ब्रह्मानंद ठाकुर
आई का बतकही बिलकुले एक नया लुक में था। असल में हुआ यह कि साउनीघड़ी पवनिए के दिन 15 अगस्त वाला परब भी पड़ गया। भकुआइए नहीं ,अरे ,ओहे पनरह अगस्त जेकरा बुद्धन बाबू , मुखिया जी , गाट ( गार्ड ) साहेब और सुमेर जी लोग स्वतंत्रता दिवस कहते हैं। और, जिसके बारे मे अक्सर घोंचू भाई कहते हैं कि अरे , हम त उस दिन खूब सूतते हैं ,चाहे बदरकट्टू रउदा रहे चाहे मेघ। लेकिन सांझ मे बड़ा रोचक तरीका से आजादी आंदोलन के बारे में बताना नहीं भूलते।
घोंचू उवाच-8
वे कहते हैं कई सालों तक लोग अंग्रेजों से लड़ते रहे , जेल गये और हजारों वीर देशभक्त सपूतों की शहादत के बाद अई देश से अंगरेज का राज खतम हुआ। लेकिन अबहियो पूरी आजादी कहां मिली है। आजादी का माने खाली वोटे से सरकार बनाना त नहीं है। आजादी का माने हय सबको शिक्षा, सबको काम , सबको इलाज । देश के सब आदमी को बिना जात – धरम आ लिंग का भेद किए, विकास का समान अवसर उपलब्ध होना। ई सब त अभी बांकिए हय । त इस बार पनरह अगस्त आ साउनीघड़ी पवनी एक्के दिन पड़ गया सो गांव से शहर जा क पढे वला कउलेजिया लड़िका बंटी और प्रिंसवा भी घरे आयल था।
ओकरा बिहान भेले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की मृत्यु 94 बरीस की उमिर में हो गई, से हुनका सोग में सतरहो को स्कूल – कउलेज बंदे हो गया। अई लेके बंटी और प्रिंसवा को तीन दिन की छुट्टी हो गयी। ऊ दून्नू सांझ होइते मनकचोटन भाई के ऊहे तिनटंगा चउकी पर अप्पन आसन जमा के बड़का मोबाईल पर कुछ टिप-टाप कर रहा था कि उधर से घोंचू भाई ललका गमछा से अप्पन चेहरे पर चुहचुहा रहा पसीना पोंछते नमूदार हो गये। उनके पैर की धमक सुन बंटी का ध्यान घोंचू भाई की ओर ज्योंही गया , उसने तुरत तिनटंगा चउकी से उठ कर दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा -‘ गोर लगइछियो कक्का। ‘ उसके इतना कहते ही प्रिंसवा भी खड़ा होकर दहिना हाथ करेजा पर रख थोड़ा नीचे झुका।
घोंचू भाई दोनों लड़िकवन को ” खुश रहो बउआ ‘ कहकर आशीर्वाद देते हुए पूछे – ‘ कहो ,क्या हाल है तुम्हारे पढाई – लिखाई का ? पास कर गये बीए ? ‘ अभी कहां कक्का , चार साल हो गये एग्जामे नहींं ले रही है यूनिवर्सिटी , बस इसी इन्तजार मे हूं कि यह गेट पार करूं तो आगे की सोंचूं। ‘ बंटी ने यह कहते हुए मनुहार किया ‘आइए , बैठिए न कक्का ,बहुत दिन हो गये आप से बतियाए हुए। ‘ घोंचू भाई उसी तिनटंगा चौकी पर बइठ गये । मैं भी हाली – हाली जनेरा का कुट्टी कुटकट्टा मशीन मे काटने के बाद कल पर हाथ – गोर धोया और गमछा से हाथ – मुह पोंछते हुए बंसखटिया निकाल लाया। मनकचोटन भाई धनरोपनी की मजदूरी फरिया कर मजदूर सब को बांकी मजदूरी दे कर हमरा पंजरा मे आकर बैठ गये। परसन कक्का भी हमलोगों को देख फंरा मे से खइनी का डिब्बा निकाल बाएं हाथ मे थोड़ा खइनी रखे और उसमे चूना मिला कर चुनाते हुए बतकही मे शामिल हो गये।
घोंचू भाई आदतन शुरू हो गयेः उन्होने बंटी से पूछ दिया , तुम तो स्कूल मे बड़ा तेज विद्यार्थी था। ‘बचपन मे तुम मुझसे बराबर सवाल करते रहे। आज मैं तुम से एक सवाल करता हूं। बताओ मानव जाति का पहला वैज्ञानिक आविष्कार क्या था ? ‘ बंटी जब तक बोलता , उससे पहले प्रिंस बोल उठा -आग ‘। ‘ नहीं ‘ घोंचू भाई ने असहमति जताते हुए कहा ‘ देखो , धरती पर होमो – सेपियंस प्रजाति से पहले ही आग पर काबू पाया जा चुका था। इसे मानव पूर्वजों ने प्राप्त किया था।’ यहीं से तो आग मे कच्चे मांस को भून कर खाने की शुरुआत हुई थी जिससे हमारे आदि मानव के मुख की आकृति में बदलाव आया और स्पष्ट अभिव्यक्ति का विकास हुआ।’
अब तक घोंचू भाई बंटी और प्रिंस को लक्ष्य कर ये बातें कह रहे थे। उनके तर्क की गम्भीरता को समझते हुए मैं , परसनक्का और मनकचोटन भाई उनके और करीब आ गये। घोंचू भाई कहने लगे ‘ देखो , शारीरिक रूप से आधुनिक मानव लगभग 2 लाख ,साल पहले विकसित हुआ और व्यावहारिक रूप से ( स्पष्ट बोलने और औजार बनाने मे सक्षम ) आधुनिक मानव आज से 40 हजार साल पहले हिम युग मे विकसित हुआ। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। तब से लगभग 10 हजार साल पहले कृषि के आगमन से पहले तक इसके जीवन निर्वाह का साधन शिकार करना था। तब जहां- जहां शिकार मिलने की सम्भावना होती थी , वहां-वहां खानाबदोश की तरह घूमता रहता था। वे लोग जिस जानवर का शिकार करते , उसे आपस में मिल- बांंट कर खाते थे। दूसरे दिन के लिए उसे इसलिए बचाकर नहीं रखा जाता था क्योंकि वह सड़ जाता था।
घोंचू भाई मानव समाज के विकास का तार्किक विश्लेषण करिए रहे थे कि मनसुखबा अंदर से चाय ले आया और चाय की चुस्की के साथ आज की बतकही पर विराम लगाते हुए घोंचू भाई ने कहा कि सच्चाई वही नहीं है जो आजकल स्कूल कालेजों के पाठ्यपुस्तकों मे पढाई जा रही है। घोंचू भाई के ई रहस्योद्ग्घाटन पर मेरे मुंह से बरबस निकल ही गया -‘ घोंचू भाई गलत नहीं कहते हैं।’