कश्मीर का ‘इस्लाम’ अलहदा है!

कश्मीर का ‘इस्लाम’ अलहदा है!

  धीरेंद्र पुंडीर

kashmir_marketबात वहीं से शुरू करता हूं जहां रूक गई थी। बातचीत बड़े बिजनेसमैन से हो रही थी और वो कश्मीर और बाकी देश के बीच की दूरी को अपनी समझ से बता रहे थे और ये समझ वो है जो झूठ, लालच और धर्म की एक कट्टर सोच के बीच बनी और उस पर एक झूठे इतिहास का मुलम्मा चढ़ने से बनी है।
“देेखिए साहब आप लोगो से अलग है कश्मीर। उसका कभी हिंदुस्तान से रिश्ता नहीं रहा है जैसा बाकी राज्यों का रहा है।
कैसे नहीं रहा है। ठीक है आप ये भी बता दो कि कब एक आजाद हिस्से के तौर पर रहे हो जिसका रिश्ता हिंदुस्तान से नहीं था।
हां जनाब अब आपने सही कहा हम लोग खुद-मुख्तार थे।
सभी थे 1947 से पहले के दौर में अंग्रेजों के सीधे कब्जे के अलावा बाकी तमाम राज्य रियासतों में थे जिसकी खुद मुख्तारी आप ही की तरह थी।
नहीं हमारी तरह नहीं थी हमको खरीदा और बेचा गया।
ये बहुत से राज्यों में हुआ जब राज्यों को जमींदारों को बेच दिया गया इसका बाकी हिस्से से रिश्ता न होना कैसे साबित होता है।
साहब हमारे राज्य को मुगलों ने धोखा दे कर हासिल किया था।
उसका मौजूदा हालात से क्या लेना देना है। बाकी राज्यों को भी कब्जा करके उनके राजाओं को हराकर या फिर मार कर ही हासिल किया गया था।
लेकिन हम लोग सीधे रूल में नहीं थे।
कैसे
पहले चक डॉयनेस्टी थी
हां उससे पहले मीर थी, उसी तरह दूसरे राज्यों में भी थी।
महज 1350 ईस्वी के बाद के इतिहास में भी आप के यहां कोई विदेशी शासक नहीं था फिर अलगाव या अलग होने की बात कहां से आ गई।
उससे पहले आप हिंदू स्टेट थे। पूरा देश हिंदू स्टेट था। फिर इस्लाम में दीक्षित हुआ तो भी देश के बहुत से हिस्सों में हुआ। लेकिन आप का ये दावा कही से ठहर नहीं रहा है कि आप बाकी देश से अलग थे।
नहीं हमारे यहां इस्लाम भी अलग है। और हमारा हिंदू धर्म भी अलग था।
सर ये कैसे हो गया।
देखों सर हमारे यहां का ईस्लाम ऋषि इस्लाम है खानकाहों के माध्यम से और सूफी संतों के माध्यम से आया है। और हमारे यहां हिंदू भी अलग थे मोनोलिथिक शैव संप्रदाय था हमारे यहां। ”
मुझे ऋषि इस्लाम पर याद आया कि इस शब्द का कश्मीरी अलगाववादी तब इस्तेमाल करते हैं, जब उनको बाकि तमाम इस्लामिक लोगों से सहानुभूति हासिल करने के बाद कुछ वापस देने का सवाल किया जाता है।

कश्मीर में ठहरा वक़्त-4

asiya-andrabiआशिया इंद्राबी से पिछली मुलाकात में बात हुई थी तो कुछ इसी तरह की कहानी से शुरू हुई थी। उसने कहा था कि मोदी सरकार पूरे देश में इस्लाम के खिलाफ काम कर रही है और हिंदुस्तान में इस्लाम के खिलाफ माहौल है। फिर उन साहिबा ने गुजरात का उदाहरण दिया कि किस तरह से वहां के अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोदी जी ने कार्रवाई की।
मैने उस वक्त एक सवाल किया था कि क्या हुर्रियत ये प्रस्ताव पास कर सकती है कि देश के दूसरे राज्यों के मुस्लिमों को कश्मीर में बसने की छूट है। वो यहां शादी कर सकते हैं। जमीन खरीद सकते हैं या फिर रिहाईशी हक हासिल कर सकते हैं, जो कश्मीर के बाशिंदों को हासिल है। इस पर मोहतरमा ने बहुत तल्खी से जवाब दिया था कि ऐसा कैसे हो सकता है। यहां का इस्लाम अलग है।
फिर आप बाकी इस्लाम के लोगों के नाम पर अत्याचारों का फर्जी पन्ना अपने नाटक में क्यों जोड़ते हैं? हालांकि उस वक्त भी आशिया इंद्राबी ने अपने पीछे पाकिस्तान का झंडा लगाया हुआ था। और उनका कहना था कि इस्लाम के नाम पर उनको पाकिस्तान में मिल जाने दिया जाए। और वो इसके लिए आखिरी दम तक लड़ते रहेंगे। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि पाकिस्तान का इस्लाम भी ऋषि इस्लाम है या नहीं।
खैर उस वक्त काफी बातें हुई थी और आशिया का एजेंडा समझना बहुत आसान था क्योंकि वो सीधी बात कर रही थी। लेकिन अपने एजेंडे के लिए किस तरह से धर्म का इस्तेमाल कर लोगों को बेवकूफ बनाने में लगी है वो साफ है। कहानी यहां इन साहब लोगों की हो रही है जो दुनिया को बेवकूफ समझ कर पाकिस्तान के एजेंडे को पर्दे के पीछे छिपा कर एक नई कहानी सामने रख रहे हैं।

बात तो काफी लंबी है लेकिन कुछ और बातों का जिक्र करना जरूरी लग रहा है। उनके पास इस बात का जवाब भी नहीं था कि एक झील के वाराहमुख से निकले पानी के सूख जाने से बनी हुई इस धरती का इतिहास राजतरंगिणी में बहुत करीने से लिखा हुआ है। और उस पर दुनिया के इतिहासकार यकीन करते हैं लेकिन कश्मीर के अलगाववादी नहीं। उनके पास इतिहास का कोई आईना कश्मीर के मुस्लिम धर्म में बदलने से पहले की सूरत नहीं दिखाता है। लिहाजा उन्होंने इतिहास को मनमर्जी से तोड़ना-मरोड़ना शुरू कर दिया। इस मुहिम में कश्मीर के कुछ बुद्धिवादी शामिल हैं, कुछ पत्रकार भी शामिल हैं। ऐसे महान पत्रकारों के बारे में भी काफी चर्चा हुई थी वो अलग से लिखूंगा। लेकिन मैं फिर भी एक कश्मीर विद्वान का जिक्र कर देता हूं उनकी किताब के कोट के साथ

kashmir :A Valley of Endless Sorrow -syed Tassadque Hussain
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Jammu Muslim were inspired by Islam In Punjab. That is why Jammu Islam had nothing in common with Rishi Islam in Kashmir. No Kashmiri speaking Muslim scholar has ever researched or explored the spread of Islam in Jammu region. Since 1846 onward there was a Marked polarization that created the identity of Kaskhmiri speaking people and ensured separateness of Jammu Islam and Rishi Islam of Kashmir.

खैर बात इतिहास तक जा पहुंची थी और वहां उन साहब के पास बताने के लिए कुछ नहीं था लिहाजा बात वापस वर्तमान पर आई। उन्होंने कहा कि मोदी साहब ने कहा था कि वो कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत पर बात करेंगे। तब हम साहब हाथ जोड़ कर कहते हैं कि आप कश्मीरियत और जम्हूरियत छोड़ दीजिए आप सिर्फ इंसानियत पर बात करिए। साहब क्या ये इंसानियत है कि आप पैलेट गन चला रहे हो। वो तो बेचारे पत्थर फेंक रहे और आप पैलेट चला रहे हो। फिर उन्होंने इस देश की इस मशहूर पत्रकार का नारा बताया कि क्या हरियाणा में आपने पैलेट चलाया। क्या आपने नक्सिलयों पर पैलेट चलाया।

kashmir-pallet-gunफिर 90 लोगों के मारे जाने की खबर सुनाई। मैने हरियाणा आंदोलन पर बताया कि तीन दिन में तीस लोगों की मौत हुई। पुलिस फायरिंग हुई। अलग-अलग जगहों पर कड़ी कार्रवाई हुई लेकिन वो किसी आजादी की मांग पर नहीं । लॉ एंड आर्डर का ऐसा मसला कहीं भी होता है तो उससे शुरूआती तरीकों से जैसे निबटा जाता है उसी तरह से निबटा गया। और रही बात पैलेट की कि अगर पैलेट का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो कश्मीर में मृतकों की संख्या काफी हो सकती थी। ये सिर्फ सरकार का आंकलन नहीं है अगर आप पत्रकार हैं और आपने श्रीनगर के डाऊनटाऊन में पत्थरबाजों के पथराव के बीच में रिपोर्टिंग की है तो इस बात को आसानी से समझ सकते हैं। फिर सवाल था कि बच्चों पर पैलेट चल रहे है।

बच्चे जुलूस में निकल क्यों रहे हैं। क्या मां बाप की जिम्मेदारी नहीं उनको ऐसे हिंसक प्रदर्शनों से महफूज रखें।
कैसे महफूज रखे यहां कौम की लड़ाई चल रही है बच्चे क्यों नहीं आएंगे। लेकिन बहुत से बच्चे तो घरों में खड़े थे। अपने घर के अंदर थे।
ये बात काफी आसानी से लिख दी गई कई खबरों में लेकिन पैलेट गन की मारक क्षमता और दूरी का कितना बड़ा रिश्ता है इसको किसी ने पड़ताल करने की कोशिश भी नहीं की। यकीनन पैलेट गन आंखों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है खास तौर से बहुत करीब होने पर लेकिन मारक तभी होती है जब आप गन के बेहद नजदीक हो। इतने नजदीक खिड़की में खड़ा बच्चा कैसे हो सकता है। इस सवाल का जवाब बहुत ही आसानी दे दिया कि घर में घुसकर मार रहे हैं। किसी के भी घर में घुसने की कोई इजाजत नहीं है जब तक कि किसी आतंकी के अंदर से फायर करने की खबर न हो। लेकिन कहने में क्या जाता है और एसओपी पढ़े बिना दिल्ली में बैठकर छापने में क्या जाता है।
बात किलिंग पर भी आई।

लेकिन जवाब मैने दिया मुजफ्फनगर, जैसे कई शहरों का उदाहरण भी दिया जहां एक एक एसएसपी ने लगभग साल में 100 एनकाउंटर का आंकड़ा छूने की कई बार मशक्कत की। और काफी एनकाउंटर पर लगातार सवालिया निशान रहे। दर्जनों लोगों की शिनाख्त तक नहीं हुई लेकिन वो खूंखार क्रिमिनल्स के साथ मुठभेड़ के नाम पर मारे गए। लेकिन वहां तो देश विऱोधी आंदोलन नहीं हुए।
अब बहस खत्म होने को जा रही थी तो उनसे पूछा कि हल क्या है।
हल है इंडिया कश्मीर को खाली करे। यहां यूएनओ की फोर्सेज रहें और हम आज़ाद रहें।
ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या आपको लगता है कि पाकिस्तान आपको आजाद रहने देगा।
वो हम देख लेंगे।
आप ये देख लेंगे और हम ये देख रहे है कि कश्मीर वैली में एक घंटे से भी कम समय में पाकिस्तान का झंडा होगा और उसके बाद नफरत से पैदा हुए उस मुल्क की निगाहें दिल्ली पर जा टिकेंगी। और फिर मै्ंने उनको सिर्फ ये ही कहा कि आपकी बातों से मुझे बहुत कुछ जानकारी मिली और वो सब बातें ऐसी ही दिखी जैसी कि एक फोटोग्राफर दोस्त ने शाम के वक्त राजपथ से ऐसी तस्वीर खींच कर शेयर की जिसमें डूबता हुुआ सूरज एक दोस्त की हथेली पर थमा हुआ था।

मैने कहा कि न सूरज छोटा हुआ और न हथेली बड़ी हुई बस वो फोटोग्राफर बड़ा हो गया जिसने ये खूबसूरत तस्वीर खींची। आपके केस में वो तमाम लोग बड़े हो गए जिन्होंने इतिहास को इस तरह तोड़-मरोड़ कर आप जैसे कुछ लोगों के दिमाग में पाकिस्तान का सपना बो दिया। लेकिन इससे हिंदुस्तान से कश्मीर अलग नहीं हो जाता है। हम लोगो ने हाथ मिलाए और मैं आगे की ओर चल दिया। इस बार आम लोगों से लंबी बातचीत की और उसके सच को भी सुना।


pundir-profileधीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है।