्ठा फंस गया।कुल लागत बीस हजार रुपया था।बड़ी मुश्किल से लागत पूंजी निकल सकी है ।
इसी गांव के सुकदेव चौधरी, रमेश महतो, सकल महतो, नंदकिशोर और रत्नेश महतो का भी यही हाल है। दो सौ रूपये किलो बिकने वाला हरा धनिया पत्ता 80 रूपये किलो बिका । रतनमनियां के मोहम्मद नयीम (60वर्ष) अपनी साईकिल पर 60 किलो बैगन लाए थे वह 240 में बिका । एक दिन की न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल सकी ।कुछ यही हाल विष्णुपुर मेहसी के वकील साह और सत्यनारायण सिंह सौा भी रहा ।इस मंडी मे प्रति दिन तीन से चार सौ टन सब्जी बिकती है।अधिकांश खरीददारों के पास छोटे नोट का अभाव था ।
यह हाल रहा बड़ी मंडी का। गांव के हाट में भी ऐसी ही स्थिति देखी जा रही है।कुछ किसानों ने बताया कि नवम्बर-दिसम्बर महीने मे सब्जियों के भाव मे हर साल कुछ गिरावट होती रही है लेकिन ऐसी स्थिति कभी नही हुई थी। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह कि शहरी उपभोक्ताओं को अब भी मंहगी कीमत पर सब्जी मिल रही है।इस मंदी का लाभ बिचौलिए उठा ले जा रहे हैं।जिसपर सब्जी उत्पादकों और उपभोक्ताओं का कोई वश नही है ।
ब्रह्मानंद ठाकुर/ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले । पेशे से शिक्षक फिलहाल मई 2012 में सेवानिवृत्व हो चुके हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने की ललक आज भी जागृत है । गांव में बदलाव पर गहरी पैठ रखते हैं और युवा पीढ़ी को गांव की विरासत से अवगत कराते रहते हैं ।