बदलाव प्रतिनिधि, मुजफ्फरपुर
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर के प्रांगण में आगामी 19 सितंबर, 2023 से श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य तिलक की पुण्य स्मृति में एक भव्य और ऐतिहासिक ‘गणपति उत्सव’ का शुभारंभ किया जा रहा है, जो अगले दस दिनों तक निरंतर ज़ारी रहेगा। रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर स्थित गणपति उत्सव आयोजन-स्थल पर 18 सितंबर को आयोजित एक प्रेसवार्ता कार्यक्रम में राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली के अध्यक्ष नीरज कुमार ने यह जानकारी दी। उन्होंने इस अवसर पर गणपति-उत्सव के अंतर्गत लगातार दस दिनों तक आयोजित होने वाले भारतीय विद्या, कला, साहित्य एवं संस्कृति समागम के अंतर्गत प्रस्तुत किये जाने वाले विविधरंगी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का विस्तृत सूचीपत्र भी प्रेस और मीडिया के समक्ष ज़ारी किया।
प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने बताया कि लोकमान्य तिलक ने स्वराज्य के लिये राष्ट्रीय संघर्ष की शक्ति बढ़ाने और सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने के लिये 1893 में महाराष्ट्र के पुणे शहर में सर्वप्रथम सामूहिक रूप से गणपति उत्सव मनाने की शुरुआत की थी, जिसने देखते ही देखते स्वराज्य के लिये संघर्ष के एक राष्ट्रीय अभियान का स्वरूप ले लिया था। लोकमान्य तिलक की इसी महान विरासत से प्रेरणा लेकर राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली ने बिहार के मुजफ्फरपुर में हो रहे ‘स्वराज्य पर्व’ में पारंपरिक रीति से दसदिवसीय भव्य ‘गणपति उत्सव’ आयोजित करने का संकल्प लिया है। इस अवसर पर विशाल गणपति पंडाल, गणपति की विराट प्रतिमा की स्थापना, प्रतिदिन की पूजा-आरती और गणपति विसर्जन की सभी पारंपरिक रीतियों का पालन करने के साथ-साथ दस दिनों तक लगातार राष्ट्रीय पुस्तक मेला तथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समागम के विविधरंगी कार्यक्रम आयोजित होंगे, जिसमें केन्द्र और राज्य सरकार के माननीय मंत्रियों, प्रतिनिधियों के अलावा देश भर से सैकड़ों कलाकार, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, प्रकाशक एवं शिक्षक आदि भाग लेंगे।
नीरज कुमार ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान को रेखांकित करते हुए कहा कि 30 दिसम्बर 1916 को लखनऊ की सभा में तिलक जी ने ही सर्वप्रथम “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे” का ऐतिहासिक उद्घोष किया था, जिसकी प्रेरणा से भारतीय जनमानस स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ललकार उठा था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी रणभेरी बजायी, जिसकी अनुगूंज समूचे देश में कोने-कोने तक फैल गई थी।
लोकमान्य तिलक के योगदान की चर्चा करते हुए न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि तिलक जी को अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध ‘राष्ट्रीय आक्रोश का जन्मदाता’ और ‘भारतीय क्रांति का जनक’ माना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जन असंतोष प्रकट करने के जो अनूठे तरीके निकाले थे, ‘गणपति उत्सव’ और ‘शिवाजी उत्सव’ उनमें प्रमुख थे। देश में सबसे पहली बार सन् 1893 में महाराष्ट्र के पुणे में सार्वजनिक तौर पर तिलक जी द्वारा गणपति उत्सव मनाये जाने की शुरुआत की गयी। उस समय गणपति उत्सव धार्मिक कम और राष्ट्रीय पर्व ज्यादा था। बल्कि कहना चाहिए कि वह स्वराज्य के लिए समाज को जागृत करने वाला एक सामाजिक और सांस्कृतिक अभियान बन गया था।
प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ कवि और गणपति उत्सव आयोजन समिति के संयोजक संजय पंकज ने कहा कि लोकमान्य तिलक का संपूर्ण जीवन एक ‘कर्मयज्ञ’ था। इस कर्मयज्ञ का मुख्य उद्देश्य उस राष्ट्र को जगाना था, जो कुंभकर्णी निद्रा की स्थिति में था। अभूतपूर्व इच्छाशक्ति, परिश्रम और संगठन की असाधारण क्षमता का उपयोग कर उन्होंने राष्ट्र में एक नई चेतना का संचार करने का प्रयास किया। वे देश के पहले ऐसे प्रखर पत्रकार थे, जिन्हें पत्रकारिता के कारण तीन बार कारावास भोगना पड़ा था। तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जन जागृति की नयी पहल की थी और उन्हें भारत को दासता से मुक्त करने के लिये जनता के आह्वान का राष्ट्रीय मंच बना दिया था।
संजय पंकज ने मुजफ्फरपुर के साथ लोकमान्य तिलक के अत्यंत गहरे संबंध की चर्चा करते हुए कहा कि 30 अप्रैल, 1908 को बंगाल विभाजन का विरोध करते हुए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जब मुजफ्फरपुर में कोलकाता के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड पर बम फेंका था, तो इस घटना की प्रतिक्रिया में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की बेहद कड़ी आलोचना करते हुए तिलक जी ने अपनी चिर-परिचित आक्रामक भाषा में ‘केसरी’ में कई लेख लिखे थे। इन लेखों के कारण उन्हें राजद्रोह का दोषी ठहराया गया और छह साल के लिये कालेपानी की सज़ा के तहत मांडले जेल भेज दिया गया। बर्मा के मांडले जेल की अत्यंत यातनामय परिस्थितियों में ही लोकमान्य तिलक ने ‘श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अर्थात् कर्मयोगशास्त्र’ जैसे युगांतरकारी महत्व के ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की थी, जो स्वाधीनता आन्दोलन के दौर से लेकर आज तक करोड़ों देशवासियों का पथ-प्रदर्शन करता रहा है।
वरिष्ठ कवि संजय पंकज ने बताया कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति न्यास, दिल्ली लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मुंशी प्रेमचन्द एवं राष्ट्रकवि दिनकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने को अपना लक्ष्य बनाकर पिछले 32 वर्षों से निरंतर सांस्कृतिक भारत के निर्माण में संलग्न रहा है। इस कड़ी में बिहार के मुजफ्फरपुर में भव्य ‘गणपति उत्सव’ का दसदिवसीय आयोजन करने के राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास के संकल्प के पीछे राष्ट्रीय जागरण तथा स्वराज्य के लिये संघर्ष की प्रेरणा जगाने वाली लोकमान्य तिलक की इस महान विरासत को याद करने के साथ-साथ वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय एकता एवं सामूहिकता के प्रयासों को बल देना भी है, जिसके लिये न्यास कृतसंकल्प रहा है।
मुजफ्फरपुर के समाजसेवी और गणपति उत्सव के सह संयोजक अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने प्रेसवार्ता में यह जानकारी दी कि ‘गणपति उत्सव’ के दसदिवसीय आयोजन का शुभारंभ एवं उद्घाटन गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर मंगलवार 19 सितंबर, 2023 को प्रातः 11 बजे गुजरात के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और विचारक श्री केशुभाई देसाई के कर-कमलों से होगा, और इस समारोह में बिहार एवं देश के कई प्रमुख साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक एवं विद्यार्थी भाग लेंगे।
अविनाश तिरंगा ने बताया कि 19 सितंबर को गणपति उत्सव एवं स्वराज्य पर्व के उद्घाटन सत्र के बाद गणपति पंडाल में निर्मित पद्म विभूषण कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज कला संस्कृति मंच पर पंडित बिरजू महाराज द्वारा स्थापित कलाश्रम द्वारा उनकी प्रमुख शिष्या एवं सुप्रसिद्ध कत्थक कलाकार शाश्वती सेन के नेतृत्व एवं निर्देशन में विविधरंगी कत्थक नृत्य की भव्य प्रस्तुतियां होंगी, जिनका दर्शक होना मुजफ्फरपुर के कलाप्रेमी दर्शकों के लिये एक अविस्मरणीय अनुभव होगा।
कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज जी की प्रमुख शिष्या और कत्थक की विश्वप्रसिद्ध कलाकार शाश्वती सेन के बारे जानकारी देते हुए अविनाश तिरंगा ने बताया कि पंडित बिरजू महाराज की सबसे प्रमुख शिष्याओं में से एक शाश्वती सेन ने एक नृत्यांगना, शिक्षक, कोरियोग्राफर एवं लेखिका के रूप में अपने गुरु की विरासत को बेहतरीन तरीके से आगे बढ़ाया है।
उन्होंने खजुराहो महोत्सव, कुतुब महोत्सव, कोणार्क महोत्सव, ताज महोत्सव, रिम्पा महोत्सव, श्री कृष्ण गण सभा, डोवर लेन संगीत सम्मेलन, कालिदास समारोह और कई अन्य प्रतिष्ठित समारोहों में नृत्य प्रस्तुतियां दी हैं। प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, संस्कृति पुरस्कार, नृत्य चूड़ामणि, श्रृंगार मणि पुरस्कार, आलोचक अनुशंसा पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित शाश्वती सेन आज पंडित बिरजू महाराज की संस्था कलाश्रम की मुख्य प्रेरक शक्ति के रूप में जानी जाती हैं।
प्रेस वार्ता में आयोजन समिति के स्वागताध्यक्ष रघुनंदन प्रसाद सिंह उर्फ अमर बाबू ने कहा कि यह उत्सव मुजफ्फरपुर वासियों के लिए गौरव की बात है और इसमें एक-एक व्यक्ति की सहभागिता होगी।