बिहार के किशनगंज जिले के टेढ़ागाछ प्रखंड से करीब 10 किलोमीटर अंदर बसा है सुशासन नगर । नाम सुनकर मन किया चलो इस गांव का जायजा लिया जाए । सोचा नाम सुशासन है तो विकास भी सुंदर होगा । लिहाजा प्रखंड मुख्यालय से जैसे ही गांव की सरहद पर पहुंचे तो पता चला हमारी चार चक्का गाड़ी आगे नहीं जा सकती,क्योंकि आगे कोई सड़क नहीं है । ये देखकर हमारी उत्सुकता और बढ़ गई क्योंकि जिस गांव में सड़क नहीं उसका नाम सुशासन कैसे पड़ा, जमीनी हकीकत जानने के लिए हम लोगों ने गाड़ी वहीं ड्रॉप की और पैदल गांव के सफर पर निकल पड़े । खेतों के बीच मेड़ के सहारे एक किलोमीटर पैदल चलते हुए ‘सुशासन नगर’ पहुंचा।
सुशासन नगर महादलितों का एक बड़ा टोला है, महादलितों की इस बस्ती में पहुंचने के लिये ना तो सड़क है न विकास की कोई योजना पहुंची है। आपको याद होगा, पिछ्ले दिनों नीतीश कुमार ने कई जगह कहा था बिहार से लालटेन की विदाई हो गयी। वो यह कहकर दो तरफा वार करते थे। एक तो अपनी उपलब्धियां गिनाते थे, दूसरा आरजेडी के चुनाव चिह्न पर व्यंग्य करते थे। मगर किशनगंज का सुशासन नगर लालटेन के भरोसे ही रौशन होता है। किशनगंज के टेढागाछ प्रखंड में ऐसे दर्जनों गांव हैं जहां आज भी बिजली एक सपना है। इनमें से किसी भी घर में बिजली कनेक्शन नहीं है। ये सभी लोग रौशनी के लिए ढिबरी या लालटेन पर निर्भर हैं। सीएम और पीएम का घर घर बिजली पहुंचाने का दावा यहां झूठ साबित हो रहा है।
सुशासन नगर के अलावा अंबाडी संथाली का आबादी टोला, चैनपुर बिहार का मुसहर टोली, खटिया टोली, मुस्लिम टोला खंडव र्खराडा, धबेली पंचायत के महादलित टोला, बिहार मुशहरी जैसे कई टोलों की यही कहानी है। इन टोलों में रहने वाली पांच हजार से अधिक की आबादी बिजली कमी से जूझ रही है।
आंदोलन के बाद भी नहीं मिली बिजली
सुशासन नगर के पंच सहदेव ऋषिदेव बताते हैं कि कई बार उन्होंने बिजली को लेकर आंदोलन भी किया, लेकिन हर घर बिजली का दावा करने वाली हमारी सरकारों की सौभाग्य योजना सुशासन नगर को रौशन नहीं कर सकी । बिजली के अलावा इस सुशासन नगर के लोग सड़क और अन्य योजनाओं के लाभ से भी वंचित हैं। सहदेव जी ने बताया कि स्कूल भी दूर है और सड़क कट जाने के कारण स्कूल जाने के दौरान उनके नाती की मौत हो भी गई।
सुशासन नगर के ही बालेश्वर ऋषिदेव कहते हैं, ‘मैं मजदूरी करता हूं, पढ़ा-लिखा नहीं हूं। मेरे बाप-दादा भी पढ़े लिखे नहीं थे और अब मेरा बेटा भी पढ़ नहीं पा रहा है। बिजली नहीं आएगी तो क्या विकास होगा?’
स्थानीय पत्रकार अबू फरहान छोटू इस मुद्दे को लेकर मुखर रहते हैं। उन्होंने बताया, ‘कई बार इस मुद्दे पर खबरें छापी लेकिन प्रशासन के कान में जूं नहीं रेंग रही। अब तो आलम यह है कि आजिज आकर लोगों ने अंधेरे को ही अपना नसीब मान लिया है।’
फाइलों में जगमग गांव, जमीन पर कायम हैं अंधेरा
केंद्र सरकार ने सौभाग्य योजना के तहत 31 मार्च तक देश के हर घर में बिजली पहुंचाने का दावा किया है। हालांकि पूर्व में सरकार ने 31 दिसंबर तक का लक्ष्य निर्धारित किया था। सौभाग्य योजना के लिए 16,320 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की गई थी। बिहार सरकार तो पहले से ही अपनी पीठ थपथपा रही है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार पिछले साल अक्टूबर में ही देश के उन आठ राज्यों में शामिल हो गया था, जिन्होंने सौ फीसदी घरों में बिजली पहुंचा दी, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। सुशासन टोला में ही सुशासन बाबू के सारे दावे धराशायी हो जाते हैं।
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पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। प्रभात खबर की संपादकीय टीम से इस्तीफा देकर इन दिनों बिहार में स्वतंत्र पत्रकारिता करने में मशगुल ।