घोंचू भाई दोपहर में खाना खा कर आराम करने के लिए बिछौना पर लेटबे किए थे कि मनकचोटन भाई अपने रिश्ते के एक मामू को साथ लिए उनके दरबाजे पर पहुंच गये और फुलकेसरा से पूछा- ‘ घोंचू भाई, किधर हैं ? ‘ फुलकेसरा ने अंगुरी से ओसारा की तरफ इशारा करते हुए कहा ‘ अबहिए भोजन कर आराम करने गये हैं । फिर क्या दोनों घोंचू भाई के पास पहुंचकर अाने का प्रयोजन बताया और अखबर पढ़ने लगे । तभी उनकी नजर एक ख़बर पर टिक गई और उन्होंने घोंचू भाई से पूछा’ अच्छा, घोंचू भाई जरा ई तो बताइए कि ई ‘मी टू’ क्या है ? आज कल इसकी अखबार में बड़ी चर्चा हो रही है। बड़का-बड़का लोग अइ लपेट मे आ रहा है’ मनकचोटन भाई के इतना कहते ही मामू का ध्यान भी इधरे आ गया और वे अखबार का पन्ना पलटना छोड़ घोंचू भाई की ओर देखने लगे।
फिर क्या था घोंचू भाई अपने अंदाज में शुरू हो गए और कहने लगे-आज के जमाने में बड़ी-बड़ी कम्पनियों, फिल्मी जगत, मीडिया संस्थानों, स्कूल-कालेज समेत अन्य संस्थाओं में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी काम करती हैं। इन कामकाजी महिलाओं के साथ उनके ज्यादातर पुरुष सहकर्मियों का वर्ताव अच्छा नहीं होता है। इनमें कुछ महिलाओं को अक्सर यौन उत्पीडन,यौन हिंसा और छेड़-छाड़ का शिकार होना पड़ता है। इनमें कुछ तो लोक लाज या नौकरी चले जाने के डर से चुप्पी साध लेती हैं तो कुछ अपनी इज्जत बचाने के लिए नौकरी तक छोड़ देती है। हमारा पुरुष प्रधान समाज पुरुषों के इस कुकृत्यों की भर्त्सना और उसका जम कर विरोध करने के वजाय पीड़ित महिलाओं को ही इसके लिए जिम्मेवार ठहराता आया है। इसी के विरोध में इन संस्थाओं में कभी कार्यरत रह चुकी महिलाओं ने सोशल मीडिया पर एक कम्पेन शुरू किया है। इसी कम्पेन का नाम मी टू है।
अपने देश मे यह अभियान तो एक साल पहले शुरू हुआ है जबकि अमरीका में आज से 13 साल पहले 2006 में हालीवुड से सिविल राईट एक्टिविस्ट तराना बर्ट ने की थी। अपने देश में एक साल के भीतर शो मैन सुभाष घई, फिल्म में संस्कारी पिता का किरदार निभाने वाले कलाकार आलोक नाथ, चेतन भगत,विकास बहल, रजत कपूर, कैलाश खेर , जुल्फी सईद, गायक अभिजीत भट्टाचार्य,तमिल लेखक वैरा मुथू और नामी पत्रकार एवं केन्द्र सरकार में विदेश राज्यमंत्री एम जे अकबर जैसे तथाकथित बड़े लोग इस तरह के आरोप के घेरे में आ चुके हैं। ‘घोंचू भाई के इतना कहते ही मनकचोटन भाई अचानक बोल पडे ‘,ऐसे बड़े आदमियों की ऐसी करतूत ! भाई विश्वास नहीं होता है। जिन पर तकिया था,वही पत्ते हवा देने लगे ! सरकार के मंत्री, कलाकार , लेखक इनपर तो समाज को सही राह दिखाने का दायित्व है और इनकी ये करतूत ! छि : छि : । ‘
‘देखिए मनकचोटन भाई, निश्चित रूप से ऐसी घटनाएं हमारे समाज को गर्त में पहुंचाने वाली हैं। हम नारी को पुरुष के समान अधिकार और सम्मान देने की बड़ी बड़ी बातें तो जरूर करते हैं लेकिन आचरण इसके सर्वथा विपरीत करते हैं। ऐसी घटनाएं तो यही साबित करती हैं कि आज पैसा कमाने के लिए हर गर्हित काम जायज हो गया है। हम और हमारे घर की बहू-बेटियां चाहकर भी इज्जत और सम्मान की जिंदगी नहीं जी सकती हैं। अधिक से अधिक दौलत कमाने की होड़ में इंसान जानवर बनता जा रहा है। जानवर, नहीं, नहीं, जानवर से भी बदतर क्योंकि जानवर बलात्कार नहीं करता, गैंग रेप नहीं करता। आज हमारा देश गहन अंधकार के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में घोर अंधकार छाया हुआ है। हमारा भविष्य उस रेगिस्तान की तरह है जहां न कोई मरुद्वीप है और न कोई मृगतृष्णा। आर्थिक विषमता एवं नैतिक-सांस्कृतिक संकट ने ऐसी खतरनाक स्थिति पैदा कर दी है कि देश की बहू-बेटियां और बच्चे तक भी अब महफूज नहीं रह गई हैं । आजादी आंदोलन के दौरान भगत सिंह,खुदीराम बोस , नेताजी सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, महात्मा ज्योतिराव फूले सरीखे नेताओं ने जिस संस्कृति और नैतिकता की स्थापना पर बल दिया था, हमारे देश के तथिकथित कर्णधारों ने उसे कब का त्याग कर दिया। आज तो फिल्म स्टारों, क्रिकेटरों और दौलत के लिए अपने ईमान बेंचने वाले राजनेता ही देश की जनता के आदर्श बन चुके हैं। तभी तो ऐसा हो रहा है। हमारे देश में महिलाओं को भी बाजार की वस्तु बना दी गई है। नारी शरीर इस बाजार में खरीद-बिक्री का माल बन गया है। कुछ स्वेच्छा से इस बाजार का रुख करती हैं तो कुछ मजबूरी में।
कभी जिस पूंजीवाद ने सामंतवादी घुटन और उत्पीड़न से नारी जाति को मुक्त करा कर समानता के आधार पर उसे उनमुक्त वातावरण में खुद के विकास का अवसर उपलब्ध कराया था आज वही पूंजीवाद एक बार फिर उसे शोषण के जाल में फंसा दिया है। नैतिक पतन और अपसंस्कृति ने महिलाओं को पुरुषों के लिए केवल उपभोग का साधन बना कर छोड़ दिया है। शहर से लेकर गांव तक महिलाएं किसी न किसी रूप में दैहिक और मानसिक शोषण-उत्पीडन की शिकार हो रही है । इसी के विरोध स्वरूप एक प्रतिक्रिया है हाल का मी टू कम्पेन । मनकचोटन भाई, हमारे समाज में लोग इसे बड़ा चटखारे लेते हुए पढ़ रहे हैं। कुछ इसके आरोपियों पर थू थू करने लगे हैं तो कुछ ने यह कहकर भुक्तभोगी महिलाओं पर ही सवाल उठाने लगे हैं कि इतने दिनों तक कहां थे ? तब क्यों नहीं उठाई आवाज ? तब जरूर कुछ ऊंची महत्वाकांक्षा रही होगी जिसके पूरा न होने पर आज यह तरीका अपना रही हैं। कुछ लोग इसे ब्वैकमेलिंग भी बताने लगे हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं की तह तक पहुंचना भी जरूरी है।
कुछ देर रुक कर घोंचू भाई ने फिर कहना शुरू किया, ‘जानते हैं मनकचोटन भाई, स्त्री की शारीरिक ( यौन ) सूचिता का भाव पुरुष की व्यक्तिगत सम्पत्ति के भाव से जुड़ा हुआ है। उसका खात्मा होना ही चाहिए। इसके स्थान पर स्वस्थ नारीत्व का भाव पैदा करने की जरूरत है। हमारे समाज में दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच का मैत्री सम्बंध तो मान्य है लेकिन स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री सम्बंध अस्वीकृत और प्रतिबंधित है। जबतक समाज में नर-नारी के बीच मैत्री सम्बंधों को सामाजिक मान्यता नहीं मिलती और जबतक पुरुष किसी नारी के साथ ऐसे सम्बंधों को स्वीकार करते हुए उसे सच्चे मन से निर्वहन नहीं करेगा तब तक नारी की आजादी सम्भव नहीं है और यह काम सोवियतसंघ ने समाजवादी क्रांति को सफल बनाकर पूरा कर दुनिया को दिखा चुका है। पूंजीवादी समाज व्यवस्था में यह सम्भव ही नही है। इसके लिए जरूरी है पूंजीवाद विरोधी समाजवादी क्रांति को सफल बनाना। फिलहाल यह असम्भव नहीं तो कठिन जरूर है।
मनकचोटन भाई अपने मामू के साथ यह कहते चलते बने कि वास्तव में नारी मुक्ति का सवाल शोषित सर्वहारा वर्ग की मुक्ति से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। पूंजीवादी लोकतंत्र की जगह समाजवादी लोक तंत्र के कायम होने पर ही दुष्यंत द्वारा परित्यक्त शकुंतला दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्त होकर अपने प्रेम का सही मूल्य प्राप्त कर सकेगी। वरना इस मी टू कम्पेन से नारी मुक्ति का सपना पूरा नहीं होने वाला है।