बदलाव प्रतिनिधि
ग़ाजियाबाद के वैशाली में आज बदलाव के साथियों की कृषि क्षेत्र के कुछ शोधकर्ताओं के साथ मीटिंग हुई।आशुतोष कुमार, चंद्रेशखर सिंह और रूचा बिहार, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में फिलहाल कुछ गांवों में कृषि क्षेत्र में काम करने की योजना बना रहे हैं। इन तीनों साथियों ने बताया कि फिलहाल कृषि, रोजगार और शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र से शुरुआत की जाएगी। मीटिंग के दौरान शिक्षा और उद्योग जगत के फासले को दूर करने का सवाल उठा तो वहीं सरकारी नीतियों और गांवों में उनके लागू किए जाने की रणनीति की खामियां भी शोधकर्ताओं ने उजागर की।
चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि गांवों में जनजागरुकता के लिए अभियान चलाने की जरूरत है। गांवों में लोगों को कई योजनाओं के बारे में पता ही नहीं है। सरकार ने कई योजनाएं तो शुरू की हैं लेकिन लोगों तक वो कैसे पहुंचे, या लोग इसका फायदा कैसे उठाएं ये एक बड़ा सवाल बना हुआ है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां प्रो-फार्मर न हो कर प्रो-कंज्यूमर हैं, जिससे किसानों के हितों की बड़ी अनदेखी हो रही है। खाद्यान्न की कीमत बढ़ते ही मीडिया में हो हल्ला मचना शुरू हो जाता है, जबकि किसी मीडिया में ये सवाल कम ही नजर आते हैं कि किसानों को उनकी लागत भी मिल पा रही है या नहीं।
आशुतोष शर्मा ने मुद्रा बैंक, स्किल डेवलपमेंट जैसे कार्यक्रमों की चर्चा की। उनकी माने तो जो चीजें अधिकार के तौर पर गांव के लोगों को मिलनी चाहिए, उसके लिए भी उन्हें मिन्नतें करनी पड़ रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मिट्टी की जांच के जो कागजी दावे हैं और जो जमीनी हकीकत है, उसमें काफी फासला है। ज्यादातर जगहों पर सॉयल टेस्टिंग के नाम पर जेनरिक सूचना दी जा रही है, जो किसानों के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं है। उन्होंने कहा कि गांवों में मोबाइल सॉयल टेस्टिंग लैब होनी चाहिए। रूचा ने कहा कि सॉयल टेस्टिंग की तकनीक बहुत महंगी नहीं है, इसका प्रशिक्षण गांव के लोगों को ही दिया जा सकता है। ये रोजगार का भी एक जरिया बन सकता है।
आशुतोष शर्मा ने कहा कि गांवों के वो बच्चे जो बड़े संस्थानों में पढ़ रहे हैं, गर्मी की छुट्टियों में उनके साथ मिलकर स्पेशल शॉर्ट टर्म ओरिएंटेशन कोर्सेस चलाए जा सकते हैं। गांवों में रहने वाले बच्चों को इससे काफी प्रेरणा मिलेगी और वो खुद के करियर को लेकर कुछ फैसले कर सकते हैं। इसके साथ ही आशुतोष शर्मा ने शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग कोर्सेस का खाका तैयार करने की जरूरत बताई।
रूचा ने महाराष्ट्र में अपने गांव मिराज में युवाओं की प्रवृत्ति का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस इलाके में ज्यादातर लोग मेडिकल क्षेत्र में जाते हैं। इसके अलावा बाकी कोर्सेस या विषयों को लेकर उनमें ओरियेंटेशन की कमी है। अपने इलाके के बच्चों के साथ उन्हें एक बार बातचीत करने का मौका मिला। रूचा ने बच्चों को करियर के तमाम दूसरे विकल्पों के बारे में बताया। रूचा ने सुझाव दिया कि ऐसे ओरियेंटेशन वर्कशॉप गांवों में लगातार किए जा सकते हैं।
आशुतोष, रिचा और चंद्रशेखर साथियों के साथ मिलकर एक संस्था बनाने के बारे में भी सोच रहे हैं। उनका मकसद समाज में कुछ सार्थक हस्तक्षेप करने का है। वो चाहते हैं कि समाज में बदलाव आए। इसके लिए जहां एक तरफ कृषि क्षेत्र को लेकर ये समूह कई तरह के विकल्पों पर विचार कर रहा है तो वहीं सामाजिक-सांस्कृतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश भी तलाश रहा है।
sarahniya Soch .pahal ka intzar rahenge .shubhkamna