पिछले हफ्ते पटना के विद्यापति भवन सभागार में “गांधी और दलित” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि थे बिहार के माननीय उप-मुख्यमंत्री श्री सुशिल मोदी और मुख्य वक्ता रहे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के विचारक और प्रोफेसर आनंद कुमार। प्रोफेसर आनंद कुमार ने इस मौके पर बात शुरू करते हुए गांधी के शुरूआती काल से लेकर बाद के समय तक विचारों में आये बदलाव पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने बताया कि कैसे शुरू में तो वो चरखा जैसे आन्दोलन चलाते रहे लेकिन अपने जीवन के बाद के वर्षों में हरिजनों के विषय पर काम करना शुरू किया। इस मौके पर पूना पैक्ट पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया। उन्होंने बताया कि कैसे अंग्रेज पहले ही भारत में हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर विभाजन की एक लकीर खींच चुके थे और अब वो हिन्दुओं में भी दलित और सवर्ण की लकीर खींचने पर आमादा थे। आंबेडकर काफी हद तक चुनावों में अलग अलग दलित और बाकी वर्णों के मतदान के लिए तैयार भी हो गए थे। ये मौका था जब गांधी अनशन पर बैठ गए और ये उनका ही कारनामा था कि एक और आन्तरिक विभाजन की जमीन तैयार नहीं हो पायी। पूना पैक्ट के नतीजे के तौर पर अलग विधानसभाएँ तो बनी जिसमें सीटें अरक्षित थीं, मगर वोट अलग अलग नहीं हुए।
मुख्य अतिथि श्री सुशिल मोदी ने इस मौके पर कहा कि कैसे वो करीब चालीस वर्षों से प्रोफेसर आनंद को सुनते आये हैं। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर आनंद को सुनने में हर बार कुछ नया सीखने को मिलता है। गांधी के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि अक्सर अनुभव दो प्रकार के होते हैं। एक में व्यक्ति ने स्थितियों को खुद जिया होता है और दूसरे में वो परोक्ष अनुभव के आधार पर चीज़ों को समझता है। इंग्लेंड में भेदभाव खुद झेल चुके गांधी स्थिति को दोनों ओर से देखने में समर्थ थे। यही वजह थी कि उनके चरित्र और नैतिक बल के कारण उनका आन्दोलन ज्यादा सफल भी रहा।
इस मौके पर बोलते हुए विशिष्ट अतिथि पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री संजय पासवान (एमएलसी, भाजपा) ने भी गांधी जी के सत्याग्रह के अलावा मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर उनकी लम्बी भारत यात्रा पर रौशनी डाली। उन्होंने बताया कि केवल उत्तर भारत में ही नहीं, दक्षिण के कई मंदिरों में भी दलितों को गांधी जी की वजह से प्रवेश मिल पाया। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ही नहीं दूसरे कई मंदिरों में भी उन्हें अपने आन्दोलनों के कारण भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। आरा में तो स्टेशन पर ही उन्हें पथराव का सामना करना पड़ा और पुलिस की मदद से वो बच पाए।
विशिष्ट अतिथि श्री रामाशीष जी (अखिल भारतीय प्रज्ञा प्रवाह) ने बताया कि कैसे गांधी के आंदोलनों से प्रेरित लोगों ने समाज में कई बदलाव किये हैं। चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, या समाज सुधार के दूसरे इलाके, हर जगह गांधी का प्रभाव है। उन्होंने गांधी के साथ बाबु जगजीवन राम का जिक्र करते हुए कहा कि इमरजेंसी के बाद एक अलग पार्टी बनाकर व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले बाबू जगजीवन राम अगर याद किये जाते हैं तो गांधी के लिए भी आजादी के मायने वैसे ही थे। संविधान जो आज हमें व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता देता है, उनमें से कई गांधी के आदर्शों से मिलती जुलती हैं। वो स्वतंत्रता संग्राम से सीधे तौर पर अंग्रेजों से आजादी के लिए तो जुड़े ही थे लेकिन उसमें काफी हद तक व्यक्ति की स्वतंत्रता की भी बातें थीं।
अपने समापन भाषण में श्री संजय पासवान ने कई नेताओं के दलितों के साथ खाने-नहाने की तस्वीरें लेने वाले नेताओं पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि जातिवाद का स्वरुप अब बदल चुका है। हमें आगे के लिए सोचना होगा, क्योंकि छुआछूत अब पहले जैसा खाने-नाहने में प्रत्यक्ष नहीं दिखता। ये कई दूसरी जगह छद्म रूप में जा घुसा है। कुछ सवालों के जवाब में उन्होंने बताया कि सिर्फ सवाल उठाने के लिए सवाल नहीं, बल्कि एक हल की तरफ बढ़ने के लिए सवाल किये जाने चाहिए।
इस मौके पर श्री गुरु प्रकाश, श्री राजेश कुमार रविदास, दीपक कुमार, विकास महता और सौरभ कुमार सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की। करीब तीन घंटे चली इस परिचर्चा में शहर भर के छात्रों, महिलाओं सहित लगभग 250 नगरवासियों से सेमिनार हॉल खचाखच भरा रहा। मंच का संचालन कर रहे अमलेश राजू ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सभा का अंत किया।