आजकल #MeToo अभियान की चर्चा जोरों पर हैं । जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है ये मुहिम तेज होती जा रही है । एक तरफ इस मुहिम के जरिए वो लड़कियां सामने आ रही हैं जिनका किसी ना किसी रूप में शोषण किया गया । वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस मुहिम की आलोचना भी कर रहे हैं । जो भी हो लेकिन एक बात तो अच्छी है कि प्रोफेशनल लाइफ भी जिन मुश्किलों का सामना हर कोई करता रहा है, लड़का हो या लड़की, चाहे अनचाहे बॉसिज्म का शिकार होता ही है । मीटू मुहिम ने बॉवीवुड से लेकर मीडिया जगत के दिग्गजों को पोल खोलनी शुरू कर दी है । हो सकता है मीटू मुहिम के जरिए कुछ लोग किसी को बदनाम करने की साजिश कर रहे हों, लेकिन ऐसे मामले फिलहाल कम ही होंगे । शायद यही वजह है कि इस मसले पर ज्यादातर लोग कुछ भी कहने से कतरा रहे हों, लेकिन जो जिस प्रोफेशन में है उसके भीतर जो कुछ भी होता है उसे अच्छी तरह पता होता है । लिहाजा कुछ ऐसे मीडिया के महारथी और युवा पत्रकार हैं जो सोशल साइट पर इस मुहिम के साथ खुलकर खड़े नजर आ रहे हैं । ऐसे ही कुछ लोगों की फेसबुक टिप्पणी बदलाव पर पढ़िए ।
#MeToo मुहिम के खिलाफ अनाप-शनाप लिखने-बोलने और ऐसी लड़कियों पर अब क्यों बोला ? तब क्यों नहीं बोला? टाइप इल्जाम लगाने वाले एक बार धैर्य के साथ इस इल्जाम को पढ़ लें । धैर्य के साथ । फिर बताएं कि क्या उन्हें अब भी कोई शक है कि ऐसा होता रहा है ? उस जूनियर लड़की के पास चुप रह जाने की कई वजहें रही होंगी । आज अगर वो माहौल और मौका देखकर बोल रही है तो उसकी बात का वजन कम कैसे हो गया ? हां , अगर कोई लड़की झूठे और बेसिर पैर के आरोप लगाती है तो उसकी बात जरुर हो लेकिन हमारे बीच ऐसे व्याभिचारी बड़ी तादाद में हैं, ये तो मानना ही होगा।
सुनो लड़कियों दफ्तरों में बैठे ‘दिलफेंक मजनुओं’ के श्लील/अश्लील और प्रणय निवेदन वाले संदेशों को भी सार्वजनिक करो ..डोरे डालने के क्रम में किसी भी हद तक जाने वाले ऐसे मजनूं अगर बेनकाब होने लगें तो संभावित मजनूं और नवोदित मजनूं ( पेशेवर ) सतर्क रहेंगे। मैं यहां प्रेम या प्रेम की अभिव्यक्ति की बात नहीं कर रहा, उनकी बात कर रहा जिनके लिए ‘प्रेम’ का नाटक रोज़मर्रा का हिस्सा है । आज इसपे दिल आया, कल उसपे दिल आया । गोया दिल न हुआ गल्ले की दुकान हो। ऐसे छलिया टाइप के लोग भी आज बहुत डरे होंगे ,डरना भी चाहिए। ऐसे लोग भी व्हाट्सएप संदेशों या sms से सॉफ्ट शुरुआत करके जब प्रतिरोध का सामना करते हैं तो अपने को जबारिया प्रेम में बताकर किसी भी हद तक जाने लगते हैं। एमजे अकबर ने भी उस लड़की के साथ पहले ज़बरदस्ती की, जब उसने प्रतिवाद किया तो प्रेम की दुहाई देने लगे। दो लोगों की रजामंदी से बनने वाले रिश्तों की बात मैं नहीं कर रहा , मैं हर लड़की पर लहालोट होकर उनमें अपना शिकार देखने वाले पेशेवर प्रेमियों की बात कर रहा हूँ।ये लोग हर नई और जूनियर लड़की पर स्वभावतः लहालोट हो जाते हैं । कभी मददगार बनने के नाम पर, कभी उसे आगे बढ़ाने के नाम पर, कभी अपने अकेले होने के नाम पर मजनू के टीले पर घसीटना चाहते हैं । फेल हुए तो और भी हथकंडे आजमाते हैं । खोलो ऐसों की पोल।
‘प्रोफेशन’ के अंदर उनके ज्यादातर समकालीन उनकी इन ‘खास आदतों’ के बारे में अच्छी तरह जानते रहे हैं! पर ‘प्रोफेशन के शहंशाह’ पर उंगली कौन उठाए! तब लोग खामोश रहे! अब तरह-तरह के खुलासे हो रहे हैं! प्रबंधन की नजर में तब ‘कामयाब’ के सारे गुनाह माफ! ‘भुक्तभोगियों’ की भी उस वक्त कोई आवाज आमतौर पर नहीं सुनी गई! संभव है, तनुश्री दत्ता से इन सबको प्रेरणा मिली हो! पता नहीं ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ के नारों वाली सरकार में उनकी ‘राजकीय हैसियत’ का अब क्या होगा!
इस बार मीटू अभियान चल निकला और असर दिखाने लगा है। सवाल कई कथित रूप से समझदार लोगों के दागदार होने का नहीं है। मसला यह है कि लोग अब समझने और सचेत होने लगे हैं कि स्त्रियों के मामले में उनकी हद क्या है। यह अभियान उसी हद को अपने तरीके से परिभाषित कर रहा है।
लोग कहते हैं मैं महिला पक्ष के साथ ही रहती हूँ लेकिन एक बात कहना चाहती हूँ की #metoo केम्पैंन में वो महिलायें भी बोलें जिन्होंने महिला होने का फ़ायदा लेकर तरक़्क़ी की सीढ़ी चढ़ने की कोशिश की क्यूँकि मुझे ऐसी महिलाओं से ज़्यादा दिक्कत महसूस हुई । आदमी को जवाब देना जानती हूँ लेकिन औरत को कैसे दूँ ? जिनकी वजह से कई लड़कियाँ जीवन में आगे नही बढ़ पाई ।
मै विनाता यादव जी की बातों से पूर्सण हमत हूं।