पुष्यमित्र
इन दिनों उत्तर बिहार भीषण किस्म की बाढ़ आपदा के सामना कर रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 14 जिलों की 73 लाख से अधिक आबादी इससे प्रभावित है। ढाई लाख से अधिक की आबादी बेघर हो चुकी है, 72 लोगों की मौत के आधिकारिक आंकड़े हैं। 500 से अधिक सरकारी राहत शिविरों में एक लाख से अधिक लोग आश्रय लिये हुए हैं। इसका मतलब लगभग डेढ़ लाख लोग सड़कों पर, नहरों और तटबंधों के किनारे खुले में या पॉलिथीन की छत बना कर रह रहे होंगे। इन्हें नियमित भोजन भी नसीब नहीं हो रहा होगा। निराश करने वाली बात यह है कि यह आपदा अभी कम नहीं होने वाली है। सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग में तेज बारिश हुई है। वह पानी भी फिर से किशनगंज, अररिया और पूर्णिया, कटिहार के इलाकों से गुजरेगा। और यह समझिये कि ये सरकारी आंकड़े हैं। हालात इससे काफी बदतर होंगे।
जाहिर सी बात है कि इन परिस्थितियों में हमारा, आपका मन हो रहा होगा कि कुछ किया जाए। कई मित्रों ने व्यक्तिगत रूप से संपर्क करके कहा है। कुछ मित्र तो ग्रुप बनाकर जमीन पर उतर गए हैं, चंदा जुटाकर अपने स्तर पर कुछ लोगों को राहत उपलब्ध करा भी रहे हैं। निश्चित तौर पर जब डेढ़ लाख से अधिक लोग छत और राहत से वंचित हैं तो यह अपने आप में बड़ा काम है। मगर 2001 के गुजरात भूकम्प से लेकर 2008 की कोसी की बाढ़ और पिछले साल की भीषण बाढ़ का अनुभव यह बताता है कि ये उपाय बहुत प्रभावी नहीं होते। आप अपने स्तर पर चार या पांच दिन कुछ लोगों को भोजन उपलब्ध करा देते हैं। मगर जरूरत काफी बड़ी है। आपकी सारी मेहनत चन्दा उगाही में चली जायेगी। फील्ड पर कई तरह की गड़बड़ियां होंगी। और सबसे बड़ी बात आप असली जरूरतमंद तक शायद ही पहुंच पाएंगे। फिर भी जो लोग यह काम कर रहे हैं, मैं उनके समर्थन में हूँ।
अभी सबसे पहली जरूरत है, उन लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने की जो खतरे वाली जगहों में फंसे हैं। जो लोग राहत शिविरों में जगह नहीं पा सके हैं उन्हें शिविरों में जगह दिलाने की और सरकारी राहत और बचाव कार्यों की गति बढ़ाने और उसे प्रभावी बनाने की। क्योंकि यह काम सरकार ही कर सकती है, हम नहीं। सिस्टम की थोड़ी बहुत समझ के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ, पैसों की कोई कमी नहीं है। आपदा प्रबंधन विभाग हर साल तकरीबन 360 करोड़ रुपये बाढ़ आपदा पर खर्च करती है। फिर केंद्र सरकार का सहयोग भी मिलने ही वाला है। विभाग की कमान भी प्रत्यय अमृत जैसे एक योग्य व्यक्ति के पास है। आप यही समझिये कि प्रत्यय अमृत 24 अप्रैल से इस काम में जुटे थे कि इस साल बाढ़ के वक़्त लोगों को परेशानी न हो। मगर उन्हें जमीनी सहयोग नहीं मिला। अभी भी विभाग की जो योजना है उसे देखकर लगता है कि इसे इम्पलीमेंट कराया जाए तो स्थितियां नियंत्रण में आ जाएंगी। आप चाहें तो योजनाओं से संबंधित कागजात उपलब्ध करा सकता हूँ। जो पढ़ना चाहते हैं, मुझसे मेल पर संपर्क करें।
तो गड़बड़ी कहाँ है? गड़बड़ी इम्पीलमेंटेशन में है। विभाग के काम करने वाले सुयोग्य लोगों की भारी कमी है। मैंने देखा कि उच्च स्तर के तीन अधिकारी ही सक्रिय हैं। कंट्रोल रूम ठीक से काम नहीं कर रहा। जिला और प्रखंड स्तर के कर्मी और अधिकारी या तो लापरवाह हैं, या असंवेदनशील। क्योंकि जो काम 24 अप्रैल को दिया गया था वह आज की तारीख तक पूरा नहीं हुआ है। जिला स्तर पर भी कंट्रोल रूम ठीक से काम नहीं कर रहे।
हम क्या कर सकते हैं? मेरे ख्याल से हमें दो काम करना चाहिये। पहला सरकार का सहयोग, दूसरा सरकार की निगरानी। सहयोग इस तरह कि कुछ जिम्मेदार लोग समय लेकर नीतीश जी से या मंत्री या प्रधान सचिव से मिलें और कहें कि हमलोग वॉलेंटियर करना चाह रहे हैं। हर स्तर पर। पटना से लेकर किशनगंज तक। कंट्रोल रूम में कुछ संवेदनशील युवक बैठें और वहां जो मदद मांगी जा रही हो उसे पूरा करवाने की कोशिश करें। राहत शिविरों के साथ कुछ युवक जुड़ जाएं। इजाजत लेकर जहां राहत शिविर नहीं खुल पाये हैं, वहां के लोगों को मदद उपलब्ध कराएं।
दूसरा काम है, निगरानी का। वह यह है कि सरकारी राहत व्यवस्था में जहाँ-जहाँ गड़बड़ी दिख रही है उसे इंगित करें। संबंधित अधिकारियों को सूचित करें, काम न होने पर दबाव बनाएं। सोशल मीडिया पर उसे लोगों के सामने रखें। लगातार राहत कार्य की निगरानी हो और सरकार पर दबाव जारी रखें कि वह बेहतर काम करे। मेरे हिसाब से यह काम ज्यादा सार्थक होगा।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
Very informative sir… People should do this type of work. Great idea