पशुपति शर्मा
“हिंदुस्तान जितना खूबसूरत लोकतंत्र काग़जों पर है, उतना खूबसूरत लोकतंत्र ज़मीन पर नहीं दिखता। जबकि यूरोप के कई मुल्क ऐसे हैं जहां कोई लिखित संविधान नहीं है, जहां आज भी कहने को राजा-रानी सत्ता के सर्वोच्च पद के प्रतीक हैं, लेकिन वहां लोकतांत्रिक मूल्य कहीं ज्यादा विकसित और प्रयोग में हैं।” ये बात वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने ‘मुसाफिर हूं यारों’ नाम से आयोजित कार्यक्रम में कही। बदलाव ने वरिष्ठ पत्रकारों के साथ अनौपचारिक संवाद की शृंखला शुरू की है, और इसकी पहली कड़ी में ही उर्मिलेश उर्मिल ने युवा पत्रकारों को अपने सहज संवाद से उद्वेलित कर दिया।
कार्यक्रम की सूत्रधार जूली जयश्री ने सवाल किया कि आखिर आज के पत्रकारों की आवाज़ क्षीण क्यों होती जा रही है? उनका आत्मबल कमज़ोर क्यों पड़ता जा रहा है? इस पर उर्मिलेशजी ने कहा कि पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आज़ादी संविधान के आर्टिकल 19 के तहत ही मिली है, उन्हें आम आदमी से अलग कोई विशेष अधिकार नहीं मिला है। पत्रकारिता आइसोलेशन में बेहतर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों से ही पत्रकारों की वैचारिकी बना करती है। ये कोई जरूरी नहीं कि पत्रकार ऐसे आंदोलनों में बतौर एक्टिविस्ट सक्रिय हों, लेकिन आस-पास की घटनाओं से उनकी राजनीतिक-सामाजिक चेतना विकसित जरूर होती है। आप नक्सल आंदोलन, जेपी आंदोलन को लेकर सहमत-असहमत हो सकते हैं लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इस दौरान पत्रकारों की जो फौज थी, उनकी चेतना पर इन आंदोलनों का गहरा असर पड़ा।
उर्मिलेश ने बताया कि देश के पहले शहीद पत्रकार के तौर पर हम गणेश शंकर विद्यार्थी को याद करते हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता है कि 1857 के करीब अंग्रेजों ने अबुल वाकर नाम के पत्रकार को गोली मार दी थी। आज़ादी के आंदोलन के दौरान ज्यादातर बड़े नेताओं ने पत्रकारिता के जरिए आम जनता से संवाद बनाया। उन्होंने गांधी, नेहरू, भगत सिंह के पत्रकारीय लेखन का जिक्र करते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई। उन्होंने कहा कि रुलिंग एलिट क्लास आज़ादी के पहले आज के मुकाबले कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक था। बड़े राजनेताओं के बड़े सपने हुआ करते थे। कभी किसी लोकतंत्र का सपना ‘हिंदू राष्ट्र’ का निर्माण नहीं हो सकता। आज दुनिया के तमाम मुल्क शासन-प्रशासन में जाति और धर्म के बंधनों से मुक्ति की कामना कर रहे हैं। उन्होंने ईएमएस नंबूदरीपाद, वी एस अच्युतानंदन, मैरी राय जैसे कुछ नामों का जिक्र करते हुए कहा कि दलित उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाली शख्सियतों में ‘तथाकथित उच्च वर्ण’ के लोगों ने अहम भूमिका निभाई।
उर्मिलेश ने कॉरपोरेट मीडिया ऑनरशिप के बीच पत्रकारिता की गुंजाइश से जुड़े सवाल पर विस्तार से बातें रखीं। उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम मुल्कों में कॉरपोरट मीडिया ऑनरशिप है, लेकिन वहीं डायवर्सिटी है और पत्रकारों को कहीं ज्यादा आज़ादी नसीब है। उन्होंने कहा कि जिस आज़ादी के साथ अमेरिका मीडिया वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ अपनी बातें रख रहा है, वैसी आजादी हिंदुस्तान में पाने के लिए कॉरपोरेट मीडिया को ज्यादा ताकत जुटानी होगी। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में गठबंधन सरकारें ज्यादा मुफीद हैं। आज के हालात में ‘एकाधिकार विहीन’ सरकार ज्यादा कारगर होगी।
उर्मिलेश ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के इंडेक्स में भारत के 136 वें पायदान पर और असमानता के इंडेक्स में 135वें स्थान पर रहने को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। उर्मिलेशजी ने कार्यक्रम की शुरुआत में अपने सफ़र पर संक्षेप में बात रखी। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के संघर्ष और सपने की बात करने से ज्यादा उसकी वैचारिकी को समझना जरूरी है। उन्होंने युवा पत्रकारों से कहा कि मेन स्ट्रीम मीडिया के साथ ही उन्हें वैकल्पिक मीडिया के बारे में संजीदगी से सोचना चाहिए। रचनात्मकता की गुंजाइश वैकल्पिक मीडिया में कहीं ज़्यादा है। इस अनौपचारिक बातचीत में गौतम मयंक, शंभु झा, अमरेंद्र गौरव, सुनील कुमार, पशुपति शर्मा, संदीप शर्मा, जयंत सिन्हा, रवि किशोर श्रीवास्तव, सर्बानी शर्मा, अजय राणा, नीरज श्रीवास्तव और रवि भूषण भारतीय शरीक हुए।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।