पुष्य मित्र
पिछ्ले साल का वाकया है। एक बड़े मीडिया हाउस से मुझे फोन आया कि वे चाहते हैं कि मैं उनके नए वेन्चर का रीजनल हेड(पूर्वी जोन) बन जाऊं, इसलिये उनकी टॉप लेवल की टीम स्काइप पर मेरा इंटरव्यू करना चाहते हैं। मैने उन्हे कहा, मैं तो खुद को इतने बड़े पद के लिये उपयुक्त नहीं पाता, मगर अगर उन्हें ऐसा लगता है तो इंटरव्यू कर लेते हैं। बहरहाल इंटरव्यू हुआ, जिसमें पांच लोग थे, एक सम्भवतः MD भी थे। 12-13 मिनट इंटरव्यू चला, कई सवाल हुए, वे संतुष्ट भी थे। फिर उन्होने आखिर सवाल पूछा, सरकार में आपकी पैठ कैसी है? मैने कहा, बिहार की सरकार कैसे काम करती है इसकी थोड़ी समझ है। उन्होने मेरी बात काटते हुए कहा, नहीं, अगर यहां से कुछ काम करवाना हो तो क्या आप फोन पर मन्त्री और मुख्यमंत्री लेवल पर वह काम करवा सकते हैं? मैने कहा, जी नहीं, मेरा किसी से उस तरह का घनिष्ट परिचय नहीं है। बिना कुछ बोले फोन वहीं कट कर दिया गया। मैं समझ गया। आशा है, आप लोग भी समझ गये होंगे।
दरअसल पत्रकार की यही औकात है। अगर आप दिल्ली में हैं तो केंद्र की सरकार से काम करवाने की क्षमता होनी चाहिये, पटना में हैं तो बिहार सरकार से और पूर्णिया में हैं तो वहां के डीएम से। ब्लॉक में हैं तो बीडीओ, थानेदार से। अगर आपमें वह क्षमता नहीं है तो आप किसी मतलब के नहीं हैं। अपने संस्थान के लिये भी और समाज की नजर में भी। जी, समाज में भी एक पत्रकार की हैसियत तभी है जब वह किसी से पैरवी कराने लायक है। ट्रेन का टिकट कनफ़र्म करा सकता हो, एम्स या IGIMS में बेड दिला सकता हो, बोर्ड ऑफ़िस में पैरवी करा सकता हो, driving लाईसेन्स बनवा सकता हो, एमएलए या एमपी से मुलाकात करवा सकता हो। मुझे तो अपने इलाके का वार्ड पार्षद भी नहीं पहचानता, उसके साथ भी कभी सेल्फी नहीं ले पाया।
तो बाकी, चौथा स्तम्भ और क्रांति वान्ती की बात भावुकतापूर्ण है। असलियत यह है कि आपकी सत्ता के बीच कैसी पकड़ है। इसलिये हममें से ज्यादातर लोग इसी पकड़ को बनाने में उर्जा खपत करते हैं और इसलिये सत्ता जानती है कि हमारी औकात क्या है।