कोरोना काल को ‘रिवर्स पलायन’ के तौर पर भी याद किया जाएगा। शहर की चकाचौंध छोड़कर बड़ी संख्या में लोग गांव की ओर लौट रहे हैं। शहर की एक बड़ी आबादी वापस गांव में अपनी जमीन तलाश रही है। कोई पैदल जा रहा है तो कोई साइकिल से सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रहा है। किसी के गोद में बच्चा है तो कोई कंधे पर अपना ‘भविष्य’ लेकर कदम बढ़ाए जा रहा है। दिन-रात भूखे पेट और पुलिस की लाठी खाते पांव के छाले की टीस के साथ मजदूर गांव पहुंच रहे हैं। ऐसे में क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि अगले एक साल तक ये लोग शहर की गलियों में लौटने की हिम्मत जुटा पाएंगे। नहीं साहब बिल्कुल नहीं । जिसने जितना दर्द झेला होगा उसका वापस लौटना उतना ही मुश्किल होगा।
शहर से गांव की ओर लौट रहे इन मजूदरों में एक बड़ा हिस्सा पूर्वी भारत से आता है और वो भी खास कर यूपी, बिहार और बंगाल से ताल्लुक रखता है। ये वो राज्य हैं, जहां पहले से ही गरीबी चरम पर है। ऐसे में जरा सोचिए, आखिर ये लोग वहां जाकर करेंगे क्या। इन राज्यों में गांवों में खेती आजीविका का सबसे बड़ा साधन है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पूर्वांचल में लौट रहे मजदूर क्या करेंगे । क्या हमारी सरकारों के पास इन मजदूरों के लिए कोई विकल्प है या फिर इस दिशा में कोई काम किया जा रहा है। पूर्वांचल के किसानों की मुश्किल क्या है। हरित क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाला पूर्वांचल का किसान आज गरीब क्यों है ? आखिर उपजाऊ जमीन होने के बाद भी क्यों पिछड़ा है पूर्वांचल का किसान। इन तमाम सवालों पर हार्टिकल्चर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल श्री एके सिंह ने अरुण यादव से लंबी बातचीत की ।
बदलाव- 60 के दशक में हरित क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाला पूर्वांचल आज गरीबी और पिछड़ेपन का दंश क्यों झेल रहा है ?
डॉ.एके सिंह- पूर्वांचल की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वो एक ही ढर्रे पर चला आ रहा है । हरित क्रांति को 5 दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है और पूर्वांचल है कि अपनी उसी उपलब्धि पर अटका हुआ है। आपको कुछ नया भी करते रहना चाहिए । कृषि में इनोवेशन जरूरी है, अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो विकास की होड़ में पीछे छूट जाएंगे। पूर्वांचल के साथ भी कमोबेस यही स्थिति है। जब हमें ये नहीं पता होगा कि हम गलतियां क्या कर रहे हैं तब तक उसमें सुधार मुमकिन नहीं है। मैं भी पूर्वांचल का हूं इसलिए वहां की कमजोरियों को अच्छी तरह जानता हूं । पहली बात तो ये है कि पूर्वांचल का ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती पर ही आश्रित है। इसलिए मेरा मानना है कि जब तक आप सिर्फ गेहूं और धान उगाते रहेंगे और जाति-धर्म को छोड़कर आर्थिक धर्म को नहीं अपनाएंगे तब तक आगे बढ़ने के अवसर गंवाते रहेंगे। गुजरात, महाराष्ट्र या फिर दक्षिण भारत के राज्यों को देखिए। मैं ये नहीं कहता कि वहां कोई कमियां नहीं हैं लेकिन वो काफी हद तक आत्मनिर्भर हैं। गेहूं, चावल से ज्यादा फल, सब्जियां पैदा करते हैं, खासकर व्यापारिक खेती पर उनका फोकस रहता है। हमें बाजार को समझना होगा ।
बदलाव- ये कैसे मुमकिन होगा, इसके लिए क्या करने की जरूरत है ?
डॉ. एके सिंह- सबसे पहले तो हमें किसानों का समूह बनाना होगा ताकि आप एक साथ बाजार की डिमांड के हिसाब से बैठकर प्लान कर सकें। कौन अगेती करेगा और कौन पछेती करेगा ये सब समूह में रहने पर आसानी से तय किया जा सकता है। इसके दो फायदे होंगे। एक तो जब आप मास लेबल पर उत्पादन करेंगे तो थोक विक्रेता आपके दरवाजे तक चलकर माल लेने आएंगा और बाजार के हिसाब से आपके पास हमेशा सामान उपलब्ध रहेगा। दूसरा फायदा ये है कि जब आप समूह में रहेंगे तो खाद-बीज या दूसरे कृषि से जुड़े सामान बिचौलियों से लेने की बजाय सीधे कंपनी से मंगा सकते हैं और कंपनियां आपको छूट भी काफी देंगी। जिससे बिचौलियों का कमीशन खत्म होगा और फसल की लागत कम करने में मदद मिलेगी। जब लागत कम होगी तो आप बाजार में सर्वाइव भी कर पाएंगे।
बदलाव- किसानों की सबसे बड़ी समस्या होती है बाजार को समझना। उनको कैसे पता चलेगा कि बाजार में डिमांड किस चीज की है ?
डॉ.एके सिंह- ये बहुत आसान है। मान लीजिए आपने समूह बना लिया और आप मौसम के हिसाब से फल, सब्जी या फिर कुछ भी उत्पादन करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए सबसे पहले आप अपने आसपास या जिले की मंडी का सर्वे कराइए । वहां जाइए देखिए और आढ़तियों से पता लगाइए कि कौन से सामान का उत्पादन स्थानीय लेबल पर हो रहा है और कौन सा माल जिले या फिर राज्य के बाहर से आ रहा है । उसकी एक लिस्ट बनाइए और फिर एक्सपर्ट की सलाह लीजिए कि आपकी जमीन और मौसम के हिसाब से उसमें क्या क्या उत्पादन हो सकता है । इसके लिए किसान केंद्र पर मौजूद अधिकारियों से बात कीजिए । अपनी जमीन पर उत्पादन होने वाले सामानों की लिस्ट फाइनल करने के बाद अपने समूह के लोगों को अलग-अलग हिस्सों में बांट दीजिए । याद रहे सभी लोग एक जैसा उत्पादन ना करें साथ ही बाजार के मूड को समझते हुए अगेती और पछेती पर फोकस करें क्योंकि बाजार और डिमांड को समझना बहुत जरूरी होता है ।
बदलाव- आप पूर्वांचल में जाति-धर्म को भी किसानों के पिछड़ेपन का कारण मानते हैं इसके पीछे का तर्क क्या है ?
डॉ.एके सिंह- मान लीजिए आप सामान्य वर्ग से आते हैं और एक लड़का SC/ST या ओबीसी वर्ग से आता है। आपके पास खेत ज्यादा है लेकिन व्यापारिक खेती की समझ कम है। जबकि कृषि एक्सपर्ट युवक के पास खेत कम है लेकिन समझ ज्यादा । अब इसको बारीकी से समझिए। क्या बिना खेत उत्पादन हो सकता है या फिर बिना जानकारी आप व्यावसायिक खेती कर सकते हैं । बिल्कुल नहीं कर सकते साबह। यहां मुश्किल ये आती है कि यहां एक दूसरे से सलाह लेने में कहीं ना कहीं हमारी तथाकथित प्रतिष्ठा का आडंबर खड़ा हो जाता है । हमें इस आडंबर रूपी दीवार को तोड़ना होगा और ये तभी टूटेगा जब सभी वर्ग के कुछ युवा एक साथ एक मंच पर आएंगे । जाति और धर्म के भेदभाव को भूलकर आर्थिक धर्म को अपनाएंगे तभी हम विकास के पथ पर बढ़ पाएंगे । एक बार आप में आगे बढ़ने की लत लग गई तो उसी दिन से जातिगत भावना खत्म होने लगेगी ।
बदलाव- आम धारणा है कि खेती में काफी रिस्क होता है, ये कितना सही है ?
डॉ. एके सिंह- रिस्क कहां नहीं है और याद रखिए जो रिस्क लेगा वही आगे बढ़ेगा । कृषि में भी इनोवेशन की जरूरत है । आपको हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करनी होगी । बनी बनाई लकीर पर मत चलिए । आपने देखा होगा अगर गांव में किसी ने आलू या मदर की फसल उगाई और अच्छी आमदनी हुई तो अगले साल पूरा गांव आलू और मटर बोने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम समूह में काम नहीं करते । जिस दिन आपने समूह बनाकर काम करने की शुरुआत कर दी उस दिन से बदलाव दिखना शुरू हो जाएगा ।
बदलाव- जो मजदूर शहर से गांव आया है आखिर उसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है ?
डॉ. एके सिंह- जितनी संख्या में गांव की ओर इन दिनों लोग लौट रहे हैं, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में एक नई चुनौती खड़ी होने वाली है । इसके लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी। पहले तो स्थानीय स्तर पर स्किल्ड लेबर की पहचान करनी होगी। उसके बाद स्किल्ड लेबर के हिसाब से उद्योग या दूसरे व्यवसाय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी होगी । दूसरी कोशिश ये करनी होगी कि गांव के कुछ युवाओं को आगे आकर कृषि समेत तमाम योजनाएं बनानी होगी जिसमें ग्राम समूह और पंचायत दोनों का सहयोग लेना होगा ।
बदलाव- क्या आपको लगता है ये सब इतना आसान होगा ?
डॉ. एके सिंह- आप बिल्कुल सही कह रह हैं, ये आसान तो नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं । किसी ना किसी को तो आगे आना ही होगा । गांधीजी जब लाठी उठाकर निकले थे तो अकेले थे, लेकिन कुछ दिन बाद ही पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया । इसलिए बदलाव के लिए एक ही शख्स काफी है, बस आपकी नीति और नीयत अच्छी होनी चाहिए ।
बदलाव- क्या किसानों को मंडी के भरोसे रहना ठीक है या फिर कोई और योजना पर भी काम किया जा सकता है ?
डॉ.एके सिंह- बाजार आपके आसपास ही है, बस जरूरत है उसे पहचानने की । जब अमेरिकी कंपनियां आपकी सब्जी लेकर घर-घर तक पहुंचाकर मुनाफा कमा सकती हैं तो किसान खुद इस काम को क्यों नहीं कर सकता । इसकी शुरुआत आप अपने आसपास से कीजिए। आप उत्पादक हैं, समूह में उत्पादन कर रहे हैं । कुछ लोगों को लगाइए आसपास के 10-20 गांव में ये पता लगाएं कि कौन कौन बाजार से फल सब्जी खरीदकर लाता है या फिर किसके यहां शादी-विवाह या फिर दूसरे आयोजन हैं । आप खुद उनके पास जाइए और बताइए कि आप उनको सीधे खेत से ताजी सब्जियां घर पहुंचाएंगे । थोड़ी मुश्किल जरूर आएगी लेकिन एक बार आपने अपना काम जमा लिया फिर आपको कभी दिक्कत नहीं आएगी । उसके बाद आप गांव से बाहर शहर की ओर बढ़िए और एप बनाइए, कृषि को तकनीकी से जोड़ दीजिए , फिर देखिए कैसे धीरे-धीरे आपका खुद का बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा ।
बदलाव- मतलब ये कि मुनाफा तभी है जब किसान उत्पादक और विक्रेता खुद बनेगा ?
डॉ.एके सिंह- बिल्कुल । आप खुद उत्पादन कीजिए और बेचिए, इसके लिए समूह के लोगों की जिम्मेदारी तय कीजिए, याद रहे सभी की जिम्मेदारी के साथ-साथ हिस्सेदारी भी तय करनी जरूरी है । इसके साथ-साथ व्हाट्अप ग्रुप बनाइए उसमें रोजाना नई नई तकनीकी पर चर्चा कीजिए । क्या माल मंगाना है, क्या बेचना है सबकुछ सामूहिक रूप से तय कीजिए ।
बदलाव- क्या कृषि एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्ता की रीढ़ बनने की दिशा में अग्रसर है ?
डॉ.एक सिंह- ये 2020 चल रहा है, 2050 तक देश की आबादी एक अरब 70 करोड़ होने का अनुमान है यानी इतने लोगों को खाना चाहिए और खाना कहां से मिलेगा । खाना चाहिए इसका मतलब खेती आवश्यक है, खेती का केंद्र किसान है और जब उपभोक्ता बढ़ेगा तो डिमांड भी बढ़ेगी । तो जो भी समूह या संस्था मिलकर कृषि के उत्पादन केंद्र से मांग केंद्र तक आपूर्ति का हिस्सा बनेंगे उस दिन उसका बिजनेस चलने लगेगा । आप वैज्ञानिक तरीके से खेती करके, गुणवत्ता में सुधार और बेचने का तरीका बदलिए कारोबार चलेगा ।
बदलाव- पूर्वांचल के किसानों को कोई संदेश देना चाहेंगे ?
डॉ. एके सिंह- यही कहना चाहूंगा कि मैं आपके साथ हूं बस आप लोग समूह बनाकर काम करने की कोशिश कीजिए । जिला कृषि अधिकारियों से लगातार संपर्क में रहिए । कोई भी अधिकारी आपको मना नहीं करेगा । अगर आपका समूह बड़ा है तो अधिकारी आपके घर तक आ जाएंगे । साथ ही सरकारी योजनाओं का भी फायदा उठाइए । व्यापारिक रूप से खेती कीजिए । बागवानी आपके लिए एक अच्छा विकल्प है । बस आप अपनी मानसिकता और तरीका बदलिए देखिए आपकी जिंदगी में बदलाव आना शुरू हो जाएगा ।
बदलाव से बात करने के लिए धन्यवाद ।