दयाशंकर मिश्र
सबसे महत्व की चीज़ों को हम अक्सर आसानी से भुला देते हैं. ऐसे ही जीवन के दो तत्व प्रेम और स्नेहन सिमटते जा रहे थे, कोरोना ने जैसे इसमें पुनर्विचार की याचिका दायर कर दी! #जीवनसंवाद संकट और साथ !
जीवन संवाद- 968
कोरोना के कुछ ऐसे पहलुओं के बारे में भी बात होनी चाहिए, जिनसे हमारा ध्यान ऐसी चीजोंं की ओर गया, जहां से एकदम हट गया था. कुछ समय के लिए सही, लेकिन पर्यावरण का रंग बदला. हवा साफ हुई, हमने माना यह हमसे ही इतनी बदरंग हो गई थी. उससे भी कुछ कम दिनों के लिए, हम एक दूसरे के निकट आए. उससे भी कम दिनों में यह हुआ कि हमें यह पता चल गया कि एक दूसरे के साथ की कितनी अधिक जरूरत है. यह जो बात सबसे आखिर में समझ में आई, सबसे काम की है. अब यह और बात है कि सबसे महत्व की चीज़ों को हम आसानी से भुला देते हैं. ऐसे ही जीवन के दो तत्व प्रेम और स्नेहन सिमटते जा रहे थे, कोरोना ने जैसे इसमें पुनर्विचार की याचिका दायर कर दी! ध्यान से देखने पर हम पाएंगे कि जब-जब नैतिक मूल्यों से हम दूरी बनाते जाते हैं, साधारण संकट भी असाधारण दिखते हैं. नैतिकता गई, संकट प्रबल हुआ. नैतिकता बची है, संकट धीरे धीरे ढल जाएगा. यहां जानबूझकर संकट को टालना नहीं, ढलना लिखा गया. बहुत कम अवसर जीवन में आते हैं, जब संकट टलते हैंं, हां अगर नैतिकता की जड़ें गहरी हैं. प्रेम ने हाथ पकड़ा है, स्नेहन अच्छे से किया जाए तो धीरे -धीरे संकट ढलने लगता है. कड़ी धूप, धीरे-धीरे कम होती है. वृक्ष की छाया धूप का असर कम नहीं कर सकती, वह गुजरने वालों को स्नेहन से ढंक लेती है.
जीवन में नैतिकता भी एक छाया है. दूसरे के प्रति जब नैतिकता बरतना होता है, तो मुश्किल दिखता है.लेकिन जब कोई दूसरा हमारे लिए इसका उपयोग करता है, तभी इसका मूल्य आत्मा तक पहुंचता है. जीवन में अक्सर हम आर्थिक रूप से सफल समझे जाने वाले लोगों की ओर देखते रहते हैं. उनको बड़ा मानते रहते हैं. उनके निकट, समीप जाने का प्रयास करते हैं.ठीक, वैसे ही जैसे जंगल की यात्रा करते हुए, हमारी दृष्टि विशाल देवदार के पेड़ पर टिकी रहती है लेकिन जंगल की यात्रा करने वाले बताते हैं कि घास के छोटे-छोटे तिनकों की तरह विशाल देवदार का पेड़ ज्यादा प्यार से बात नहीं करता. जीवन में हम कितने बड़े हैं,इससे बहुत अधिक अंतर नहीं पड़ता. क्योंकि हम कितने ही बड़े क्योंं न हो जाएं कोई तो फिर भी बड़ा रहेगा. सबसे महत्वपूर्ण है कि जीवन किसके काम आया. कैसे काम आया! इसलिए जैसा बुद्ध ने कहा है,’सिर्फ वही श्रेष्ठ है, जो तेज़ हवा की आवाज़ को अपने प्यार से मधुर संगीत में बदल देता है’. ईमेल [email protected]