‘सिसकियां लेता स्वर्ग ‘ पुस्तक के कश्मीरी मूल के हिन्दी लेखक डॉक्टर निदा नवाज बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान ग्रहण करने 25 नवम्बर को मुजफ्फरपुर आए। इस दौरान बदलाव प्रतिनिधि ब्रह्मानंद ठाकुर की उनसे लम्बी बातचीत हुई। उस साक्षात्कार का प्रथम भाग हम पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। प्रस्तुत है साक्षात्कार की दूसरी कड़ी।
बदलाव – आजादी के बाद से अब तक भारत की राजनीति में धारा 370 विवाद का कारण माना जाता रहा है। आप इसे किस रूप में देखते हैं ?
डॉक्टर निदा नवाज- इसे समझने के लिए भारत के साथ कश्मीर के विलय की तत्कालीन परिस्थितियों को समझने की जरूरत है। भारत के साथ कश्मीर का विलय होने से पहले वहां महाराज हरि सिंह का शासन था। उन्होंने 1925 में सत्ता संभाली थी और उस दौर में भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की जंग लड़ी जा रही थी। उसी दौर में जम्मू-कश्मीर के युवा नेता शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में वहां राजतंत्र की जगह लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष शुरु हुआ। इतिहास में इन बातों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तब कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि कश्मीर का भारत में विलय हुआ। इस विलय की शर्त यह थी कि सुरक्षा, संचार और विदेश नीति पर ही भारत का अधिकार होगा। अन्य मामलों में कश्मीर का अपना संविधान और उसका अपना झंडा होगा।
वास्तविकता यही है कि जब जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय बहुत जरूरी हो गया तभी इस काम को अंजाम देने के लिए धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार वहां की जनता को दिए गये। आज देखा जाए तो संविधान में इतना ज्यादा संशोधन हो चुका है कि धारा 370 खोखली हो चुकी है, बेमानी होकर रह गयी है। अब तो भारत में जो कानून बनता है वह कश्मीर में भी लागू होता है।
डॉक्टर निदा नवाज- देखिए, पिछले 30 वर्षों के दौरान कई बार फर्जी मुठभेड़ों को इसलिए भी अंजाम दिया गया कि इस नाम पर समय से पहले प्रमोशन प्राप्त किया जा सके। वीरता के पदक हासिल किए जाएं। दूसरी ओर आज तक आम कश्मीरी तक पहुंचने के लिए, उसकी नाराजगी को समझने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया। आतंकवादी तो आतंकवादी होते हैं। बर्बरता और आतंक फैलाना ही उनका काम है लेकिन कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों की ओर से भी ज्यादतियों के कई मामले सामने आए हैं। कट्टरवादियों की साजिशों और सियासी तिकड़मों के बीच कश्मीर की आवाम कुछ इस तरह फंस चुकी है कि उससे निकलना मुश्किल लगता है।
आतंकवाद लोगों को डरा-धमका कर अपना हित साधता है। जम्मू कश्मीर का मीडिया इसे मिलिटेंसी कहता, लिखता है, कश्मीर के बाहर उसे आतंकवाद कहा जाता है। इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान अपना हित साधने की कोशिश कर रहा है। हुर्रियत कांफ्रेंस पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी संगठन है जो कश्मीर की आजादी की बात तो करता है मगर दूसरी तरफ वो पाकिस्तान की जुबान बोलने लगता है। इस्लामिक कट्टरवादी दरअसल कश्मीर में इस्लामी शासन के समर्थक हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि आज दुनिया में धर्म के नाम पर किसी देश में शासन नहीं चलाया जा सकता।
बदलाव – अंतिम सवाल। क्या कारण है कि कश्मीर में सत्ता में आते ही जो दल भारत से वफादारी का राग अलापते हैं, वही सत्ता से बाहर होते ही भारत के विरुद्ध आग उगलने लगता है ?
डॉक्टर निदा नवाज- ऐसा उन दलों की प्रकृति में है। इससे उनका खुद का हित सधता है।अबतक जो भी पार्टी वहां की सरकार में रही है, केन्द्र में रही ,सत्ता से बाहर होते ही पाकिस्तान की वफादार हो गई।