दयाशंकर मिश्र
जीसस ने जहां शिक्षा पाई, उस जगह का नाम इसेनीस था. इसेनीस का अर्थ है, धैर्य रखने वाले. इस परंपरा को मानने वाले लोग बहुत धैर्यवान थे. जीसस की पूरी शिक्षा में धैर्य बहुत महत्वपूर्ण है. धैर्यवान हुए बिना करुणा और प्रेम तक पहुंचना संभव नहीं.
जीवनसंवाद 970
वृक्ष, गहरी धूप सहने के बाद छाया देते हैं. एथलीट अभ्यास के हजारों घंटों के बाद ओलंपिक में प्रवेश कर पाते हैं. एक मौके की तलाश में लाखों खिलाड़ी जीवन के कभी न पाए जाने वाले समय को दांव पर लगाए रखते हैं. सब अपने-अपने हिस्से की तलाश में अपने दांव आजमाते रहते हैं. जीवन में सुख के लिए हम, सबसे अधिक दांव पर जीवन को ही लगाते हैं. कहते हैं, जीसस ने जहां से शिक्षा पाई, उस जगह का नाम इसेनीस था. इसेनीस का अर्थ है, धैर्य रखने वाले. इस परंपरा को मानने वाले लोग बहुत धैर्यवान थे. जीसस की पूरी शिक्षा में धैर्य बहुत महत्वपूर्ण है. धैर्यवान हुए बिना करुणा और प्रेम तक पहुंचना संभव नहीं. धैर्य के साथ ही प्रेम, करुणा और मनुष्यता का सफर संभव हो सकता है.
कोरोनाकाल में जीवन को भी इसेनीस सरीखे धैर्य की जरूरत है. कोरोना ने जीवन में विचित्र हलचल पैदा कर दी है. हमारा मनोबल कमजोर पड़ने लगा. धैर्यवान घबराने लगे. अनिश्चितता से ऐसे मन कमजोर पड़ने लगे जो स्वयं दूसरों के लिए धैर्य थे. यह कठिनतम परीक्षा का समय है. हमारे स्वभाव में जो बहुत सारा अहंकार था, स्वयं को दुनिया के सामने अभिव्यक्त करने की बेचैनी थी. दूसरों को सबक सिखाने की ज़िद थी, महामारी ने उसकी ओर गहरा संकेत किया. प्रकृति ने स्पष्ट कर दिया कि उसे बहुत देर तक हाशिए पर नहीं रखा जा सकता. व्यवस्था की लापरवाही ने संकट को और गहरा कर दिया. इसलिए यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी, नई सामाजिक सोच के जन्म लेने का भी समय है.
हम सब बहुत गहरी चिंता में हैं. भविष्य की अनिश्चितता अपनों की चिंता. कोरोना पॉजिटिव होने की चिंता. देखभाल और जीवन की चिंता. लेकिन इन सबके लिए हमारा टिके रहना जरूरी है.
पिछले दिनों कोरोना के कारण हमने अपने एक प्रियजन को खो दिया. बहुत कोशिशों के बाद भी उनको बचाया न जा सका. लेकिन इसमें कुछ हद तक उस धैर्य की कमी भी दिखी, जिसका ऊपर जिक्र हुआ. असल में चिकित्सा प्रक्रिया के दौरान उनका गुस्सा इतना अधिक बढ़ गया कि ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण करना संभव नहीं हुआ. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह गुस्सा ऐसे समय का है, जब चिकित्सा ली जा रही थी. हम सबके पूर्वगृह बहुत जटिल होते जा रहे हैं. वह अस्पताल में भी नहीं छूट पाते. इतने गंभीर समय में जब सब तरफ से निराशा बरस रही है, भीतर गहरी आशा और विश्वास सबसे जरूरी है. जीवन भर हम सब गुस्से का इसी तरह जिक्र और पीछा करते रहते हैं.
जीवन में क्रोध एक दो बार नहीं सैकड़ों हजारों बार आता-जाता रहता है. हम देखते रहते हैं, गुस्सा आता-जाता रहता है. हम पढ़ते हैं, गुस्सा नहीं करना चाहिए. कहते हैं कि गुस्सा नहीं आना चाहिए, लेकिन लाखों-करोड़ों बार यह आता-जाता रहता है! गुस्सा पढ़ने-लिखने से खत्म नहीं होता, दोहराने से खत्म नहीं होता.संभव है कि यह उस स्थिति में नियंत्रण हो जाए जब इसे हम आते हुए देख पाएं. दिमाग को सजगता के उस स्तर तक ले जाना मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं. इस संकट काल में मन का ख्याल बहुत जरूरी है. अच्छा मन बहुत सारी शक्ति देता है. ऊर्जा को नष्ट होने से बचाता है, धैर्य के घर में ही अच्छा मन रहता है. इस समय धैर्य से बढ़कर कुछ भी उपयोगी नहीं. अस्पतालों में पांव रखने की जगह नहीं. अपने साथियों को हम भटकते हुए देख रहे हैं. लेकिन ठीक इसी समय कुंभ से लेकर शादी-ब्याह में उमड़ रही भीड़ बताती है कि हम धैर्य को लेकर कितने लापरवाह हैं. जब तक धैर्य हमारे भीतर नहीं उतरेगा कोरोना से हमारी लड़ाई निरंतर मुश्किल बनी रहेगी.
ई-मेल : [email protected]
दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है।