पुष्यमित्र
कहानी मुजफ्फरपुर के एक गांव की, जहां की औरतों का जीवन शराब ने तबाह कर दिया है । घर-घर में पहुंच गया है शराब, दर्जन भर लोगों की हो चुकी है मौत, कई मौत की कगार पर, फिर नहीं छूटता पीना। शराबबंदी के बाद है ताड़ी पर निगाह। मड़वन खुर्द गांव में अपने बरामदे पर बैठी मीना देवी अपने पति की शराब की लत की कथा सुनाते-सुनाते अचानक कह बैठती हैं, अगर वे सही चीज पीते और समय से पीते तो मैं खुद उन्हें पैग बना कर देती। उनकी यह बात सुनकर आसपास में बैठी महिलाएं अपनी आंखें पोछने लगती हैं। 45 साल की मीना देवी जिनका रुझान इन दिनों अध्यात्म की तरफ हो गया है, उनके मुंह से ऐसी बातें सुनना अप्रत्याशित था। वहां बैठी लालपरी देवी, जो वार्ड सदस्य भी हैं और गांव में कई सालों से चल रहे शराबबंदी आंदोलन की अगुआ भी हैं, कहती हैं- “यही है औरत की जिनगी (जिंदगी)”। इनके पति ने पांच साल में 5-6 बीघा जमीन शराब की लत में बेच दिया, सुबह पांच बजे ही उठ कर पीने बैठ जाते हैं और जब तक जगे रहते हैं, पीते रहते हैं। मार-पीट, गाली-गलौज क्या-क्या नहीं किया इनके साथ। एक बार तो खंती (लोहे का बरमा) ही इन पर फेंक दिया था, किस्मत अच्छी थी, जो ये बच गयीं। और आज ये कह रही हैं, सही शराब पीते और समय से पीते तो पैग बना कर भी देतीं।
यह सिर्फ मीना देवी की कहानी नहीं है, मड़वन खुर्द गांव के कई घरों की कहानी है। लालपरी देवी बताती हैं कि एक हजार घरों की इस बस्ती में 200 घर जरूर ऐसे होंगे जहां शराब कोई न कोई सदस्य शराब का आदी है। शराब पीने की लत की वजह से 10-12 लोगों की मौत हो चुकी है। 2-3 लोग अभी भी गंभीर स्थिति में हैं। किसी का लीवर फेल है तो किसी का फेफड़ा डैमेज हो गया है। मगर फिर भी लोग सुबोधवा और रंथी एक्सप्रेस के नाम से मशहूर देशी शराब को पीना नहीं छोड़ रहे।
गांव की सरस्वती देवी के पति महेश साह रिक्शा चलाते हैं। वे बताती हैं, कुछ साल पहले तक महेश साह को शराब पीने की भीषण लत थी। जो दिन में सौ-पचास कमाते थे, दारू में उड़ा देते थे। घर में एक पैसा नहीं देते। मांगने पर मार-पीट करते थे। तीन लड़के और दो लड़की वाले घर में बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो चौपट हो ही गयी, घर चलाना मुश्किल हो गया। ऐसे में उन्हें बाजार में नास्ते का दुकान खोलना पड़ा। 5-6 साल पहले बीमार पड़े तो लोकल डॉक्टर लोग कह दिया कि घर ले जाइये, अब बचना मुश्किल है। मगर हम पैसा कर्जा लेकर पटना चले गये। वहां किसी तरह इलाज हुआ और बच कर आये। तब से दारू छोड़ दिये हैं। मगर शरीर खतम हो गया। किसी काम के नहीं रहे हैं।
लालपरी देवी बताती हैं कि मड़वन प्रखंड मुख्यालय के आसपास देसी दारू की भट्ठियां संचालित होती हैं। इन भट्ठियों ने इलाके के मरदों की आदत खराब कर दी है। ज्यादातर लोग दिन भर मेहनत मजूरी करने के बाद इन भट्ठियों की दारू चढ़ा कर ही घर लौटते हैं। और अगर घर में कोई औरत पूछ दे कि दिन भर में क्या कमाये, कमा तो घर क्या लाये। फिर उसकी शामत नहीं। इनमें से कई लोगों को ऐसा चस्का लगा है कि सुबह होते ही शुरू हो जाते हैं। उनका घर-बार सब बरबाद हो गया है। मीना देवी जैसी महिला का हंसता-खेलता परिवार भी इसी वजह से बरबाद हुआ है।
मीना देवी बताती हैं, कोई आता है, जेब में पांच हजार रुपये डाल देता है और एक कट्ठा जमीन लिखा लेता है। सबलोग इनकी कमजोरी समझ गये हैं। कभी हमारे पास 10-12 बीघा जमीन थी, आज एक बीघा जमीन भी नहीं है। कुछ तो घर बनाने में बिका, बाकी शराब के चक्कर में। लाचार होकर हमलोगों को अदालत जाकर रोक लगाना पड़ा। संपत्ति तो बच गयी, मगर घर के मुखिया को कैसे रास्ते पर लायें, समझ नहीं आता। घर में जवान बेटी है, बहू है, पोता-पोती है, मगर इन पर कोई फर्क नहीं। शराब नहीं मिलता है तो घर की चीजें बरबाद करने लगते हैं। इनकी वजह से घर में आज कोई भी चीज सलामत नहीं है। बेटा एक दर्जन कुरसियां खरीद कर लाया था, सब तोड़ दिये। महंगा कोट-पैंट था, फाड़ कर फेंक दिये।
क्या करें, कोई इलाज नहीं हैं. दवा-दारू भी कराया। टीवी पर देखे कि 3200 रुपये में कोई दवा आती है, वह भी मंगवाये। मगर कभी पीते थे, कभी फेंक देते थे। अब तो शराब बंद हो जायेगी, अब क्या करेंगे? इसके जवाब में मीना देवी कहती हैं, बोलते हैं-छोड़ देंगे। मगर उन्हें भरोसा नहीं है। पिछले पांच साल में छोड़ देने की बात ही उन्होंने कम से कम सौ बार कही है। कितनी दफा कसमें भी खायीं। मगर यह छूटने वाली चीज ही नहीं लगती। पिछले दिनों पी कर घर लौट रहे थे, कहीं गिर गये तो रीढ़ की हड्डियां टूट गयीं। छाती पर प्लास्टर है, मगर पीना नहीं छूट रहा है।
मीना देवी और सरस्वती देवी जैसी पीड़ित औरतों को एकजुट करके लालपरी देवी गांव में 2006 से ही लगातार शराबबंदी का आंदोलन चला रही हैं। कई बार अवैध दारू की भट्ठियां तोड़ चुकी हैं। मगर गांव में शराब बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा। परिवार बर्बाद हो जा रहे हैं, लोग बेमौत मर रहे हैं। मगर लत ऐसी है कि छूटती नहीं। अब शराबबंदी की खबर है तो गांव के लोगों की निगाह ताड़ी पर है। ताड़ और खजूर के हर पेड़ पर लबनी लटकी है, ताड़ी बेचने वाले अपनी दुकान का छप्पर ठीक करने में जुटे हैं। गांव की औरतें ताड़ी को बुरा नहीं मानती। कहती हैं, कम से कम ताड़ी पीने से नोकसान (नुकसान) नहीं होता, लीवर-किडनी नहीं गलता है। इसी बीच एक औरत कहती हैं, लेकिन मरद ताड़ी पिये या सुबोधवा (देसी दारू) घर में आकर हंगामा जो करता है, उसका क्या इलाज है?
(साभार-प्रभात ख़बर)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।