शिशु के जन्म के साथ ही अनावरित होता है एक विराट वैभव
तब जन्म लेती है इक माँ भी …
मौन और क्रंदन की भाषा जो बखूबी समझ जाती है ….
वो है “माँ ” …
पेशानी की सिलवटों को पढ़ने का हुनर जानती है जो ….
वो है “माँ “…
बच्चे की क्षुधा तृप्ति के लिये अपनी भूख जो इक मुस्कान मेँ छिपा जाती है…
वो है “माँ “…
वो जब सीने पर … किताब लिये …कभी आँख लग गयी हो …
तो चुपके से आकर सिरहाने जो तकिया लगा जाती है
वो है “माँ “…..
आपके आँखों की नमी की तफ़्सील जो जानती है …..
वो है “माँ “……
कटे अंगूठे से जो शरबत में निंबू बड़े इत्मीनान से निचोड़ती है ….
वो है “माँ “…..
स्वेटर की तरह जो रिश्तों की डोर बड़ी आसानी से बुन लेती है…..
वो है “माँ ” ……
हर दिन जो अपने वात्सल्य के नये आयाम दिखा जाती है जो …..
वो है “माँ ” …..
सर पर हाथ फेर कर जो मौत सा सुकून बख़्शती है…..
वो है “माँ ” …….
जिसका आँचल अंतरिक्ष से भी ज्यादा अनंतता लिये रहता है
वो है “माँ ” …….
जिसका आलिंगन मोक्ष की अनुभूति दे जाता है
वो है “माँ ” ….
शतशः नमन है नारी ह्रृदय में सन्निहित विशाल वात्सल्य को , उसकी पूर्णता को , उसके ईश्वरत्व को जिसको अल्फ़ाज़ों में समेटना मुम्किन नहीं है। … मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..!!!!!! …

सौरभ सुमन/तिलकामांझी विश्वविद्यालय के
पूर्ववर्ती छात्र/काफी शानदार इंसान।