ब्रह्मानंद ठाकुर
महान कथाकार प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। प्रेमचंद का युग भारतीय आजादी आंदोलन का युग रहा है। इस महान साहित्यकार ने आजादी के बाद एक ऐसे नये भारत के पुनर्निर्माण का सपना संजोया था जिसमें ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की परिकल्पना साकार हो सके। प्रेमचंद के जमाने मे भी आतंकवाद सिर उठाए हुए था। वे इस आतंकवाद को लेकर काफी चिंतित थे। तभी कलकत्ता ( वर्तमान कोलकाता ) में स्थानीय कुछ प्रबुद्ध नागरिकों की एक बैठक आतंकवाद मिटाने को लेकर बुलाई गई थी। उस बैठक में तय हुआ था कि आतंकवाद के सवाल पर जनता को संगठित करना बेहद जरूरी है। इस बैठक के बाद सितम्बर 1934 में मुंशी प्रेमचंद ने ‘आतंकवाद का उन्मूलन‘ शीर्षक से एक निबंध लिखा।यह निबंध अमृत राय के सम्पादन में प्रकाशित पुस्तक ‘विविध प्रसंग (प्रकाशक हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ) में संकलित है।
प्रेमचंद लिखते हैं –
“आतंकवाद को नष्ट करने के सम्बंध में विचार करने के लिए कलकत्ते में कुछ चुने हुए व्यक्तियों की एक सभा हुई थी। उसमें सर्वसम्मति से एक प्रार्थना पत्र तैयार किया गया है। जो सरकार के पास भेजा जाएगा। सभा करने वालों का अभिमत है कि जनता की राय को संगठित किए बिना आतंकवाद नष्ट नहीं किया जा सकता। साथ ही एक बात और महत्वपूर्ण कही गई, वह यह कि आतंकवाद का मूल कारण बेकारी है निस्सन्देह सभा की राय सोलहो आने सच है। ‘मरता क्या न करता‘। जब बंगाल का युवक अपना घर फूंककर उच्च शिक्षा के नाम पर बीए,
एमए पास करता है और उसे इस कठोर परिश्रम और सर्वस्व स्वाहा का फल बेकारी और अपनी साधारण से साधारण आवश्यकताओं को पूरा करने की असमर्थता में मिलता है तो उसे अपने जीवन से निराशा हो जाती है, वह पागल हो जाता है, उसका हृदय विद्रोह करने लगता है वह सोचता है- क्या करूं? जीवन कैसे बिताऊं ? क्या मुझे मेरे परिश्रम का यही फल मिलना चाहिए? मेरे हजारों रुपये बलिदान का पुरस्कार यही बेकारी है? वह आतंकवादी बन जाता हैः इसके सिवा उसके लिए जीवन बिताने का कोई मार्ग नहीं है। इस तरह बेकारी ही आतंकवाद का मूल कारण है। जब तक बंगाल सरकार बेरोजगार युवकों को काम नहीं देती , उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का साधन नहीं उपलब्ध कराती, तबतक वह चाहे जितने कठोर से कठैर और घातक कानून बना द्, कितना ही दमननीति से काम ले, आतंकवाद के शमन में सफल नहीं हो सकती।
आज भारतवर्ष के द्वारा समस्त यूरोप अपने खजाने भर रहा है, जापान अपनी जेबें गर्म कर रहा है। भारतीय बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। वे अपने ही देश में सुखी नहीं रह सकते। उनको परिश्रम करके जीवन बिताने का ठिकाना भी नहीं है। फिर वे क्यों न आतंकवादी बन जाएं, क्यों न विद्रोही हो जाएं? सरकार स्वयं उनको विद्रोही बनने का अवसर दे रही है। अगर वह सच्चे हृदय से चाहती है कि आतंकवाद नष्ट हो जाए तो जितना जल्द हो सके उसे उनकी बेरोजगारी का इलाज करना चाहिए। आतंकवाद के दूर करने का यही एक सच्चा मार्ग है। साभार- ‘विविध प्रसंग‘ से साभार