पुष्यमित्र
जिस तरह चमकी बुखार के वक़्त वैशाली में लोगों ने सांसद को घेरा था, उसी तरह कल झंझारपुर में आक्रोशित लोगों ने नवनिर्वाचित सांसद को घेर लिया। भीषण आपदा के वक़्त भी अगर जनप्रतिनिधि सक्रिय और सजग नहीं होता है तो लोगों का गुस्सा फूटना स्वाभविक लगता है। मगर सच्चाई यह है कि इन दोनों आपदाओं में राजनेताओं से अधिक स्थानीय प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदार है।
पांच मई को ही हर साल की तरह बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने सभी बाढ़ प्रभावित जिलों के डीएम को पत्र लिख दिया था कि आगामी बाढ़ के मद्देनजर सभी तैयारी कर लें। इन तैयारियों में, तटबंध को मजबूत करने से लेकर, NDRF और SDRF की तैनाती, नावों की व्यवस्था, गोताखोरों की बहाली, राहत शिविर, कण्ट्रोल रूम आदि हर छोटी से बड़ी चीज की व्यवस्था करनी थी। बाढ़ की पूर्व चेतावनी और खतरे वाले इलाके को खाली कराने का भी पूर्व निर्देश था। इसके लिये अलग से बजट का प्रावधान भी था।
अब जयनगर से सटे इलाके की बात लीजिये। मेरे जैसे संसाधन विहीन व्यक्ति को भी 12 जुलाई की शाम को पता चल गया कि बड़ा संकट आने वाला है। नेपाल के जनकपुर में जो जयनगर से सटा है, बारिश भीषण तबाही मचा रही है। मगर प्रशासन ने क्या किया? क्या कोई चेतावनी जारी की, क्या खतरे वाले इलाके को खाली कराया?
कमला पर बने तटबंध के दस जगह से टूटने की खबर है। सबको पता है कि कमला का तटबंध कमजोर है। मगर क्या मई से जुलाई के बीच कभी तटबंध को मजबूत करने के काम पर विचार हुआ? हालांकि मैं खुद तटबंध विरोधी हूं, मगर जब तक वैकल्पिक व्यवस्था न हो जाये, तटबंध को मजबूत करना ही उपाय है।नरुआर गांव में हजारों लोग फंसे रहे, वहां NDRF, SDRF या गोताखोर क्यों नहीं पहुंचे? क्योंकि तैयारी नहीं थी, निर्देश के बावजूद। न कहीं राहत शिविर खुले हैं, न ठीक से कण्ट्रोल रूम काम कर रहा है, न कम्युनिटी किचेन बने हैं। अभी भी खतरे वाले इलाके को खाली नहीं कराया जा रहा। क्योंकि जो काम मई-जून में करना था वह जुलाई तक नहीं हुआ।
इस लापरवाही का जिम्मेदार कोई नेता नहीं है वह डीएम है जिसे यह काम समय से करवाने की जिम्मेदारी दी गयी थी। पटना से तो निर्देश और बजट दोनों जारी हो गया था।मगर हो यह रहा है कि नेता घेरे जा रहे हैं, और डीएम हाफ़ पेंट पहन कर घुटने भर पानी में फोटो सेशन करवा रहा है और सहानुभूति बटोर रहा है।हम नेताओं को घेरेंगे तो वह संजय झा की तरह ऊलजलूल बात करेगा। मधुबनी की बाढ़ के लिये कोसी हाई डैम बनाने का सुझाव देगा। जबकि बाढ़ कमला में आई है, कोसी में नहीं। नेता फर्जी बयान देगा, उसके पीछे अफसरों की काहिली छुप जायेगी। चमकी बुखार वाले मामले में भी यही हुआ।मगर जो काम डीएम को करना था, वह क्यों नहीं हुआ यह सवाल कोई नहीं पूछता। जबकि मई के निर्देश का 25 फीसदी पालन भी हुआ होता तो हम ओडिशा और केरल से बेहतर मिसाल पेश करते।
रामप्रीत मंडल तो कल सांसद बने हैं, कपिल महोदय तो न जाने कब से मधुबनी के डीएम हैं। उनसे पूछिये कि मधुबनी को बाढ़ से बचाने के लिये क्या किया। उनके घुटने भर पानी में खड़े होने पर लहालोट मत होईये।