छोटू, मुन्नू, बबलू ये कुछ ऐसे नाम हैं जो हम गांव और शहरों में चाय की दुकान या फिर ढाबा जैसी जगहों पर नजर आ जाते हैं, हम आप बड़े आराम से उनसे चाय मंगाते हैं चाय की चुस्की लेते हैं और फिर चले जाते हैं। शायद हम यही सोचते हैं कि इनकी यही तकदीर है या फिर आपकी उनमें कोई दिलचस्पी नहीं होती। लेकिन जरा सोचिए अगर इन बच्चों को पढ़ाई-लिखाई का उचित मौका मिले तो ये बाल श्रमिक की जगह डॉक्टर या फिर इंजीनियर और आईएएस भी बनने की काबिलियत रखते हैं। बचपन बचाओ आंदोलन ने कुछ साल पहले ऐसे ही कुछ बच्चों को बाल श्रम से आजाद कर एक बेहतर शिक्षा और उचित माहौल दिया जिसकी बदौलत आज कुछ युवा इंजीनियर बनकर देश ही नहीं पूरी दुनिया में नाम कमा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्पीच देने के लिए इन्हें बुलाया जा रहा है।
इन्हीं बच्चों में से एक हैं शुभम, अमरलाल और मनन अंसारी जो जॉर्डन में पिछले दिनों आयोजित लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट में हिस्सा लेने पहुंचे । नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन की तरफ से आयोजित ये दूसरा समिट था जिसमें पूरी दुनिया से नोबल पुरस्कार विजेताओं के साथ बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाएं और करीब 200 युवाओं ने शिरकत की । ये ऐसे युवा हैं जो कभी बाल मजदूर रहे तो कभी किसी वजह से इनका बचपन अंधकार में डूबा रहा, लेकिन आज ये पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन समेत तमाम मसलों पर जगाने का काम कर रहे हैं।
भारत से जॉर्डन गए शुभम पहले बाल मजदूरी करते थे, लेकिन आज एक सफल इंजीनियर हैं । शुभम अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बताते हुए काफी भावुक हो गए । उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया खासकर एक बच्चे के रूप में मैं एक रोटी के लिए तरसता और अपने अस्तित्व के लिए निरंतर लड़ता रहा, लेकिन आज मैं अपने जैसे बच्चों के शोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहा हूं और उनके अधिकारों के लिए लड़ रहा हूं । इसलिए हर बच्चा खास होता है, बस जरूरत है तो उसे उसका हक दिलाने की ।
वहीं ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ अभियान चलाने वाली पेरू की खिताएत सालाजार ने कहा कि- आज परिवार के सदस्य ही बच्चों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं और स्कूलों में उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। आज उनका बचपन असुरक्षित है । ये भी बाल श्रम, यौन शोषण की तरह ही हिंसा का सामना कर रहे हैं। मैं इस समिट का हिस्सा बनने पर काफी खुश हूं क्योंकि ये समिट युवा पीढ़ी खासकर वंचित लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा देती है ।
इस समिट के मेजवान और जॉर्डन के राजकुमार अली बिन अल हुसैन ने कहा कि- आज संघर्ष, हिंसा, जलवायु परिवर्तन और गरीबी लाखों बच्चों को स्थान परिवर्तन के लिए मजबूर कर रही है । लाखों लोग घर परिवार छोड़कर पलायन को मजबूर हो रहे हैं । लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं लिहाजा ये सम्मेलन ऐसे मजबूर और बेबस लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा तो देता ही है साथ ही एक दीर्घकालिक और ठोस रणनीति तैयार करने के लिए ईमानदारी से प्रयास भी करता है ।
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि “मैं एक ऐसी दुनिया का सपना देखता हूं जहां जाने के लिए किसी बच्चे को पासपोर्ट या वीजा की जरूरत ना पड़े । अगर प्रद्यौगिकी, ज्ञान और पैसा बिना आश्रय या शरण की मांग के सीमापार स्वतंत्र रूप से जा सकता है तो हमारे बच्चे क्यों नहीं । मेरा सपना एक ऐसी दुनिया का है जहां हर सीमा, खजाना और दिल बच्चे के लिए हमेशा खुला रहे । ताकि सादगी, शुद्धता और माफी प्रत्येक की रोजमर्रा की जिंदगी ताकत बन जाए”
दरअसल लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन्स समिट को आयोजित करने के लिए नोबल शांति पुरस्कार विजेता तिमोर लेस्ते के पूर्व राष्ट्रपति जोस रोमोस की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया गया है । जिसमें जॉर्डन के राजकुमार अली बिन हुसैन, पनामा की प्रथम महिला लोरेना कैस्टिलो और हिंदुस्तान के नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी, मानवाधिकार कार्यकर्ता रॉबर्ट एफ केनेडी समेत संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष सलाहकार भी शामिल हैं । जो एक साथ मिलकर दुनियाभर के बच्चों का बचपन बचाने के लिए एक ठोस रणनीति तैयार करेंगे और उसपर अमल भी करेंगे ।