पुष्यमित्र
वेलेंटाइन डे पर उन सभी प्रेमिकाओं को शुभकामनाएं जिन्होंने मेरे जीवन में कभी भी एक क्षण के लिये भी प्रेम की ऊष्मा को जगाया. इस दिल को 300 पीपीएम की स्पीड में धड़कना सिखाया. बचपन से लेकर आज तक 41 साल की उम्र तक कई स्त्रियों के प्रेम में मन डूबा. कुछ प्रेम ट्रेन की चार घंटे की यात्रा में खत्म हो गये तो कुछ प्रेम का नशा चार-छह महीने तक चला. कुछ यादें जीवन भर के लिए नत्थी हो गयीं. इनमें से कुछ प्रेम विवाह से पहले हुए, और यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं कि कुछ विवाह के बाद भी हुए. मैं उस ख्याल का इंसान नहीं हूं कि जो कहे, हम एक बार जीते हैं, एक बार मरते हैं और प्यार भी एक बार करते हैं. हम 33 कोटि देवी देवता और कृष्ण की 16 हजार प्रेमिकाओं वाले देश में पैदा हुए हैं. हम भले विवाह एक बार करें और उसे ताउम्र पूरी जिम्मेदारी और वफादारी से निभायें मगर प्रेम का रिस्क तो हजार बार उठाने के लिए तैयार हैं. क्योंकि मेरे लिए प्रेम का मतलब महज एक भाव है, एक अहसास है, एक भावोद्वेग है. प्रेम का मतलब विवाह, सहजीवन और संभोग नहीं है. बहुत मुमकिन है कि आप उस व्यक्ति के साथ विवाह, सहजीवन और संभोग कर रहे हों जिससे आपने पहले प्रेम किया था या बाद में प्रेम करने लगे. और आप जब विवाह करते हैं तो निश्चित तौर पर जिम्मेदारियों के बंधन में बंध जाते हैं. मगर हर प्रेम का अंजाम यही नहीं है. अगर किसी का सामीप्य, किसी की मुस्कुराहटें, किसी की बातें आपके जीवन में रस घोलती हैं, पल भर के लिए ही सही तो वह प्रेम है. और इस पर किसी का बस भी नहीं.
मैं अपने जीवनसाथी से भी यह उम्मीद नहीं करता कि वह प्रेम के मामले में एकनिष्ठ बनी रहे. वह जिंदगी के हर मोड़ पर अलग-अलग पुरुषों के सामीप्य से खुश हो, उनकी बातें उसके जीवन में खुशियां फैलाये. मुझे अच्छा लगेगा. फर्क तभी पड़ेगा जब मेरी गृहस्थी पर उसका फर्क पड़ेगा. गृहस्थी का ताना-बाना गड़बड़ायेगा. क्योंकि एक गृहस्थी से हजार दूसरी चीजें जुड़ी होती हैं, यह हमारी परंपरा की खूबसूरत व्यवस्था है. बुजुर्ग माता-पिता, बच्चे, साधु सन्यासी, गरीब और दूसरे कई लोगों का जीवन गृहस्थी की मजबूती से चलता है. इसी वजह से हमलोग विवाह को तोड़ने की हड़बड़ी नहीं करते. तलाक से दूर भागते हैं. हां, यह जरूर है कि विवाह और गृहस्थी निभाने के चक्कर में हमने प्रेम का कबाड़ा कर लिया. हमारी दुनिया से प्रेम ही गायब हो गया. गांव की पारंपरिक व्यवस्था में फिर भी प्रेम की हजार गुंजाइशें थीं. देवर-भाभी का प्रेम था, साली-जीजा का प्रेम था. समधी-समधन में ठिठोलियां चलती थीं. हां, बदले में हम भाभी जी घर पर हैं, और मे आई कम इन मैडम जैसे धारावाहिक देखते हैं और देख-देख कर दिल बहलाते हैं. जेठा लाल को बबीता जी के प्रेम में पड़ते देख मन में गुदगुदी होती है.
हालांकि, अब धीरे-धीरे सबकुछ खत्म हो रहा है. कुछ तो इसलिए भी कि हम क्रूर होते चले जा रहे हैं. सिर्फ अपनी बात सोचते हैं, दूसरों के दिल में नहीं झांकते. यह नहीं सोचते कि मेरे किसी व्यवहार से सामने वाला खुश होगा या दुःखी. हमारी फ्लर्टिंग कहीं किसी के मन में झल्लाहट तो पैदा नहीं कर देगी. हमने प्रेम को हासिल करने और काबिज होने का जरिया बना लिया है. पजेसिवनेस ही प्रेम का मूल तत्व हो गया है. और इस चीज ने प्रेम की मधुरता को कटुता में बदल दिया है. पर अगर हम इस कटुता से बच सकें तो एक छोटे से जीवन में हजार छोटे-छोटे प्रेम की गुंजाइशें हैं और ये गुंजाइशें आपके जीवन को और बेहतर, सरस और खूबसूरत बनायेंगी.
न प्रोपोज, न रोज, न प्रोमिस, न किस, न हग कुछ भी जरूरी नहीं है. जरूरत है बस भरोसे की। भरोसा बना रहे तो महीनों कुछ बोलने की जरूरत नहीं होती. सब कुछ पता रहता है. सब कुछ स्मूथली चलता रहता है. बातें दिल, जिगर और गुर्दे की नहीं, आलू, चावल और आंटे की होती है. स्कूल की फीस और बच्चों के खिलौने की होती है. पापा के स्वेटर और मम्मी की दवा की होती है. सब्जी के भाव और सीरियल के कैरेक्टर की होती है. पर क्या यह मुहब्बत नहीं। यह क्या किसी डेटिंग से कम है जो पिछले दस साल से लगातार चल रही है। हैप्पी वेलेंटाइन डे माय गिरहथिन.
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।