पुरुषोत्तम असनोड़ा
गांवों के हाल बूरे हैं। अभी अपने गांव फयाटनोला से लौटा हूं। अल्मोडा जिला के रानीखेत प्रखंड का उपेक्षित गांव। गांव के विद्यालय में प्रधानाध्यपक पद से रिटायर होने के बाद वहां बस रहे एकमा़त्र परिवार जन चाचा ख्यालीदत्त असनोडा ने सत्यनारायण की कथा की थी। ‘कैमै लगानू्र छूई, रीता कूडों की बगदा मनखूं की’ सब चैपट सा लगा। आजादी के सात दशक बाद भी जहां सडक नहीं पहुंची हो, लाख प्रयास के बावजूद नेता केवल आश्वासनों की घुट्टी पिलाते हों, जहां तक सडक है वहां बस नहीं है। 6 किमी टैक्सी की बुकिंग 150 से ढाई सौ रुपये, बीमार वाहनों का इंतजार कर रहे हैं। चमडखान-कनोली-सेलापानी मोटर मार्ग जो सन् 2009 में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में स्वीकृत हुआ था 8 किमी. सर्वे से आगे नहीं बढा, स्वतंत्रता सेनानी मोतीसिंह नेगी की गुहार भी हरीश रावत से लेकर राज्यपाल तक नहीं सुन रहे।
सन् 1980 की पेय जल योजना दम तोड रही है। एक परिवार को एक से डेढ कनस्तर पानी मिल रहा है। बिजली गुल है। रात भर अंधेरा, यह तो प्रकृति की कृपा है कि बिजली के बिना नींद नही आने की स्थिति नही थी। सुअरों का आतंक जोरों पर है। हमारे आंगन में बिछे पटाल भी सुअरों ने उखाड दिये हैं, खाली आंगन का ये हाल है तो फसल बचने का तो सवाल ही नहीं। कूरी की झाडियों ने रास्ते बन्द कर दिये है। जिनमें सुअर ,भालू के अड्डे हैं। गुलदार दिन में दिखते हैं। चाचा चन्दनसिंह व हुकमसिंह कहते हैं- ‘यही पीढी गांव में इसके बाद गांव में रहने को कोई तैयार नहीं है’। केवल वृद्धों के सहारे गांव कब तक आबाद रहेंगे? रोजगार और मूलभूत सुविधाओं के बिना जो भी गांव में हैं वे किसी तपस्वी से कम नही हैं। उन सबको बार-बार प्रणाम।
चाचा जी के इस आयोजन ने वर्षों बाद दीदी-भुलियो, भुलाओं, चाचा-चाचियों, अम्मा लोगों से मुलाकात हुई, नई पीढी के भी बच्चे मिले। गांव में बूबू(दादा) की पीढ़ी समाप्त हो गयी है। करोंदों की भीनी सुगन्ध पैदल श्रम को भुला रही थी, हमारे लिए यह सुगन्ध भले ही अपने बचपन और उन दिनों की स्मृतियों को लेकर जिन्दा हो जाये जब हम करोंद, हिसालू, किल्मौड की झाडियों के बीच सुस्वादु आनन्द लेते कब दोपहर बीती याद नहीं रहता था। लेकिन रात-दिन की परेशानियों के बीच करोंद की खुशबू उन तपस्वियों के जीवन की कठिनाईयां तो नही कम कर सकती। आजादी के सात दशक और राज्य गठन के 16 साल, स्वतंत्रता सेनानी या किसी राज्य आन्दोलनकारी पत्रकार का गांव होने का लाभ कम से कम उन गांवों को नहीं मिला जिनके जनने का भार वे ढोये हैं। शायद सत्ता की ‘चाण्डाल चैकड़ी’ में उन लोगों की आवाज कहीं सुनी जाने की स्थिति भी नही है।
पुरुषोत्तम असनोड़ा। आप 40 साल से जनसरोकारों की पत्रकारिता कर रहे हैं। मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर के संपादक हैं। आपसे purushottamasnora @gmail.com या मोबाइल नंबर– 09639825699 पर संपर्क किया जा सकता है ।