तीन हफ्ते लंबी बाढ़ को भी मात दे रही है धान की यह नयी वेराइटी. बिहार के सीतामढ़ी जिले के रुन्नीसैदपुर प्रखंड के तिलक ताजपुर गांव में रहते हैं रामचंद्र पासवान. उम्र साठ के करीब हो गयी है, पिछले तीन-चार साल से दूसरे लोगों से जमीन लीज पर लेकर धान की खेती करते हैं. वे कहते हैं, महज चार-पांच साल पहले इस इलाके में कोई सावन-भादों में धान की बुआई करता था तो लोग पागल कहते थे. बागमती के किनारे बसे इस गांव में हर साल 15 से 20 दिन बाढ़ आनी तय है. ऐसे में धान लगाने का मतलब होता था बीज का पैसा भी गंवाना. कुछ लोग आश्विन महीने में धान की बुआई यह रिस्क लेकर करते थे कि अब बाढ़ का पानी नहीं आयेगा. मगर कई साल ऐसा भी होता कि दशहरा के समय में भी बाढ़ का पानी खेतों में घुस जाता और नये पौधों का सर्वनाश कर जाता.
मगर पिछले दो-तीन सालों से गांव में जोर-शोर से धान की खेती होने लगी है. ऐसा धान की नयी किस्म स्वर्णा सब वन की वजह से मुमकिन हुआ है, जो 17-18 दिन तक बाढ़ के पानी को झेलने में सक्षम है. रामचंद्र पासवान कहते हैं कि गांव में खेती का रकबा लगभग 4500 एकड़ का है और इसमें तीन हजार एकड़ पर धान की खेती होने लगी है. बाढ़ आये न आये, दो मन से एक क्विंटल प्रति कट्ठा की दर से उपज होती ही है. पहले आश्विन का धान अगर बच भी जाता था तो एक कट्ठा में 50 किलो से अधिक धान कभी नहीं होता था.
दरअसल पिछले चार-पांच सालों से बिहार के सीतामढ़ी और पश्चिमी चंपारण जिले के तिलक ताजपुर जैसे 40 गांवों में अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान(इरास) बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में धान की सुरक्षित खेती को लेकर प्रयोग कर रहा है. सालाना बाढ़ से प्रभावित उत्तर बिहार के कई जिलों में खास कर नदियों के करीब और तटबंधों के बीच फंसे गांव के लोगों के लिए इस प्रयोग की सफलता एक बड़ी खुशखबरी है. लगभग हर साल बाढ़ झेलने वाले ये इलाके खरीफ के मौसम में खेती करने की हिम्मत अमूमन नहीं करते थे. ऐसे ही किसानों की मदद के लिए इरास ने राजेंद्र कृषि विवि पूसा, बिहार कृषि विवि, सबौर, आइसीएआर, पटना और केवीके की मदद से धान की एक ऐसी किस्म को तैयार किया, जो 18 से 20 दिन तक बाढ़ के प्रकोप को झेल सके और इसके बाद भी किसानों को अच्छी पैदावार दे सके. इरास के राष्ट्रीय सलाहकार डॉ वीरेंद्र कुमार कहते हैं कि इसके लिए अपने देश की धान की किस्म स्वर्णा में फिलीपींस के सब वन वेराइटी के जीन को मिक्स किया है.
फिलीपींस भी इस तरह की परेशानियों को झेलता रहा है, इसलिए उसने सब वन वेराइटी को अपने देश की ऐसी ही परिस्थितियों के लिए तैयार किया था. सवर्णा और सब वन के संयोग से इस नयी वेराइटी स्वर्णा सब वन का जन्म हुआ. पहले इसे कृषि विवि में उगाया गया. अब एक अन्य एजेंसी सीआरएस की मदद से बिहार के गांवों में इसे उगाया जा रहा है. सीआरएस के क्षेत्रीय प्रमुख अजीत सिंह कहते हैं कि तीन-चार साल से पश्चिमी चंपारण और सीतामढ़ी के 40 गांवों में हो रही इसकी खेती के काफी बेहतर नतीजे सामने आये हैं. तिलक ताजपुर गांव की आशा सिंह कहती हैं कि एक बार 20 दिन तक पानी खेतों में ठहर गया, फिर भी धान की फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ.
उसी प्रखंड के रमनगरा गांव के लोग भी इस धान की खेती से काफी प्रसन्न हैं. गांव में सीआरएस की तरफ से एक ट्रैक्टर वाले किसान को सीड ड्रिल कम जीरो टिल मशीन उपलब्ध कराया गया है. इसके जरिये बिना जुताई के धान की सीधी बुआई की जाती है, जिससे किसानों को काफी बचत होती है. सीआरएस के राज्य प्रमुख अजीत कहते हैं कि सरकार द्वारा हर बाढ़ ग्रस्त इलाके में ब्लॉक स्तर पर स्वर्णा सब वन धान का बीज उपलब्ध कराया जा रहा है.
उत्तर बिहार के इलाके में तीस-चालीस साल से पहले पहले भी धान की ऐसी किस्में हुआ करती थीं. तिलक ताजपुर के एक वृद्ध किसान कहते हैं, पहले कदरगौड़ नाम की एक धान की किस्म हुआ करती थी. उसे हमलोग बाढ़ के दौरान ही लगाते थे. धान के बिचड़े के नीचे मिट्टी को गोल आकार में लगा देते थे और अगर खेत में दो फीट पानी भी हुआ तो उसे ऊपर से गिरा देते थे. जैसे ही वह जमीन छूता उसका लगना तय हो जाता. वे कहते हैं, वह धान पानी के भीतर ही बढ़ता और बहुत जल्द ऊपर आ जाता. अगर इस दौरान पानी बढ़े भी तो भी वह ऊपर बढ़ता रहता. उस धान के पौधे छह फीट लंबे तक हुआ करते थे. मगर उस खेती में पैदावार उतनी नहीं होती थी.
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।