संसद भवन

संसद भवन

पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार

मैं हूँ संसद भवन
जी मेरा ही
जन्मोत्सव है
ईंट-गारे से गढ़
दिया गया हूं
भव्य, दिव्य और विशाल

मुझे देखो, पल भर निहारो
थोड़ा ठहरो
थोड़ा वक़्त
मेरे साथ गुजारो
पसरने दो मुझे
खुले आसमाँ में
ले लो मुझे
अपने आग़ोश में

मैं आपका
संसद भवन
मैं ईंट गारे की
इमारत भर नहीं हूं
जम्हूरियत का
एक एहसास हूं
लोक की साँस हूँ
जन-जन का विश्वास हूँ

मैं संसद भवन हूँ
थोड़ा पक्ष का हूँ
थोड़ा विपक्ष का हूँ
थोड़ा सा निष्पक्ष का भी हूँ
थोड़ा-थोड़ा सब में हूँ
जो ढूँढोगे तो पाओगे
रूठोगे तो याद आओगे
रूठों को मनाऊंगा
भटकों को बुलाऊंगा
करूँगा बातें
मेरी तुम्हारी
थोड़ी बातें गाँव की
थोड़ी बातें शहर की
थोड़ी बातें विरोध की
थोड़ी बातें प्रतिरोध की
सुनूँगा सारी बातें
कुछ तुम कहना-सुनना
कुछ मैं भी कहूँ तो सुन लेना
कहते-सुनते बुने लेंगे
अपना हिन्दुस्तान!

आओ
ना तुम्हारा ही इंतज़ार है
मैंने नहीं कहा बस सरकार
मुझे तो जन-जन की दरकार
मैं तो जन-जन की पुकार
मैं तो जन-जन की हुंकार
आओ ना
मेरा जन्मोत्सव है
आओ ना गाएँ सोहर
आओ न गाएँ नवगीत
आओ ना आज कह दें
हिन्द घर आनंद भयो
जय-जय हिन्दुस्तान की! –

पशुपति शर्मा