फूस की झोपड़ी में छिपा कोसी का दर्द

फूस की झोपड़ी में छिपा कोसी का दर्द

फोटो- अजय कुमार

पुष्यमित्र

कोसी के तट पर बसे लोगों का दर्द वही समझ सकता है जो या तो वहां रहता हो या फिर वहां के लोगों को के दर्द की बीच कुछ पल गुजारे हों । पिछले दिनों कोसी के दर्द को अपने कैमरे में बखूबी कैद कर देश के सामने लाने वाले अजय कुमार ने कुछ तस्वीरें मुझे भेजीं एक ध्वस्त होते मिट्टी के घर की, दूसरी तैयार हो रहे नये घर की है । जाहिर है दोनों तसवीरें कोसी के उसी इलाके की हैं, जिस पर मैंने रेडियो कोसी का कैनवास रचा है। कोसी से आई इन तस्वीरों को समझने में देर नहीं लगी लिहाजा एक बार फिर तस्वीरों के जरिए कोसी के दर्द को आपसे साझा कर रहा हूं । ये जो फूस के झोपड़े हैं, वे ऐसे इसलिए नहीं हैं कि कोसी तटबंधों के बीच रहने वाले लोग बहुत गरीब हैं और उनके पास पक्का मकान बनवाने के पैसे नहीं है, बल्कि ऐसा इसलिए है कि लोग उस इलाके में पक्का मकान बनाने का रिस्क नहीं लेना चाहते, क्योंकि कोसी नदी हर साल दो तीन गांवों को अपने आगोश में ले लेती हैं। फिर गांव 10-15  साल बाद बाहर आते हैं, ऐसे में पक्का मकान बनाना एक रिस्की काम है।

फोटो- अजय कुमार

कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने 50 साल के टाइम स्पैन में 15 से 20 बार तक बासडीह बदला है, यानी एक जगह से उपट कर दूसरी जगह और दूसरी से तीसरी जगह गये हैं। नवहट्टा के पास तो मुझे एक ऐसा गांव मिला था जो नौ बार उजड़ चुका था। गांव का नाम अस्सै-केदली है। दो साल पहले मैं अजय जी के साथ एक ऐसे गांव गया था जो दो बार कोसी में समा चुका था, अब तीसरी बार कोसी के आगोश में है। गांव का नाम है, पिपरा बगेवा। इतना ही नहीं, इस पूरे इलाके में यातायात की व्यवस्था इतनी लचर है, सड़कें हैं नहीं हैं, यहां के लोगों को कभी नाव पर तो कभी पैदल चलना पड़ता है, ऐसे में भवन निर्माण सामग्रियों को इन गांवों तक ले जाना भी कम दुष्कर कार्य नहीं है। ऐसा नहीं कि ट्रक या ट्रैक्टर ईंट, बालू या छड़ सीधे आपके दरवाजे पर उतार दे। इसलिए लोगों ने पक्के मकान का शौक ही अब तक नहीं पाला है। लोग आज भी मिट्टी और फूस के घरों में रहना पसंद करते हैं।

 


PUSHYA PROFILE-1पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।