शिरीष खरे
“देश भर के गांवों में ऐसा स्कूल मिलना मुश्किल है।”– यह दावा है मादलमुठी शाला (सांगली, महाराष्ट्र) के मुख्य अध्यापक बालासाहेब नाथाजी आडके का। उन्हें अपनी बात पर भरोसा तब हुआ था, जब दो वर्ष पहले शोधकार्य से जुड़ी दिल्ली की एक टीम उनकी शाला का निरीक्षण करने आई थी। उस टीम ने देश भर के विभिन्न राज्यों के गांवों के स्कूलों का दौरा किया था। और उसके सदस्यों ने बताया था कि देश के बाकी ग्रामीण स्कूलों से मादलमुठी गांव का स्कूल अलग है। आखिर क्या खास है यहां?
असल में महाराष्ट्र के जिला सांगली से 60 किलोमीटर दूर का यह सरकारी स्कूल एक दर्शनीय स्थल भी है। पहली नजर में यहां का विशाल परिसर और बड़ा बागीचा आकर्षित तो करता है, लेकिन अलग-अलग समूह के लोग यहां कुछ और ही देखने के लिए आते हैं। मादलमुठी के इस स्कूल को वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन द्वारा ISO स्कूल घोषित किया गया है। इस स्कूल के विशाल परिसर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहली से सातवीं कक्षा के कुल 168 बच्चों के शिक्षण के लिए यहां सात अलग-अलग बड़े कमरे हैं। इसके अलावा तीन महिला और तीन पुरुष टीचर के लिए दो कमरे अलग हैं। पांच विशेष कक्ष अलग-अलग विषयों से संबंधित संग्रहालयों के लिए आरक्षित हैं। फिर वाचनालय अलग से है। खेल का मैदान और बगीचा तो है ही। दूसरे छोर पर लड़के-लड़कियों के लिए रिफ्रेश-रूम भी है।
आकर्षण के केंद्र हैं पांच अलग-अलग कक्षों में संचालित संग्रहालय। यूं तो यहां की सभी सात कक्षाओं के क्लास-रूम डिजिटल हैं, इसके बावजूद अलग से कंप्यूटर-रूम बना हुआ है। यह इस शाला का डिजिटल संग्रहालय है। इसमें बच्चे कंप्यूटर की विशेष कक्षा का अभ्यास करने के अलावा कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया का विकास-क्रम जानते हैं। इस शाला की स्थापना का वर्ष 1938 है, लिहाजा पिछले अस्सी वर्षों के स्थानीय अतीत का लेखा-जोखा यहां के इतिहास के संग्रहालय में दर्ज है। इसके साथ ही महाराष्ट्र और देश के इतिहास को फोटो-प्रदर्शनी के जरिए संजोया गया है।
यहां के बच्चे कई बार गणित विषय में प्रदेश में टॉप आए हैं। यहां एक गणित कक्ष भी है, जिसकी दीवारों पर गणित के गूढ़ सवालों को सुलझाने के उपाय हैं। साथ ही कक्ष के बीचोंबीच एक कंप्यूटर भी रखा गया है। इसमें हर कक्षा स्तर के गणित के सूत्र आसानी से सुलझाने के सुझाव दिए गए हैं। अगला कक्ष विज्ञान के संग्रहालय के लिए है। इसमें एक बड़ा फिल्म प्रोजेक्टर लगा हुआ है, जिसमें साइंस से संबंधित सामग्री है। साथ ही दुनिया भर के बड़े वैज्ञानिकों के पोस्टर और उनकी खोजों के बारे में जानकारियां हैं। साथ ही वैज्ञानिक उपकरण और प्रयोगशाला के लिए अलग सेक्शन भी है। यहां से एक रास्ता बगीचे से होकर बाहर के लिए जाता है। रास्ते में कई स्थानीय जीव-जंतुओं के मॉडल हैं।
यहीं अस्सी साल पुराना एक वाचनालय है, जिसमें एक हजार से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। स्कूल की दीवारों पर यहीं के शिक्षकों ने भित्ति-चित्र बनाए हैं। स्कूल की भौतिक व्यवस्था से अलग यहां के बच्चे कई बार परीक्षा-परिणाम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रदेश स्तर पर प्रथम स्थान हासिल कर चुके हैं। वहीं, सामाजिक योजना के तहत ‘पानी बचाओ’ जैसे अभियानों में तालाब सफाई से जुड़े कार्यों में श्रमदान करते हैं।
शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर , राजस्थान पत्रिका और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति पुणे में शोध कार्य में जुटे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।