संजय पंकज
मन फागुन फागुन हो गया!प्रेमिल सुधियाँ अंग लगी तोमन फागुन फागुन हो गया!भूले बिसरे आज अचानकजाने कैसे मीत मिले हैंकब से खोये- खोये थे जोसाँसों को वे गीत मिले हैं,गुंजित घड़ियांँ संग लगी तोमन फागुन फागुन हो गया!जहाँ कहीं भी जाऊँ मैं तोफूलों में घुल मिलता काँटाप्राणों में बहुरंग उतरतेएकान्त मिले या सन्नाटा,बेसुध परियाँ दंग लगी तोमन फागुन फागुन हो गया!छंद गंध की कुसुमित डोलीयह मौसम लेकर आया हैनयन नयन में उतरी होलीकंठ कंठ में रस उतराया है,प्रीत डगरिया तंग लगी तोमन फागुन फागुन हो गया!पंख लगा मधुरिम सपनों केसंग सभी के उड़ती चाहेंदेख किसी को उमड़ प्यार मेंहृदय जुड़ा खुल जाती बाँहें,दृग में कलियाँ चंग लगी तो
मन फागुन फागुन हो गया!
संजय पंकज। मुजफ्फरपुर के निवासी। बॉलीवुड में सक्रिय। पटकथा लेखक और गीतकार। एलएस कॉलेज मुजफ्फरपुर से उच्च शिक्षा। आपसे मोबाइल 9973977511 पर संपर्क कर सकते हैं।