ब्रह्मानंद ठाकुर
बात बिहार में 1934 के भूकंप की है. रिक्टर पैमाने पर इस भूकंप की तीव्रता 8 थी लिहाजा बिहार और नेपाल में इस प्राकृतिक आपदा ने भयंकर तबाही मचाई थी। मुजफ्फरपुर में भी जनधन की व्यापक क्षति हुई थी। यहां भूकंप 15 जनवरी 1934 को लगभग 2:00 बजे दिन में आया था। महात्मा गांधी अप्रैल के अंतिम सप्ताह में भूकंप प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने मुजफ्फरपुर आए थे। कलम के जादूगर, पत्रकार, साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी बापू को आग्रह पूर्वक मुजफ्फरपुर से 28 किलोमीटर दूर अपने गांव बेनीपुर ले गए थे।
भूकंप में बेनीपुर और आस-पास के गांव में जनधन की व्यापक हानि हुई थी। भूकंप के बाद महामारी का दौर आया मनुष्य,जानवर, पालतू पशु उस महामारी में बेमौत मर रहे थे । पेड़ पौधे सूख रहे थे । तबाही के उस मंजर को देखकर बापू हतप्रभ रह गए थे।
कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ‘मील के पत्थर’ में उस दिन को याद करते हुए लिखते हैं- भूकंप से गांव पूरा तबाह हो चुका था। लोग बेमौत मर रहे थे मलेरिया से गांव की आबादी आधी रह गई थी। पशु भी बेमौत मर रहे थे। बापू जनाढ के निकट नाव में बैठकर बेनीपुर की विनाश लीला देखने निकल दिए। कुछ दूर जाने पर उन्होंने नाविक से झील के पानी के अंदर से थोड़ी मिट्टी निकालने को कहा। उसने पतवार से थोड़ी मिट्टी निकाली और बापू ने उस मिट्टी को हाथ में लेकर देखा और कहां इस मिट्टी में तो सोना पैदा हो सकता है। बेनीपुरी जी लिखते हैं कि दूसरे साल गांधी का कथन सार्थक हुआ फसलें खूब अच्छी हुई. गांव वालों को भूकंप की पीड़ा का गम थोड़ा कम हुआ. बापू ने ग्रामीणों को हिम्मत बढाई और इस आपदा का मिलजुल कर सामना करने को कहा गांव से लौटने के बाद जनाढ़ में बापू की ऐतिहासिक सभा हुई उन सभा स्थल को गांधी भूमि का नाम दिया गया .
25 वर्षों बाद इसी गांधी भूमि पर बागमती कॉलेज के भवन की नींव रखी गई। बेनीपुरी जी लिखते हैं कि गांधी गांव गांव तक शिक्षा का प्रसार चाहते थे। उन्हीं के सपनों को साकार करने के लिए जन सहयोग से बागमती कॉलेज का भवन बना जहां पर बापू की सभा हुई थी वहां एक ऊंचा मंच बनवाया गया। कॉलेज को मान्यता नहीं मिली। कुछ साल बाद कॉलेज का भवन और बापू की याद में बना वह मंच बागमती की बाढ़ में ध्वस्त हो गया। अब इस इलाके में गिनती के हैं कुछ लोग बचे हैं जो अपने जीवन में अपने गांव में महात्मा गांधी के आगमन की याद सहेजे हुए हैं। बापू ने बेनीपुर की जिस धरती को सोना उगलने वाला कहा था आज बागमती की बाढ़ से बंजर हो चुका है। लोग गांव से पलायन कर गए हैं। हरी-भरी फसलों के जगह झार झंकार, कास, गुरहन और बबूल के पेड़ नजर आते हैं।