पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से साभार
पूर्णिया शहर के मधुबनी बाजार की ये तस्वीर वैसी ही है जैसी किसी भी शहर में काम की तलाश खड़े रहने वाले मजदूरों की होती है । लिहाजा आप एक दफा ये सोच सकते हैं कि इस तस्वीर में कुछ भी तो नहीं नहीं । मगर जब आप तस्वीर के बीच में खड़े (घेरा किया हुआ) इन दो लोगों का परिचय जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे। जैसा कि मुझे हुआ । ये दोनों उस व्यक्ति के वंशज हैं, जो व्यक्ति तीन दफा बिहार का मुख्यमंत्री रह चुका है।
हम बात कर रहे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री वर्गीय भोला पासवान शास्त्री की, ये दोनों लोग उन्हीं के परिवार के हैं । जो बतौर मनरेगा मजदूर काम करते हैं . वैसे तो किसी पूर्व मुख्यमंत्री के परिजन का मेहनत मजदूरी करना कोई बुरी बात नहीं है। आखिर हम ऐसा क्यों मानते हैं कि एक बार सीएम बनने के बाद किसी नेता के सात पीढ़ियों के इंतजाम हो जाये। यह अच्छी बात है भोला पासवान शास्त्री ने इस तरह नहीं सोचा, जब कि तीन बार सीएम बनने के अलावा वे इंदिरा सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। वो बेहद सादगी पूर्ण और ईमानदार इंसान थे । बिहार के पहले SC/ST समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री की आज जयंती है, लिहाजा एक बार फिर उनके परिवार की बदहाली के हाल का जिक्र करना जरूरी है ।
मैं पहले भी उनके गांव जा चुका हूँ और उनके परिजनों की बदहाली की कहानी लिख चुका हूँ। उनके पास रहने को घर नहीं है, राशनकार्ड नहीं बना है, भूमिहीन हैं। यानी उनके परिवार के पास सामान्य जीवन जीने लायक भी संसाधन नहीं हैं । परिवार मनरेगा मजदूरी के जरिए अपना जीवन-यापन करता है । पूर्णिया का बैरगाछी वैसे तो समृद्ध गांव लगता है, मगर भोला पासवान शास्त्रीजी का घर गांव के पिछवाड़े में है। जैसा कि अमूमन बस्तियां हुआ करती हैं। हालांकि अब गांव में उनका दरवाजा ढूँढने में परेशानी नहीं होती क्योंकि वहाँ एक सामुदायिक केंद्र बना हुआ है। जिस पर उनका नाम लिखा हुआ है। पड़ोस की एक महिला कहती हैं सामुदायिक केंद्र इसी लिए बनवाया गया है ताकि ठिकाना ढूँढने में तकलीफ न हो।
शास्त्री जी को अपनी कोई संतान नहीं थी। विवाहित जरूर थे मगर पत्नी से अलग हो गये थे। शास्त्री जी के भतीजे बिरंची कहते हैं, यह सामुदायिक केंद्र तो हमारी ही ज़मीन पर बना है। अपने इस महान पुरखे की याद में स्मारक बनाने के लिए हम लोगों ने यह ज़मीन मुफ़्त में सरकार को दे दी थी। उनकी बात सुनकर बड़ा अजीब लगता है। शास्त्रीजी के कुनबे में अब 12 परिवार हो गये हैं, जिनके पास कुल मिलाकर 6 डिसमिल ज़मीन थी। उसमें भी बड़ा हिस्सा इन लोगों ने सरकार को सामुदायिक केंद्र बनाने के लिए दे दिया है। अंदर जाता हूँ तो देखता हूँ एक-एक कोठली में दो-दो तीन-तीन परिवार कैसे सिमट-सिमट कर रह रहे हैं। आखिर गरीबों में इतनी संतोष वृत्ति कहां से आती है?
ऐसे में सवाल ये है कि क्या आज के राजनेता इन लोगों से कुछ सीखना चाहेंगे? आज तो एक बार विधायक भी कोई बन गया तो ताउम्र अच्छी खासी पेंशन का इंतजाम हो जाता है। पूर्व सीएम को ताउम्र सरकारी बंगला तक मिलने का चलन रहा है । राजनीतिक कनेक्शन उसे कभी पैसों की कमी नहीं होने देते। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री का जब निधन हुआ तो उस दौरान उनके खाते में इतने पैसे भी नहीं थे कि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके। पूर्णिया के तत्कालीन डीएम ने उनका अंतिम संस्कार करवाया था। भोला पासवान के बारे में जानने के लिए क्लिक करें
जाहिर है इस धन प्रधान युग में ऐसे लोगों की कहानी सिर्फ हैरत जगाने के काम आएगी, अनुकरणीय नहीं हो सकती। फिर भी लिखना तो अपना फर्ज है।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।