नीलू अग्रवाल
विदा, विदा, विदा…अलविदा।
अब मिलेंगे नहीं
कभी नहीं
हमें है पता।हँसते हुए, फिर भी
देते हैं विदा।
तुम जाओ
यही नियति है।
वह आएगा
कुनकुनाता, गुनगुनाता
चुलबुलाता हुआ।
हर्षित, बना लेंगे उसे
गले का हार
वैसे ही,जैसे
तुमसे मिले थे पहली बार।
पर हाँ,
तुम्हारे दिए सबक
हमारी मुट्ठी में हैं
तो, हमारा भी चरण स्पर्श
कर लो स्वीकार!
नीलू अग्रवाल। नीलू ने हिंदी साहित्य से एमए और एमफिल की पढ़ाई की है। वो पटना यूनिवर्सिटी से ‘हिंदी के स्वातंत्र्योत्तर महिला उपन्यासकारों में मैत्रेयी पुष्पा का योगदान’ विषय पर शोध कर रही हैं।