जेठ की दुपहरी और गांव में पीपल की शीतल छाया में करीब 10 दिन गुजारने के बाद जब पिछले हफ्ते दिल्ली लौटा तो मन उदास सा रहने लगा। अब इसके पीछे गांव की यादें थीं या फिर दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा ये समझने की फुरसत ही नहीं मिली। इस बीच साथी रंजेश शाही ने अचानक ऋषिकेश भ्रमण का प्लान बनाया।
मौका और वक्त दोनों सही था। ऑफिस में डबल साप्ताहिक अवकाश था लिहाजा रंजेश भाई का ऑफर ठुकराने का कोई औचित्य नजर नहीं आया । मुंबई छोड़ने के बाद शायद हम दोनों का ये पहला टूर एक साथ बन पाया। लिहाजा हम दोनों 24 मई की सुबह 8 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट की ओर बढ़ चले। वहां से बस ली और कुछ घंटे के सफर के बाद ऋषिकेश पहुंच गए।
देवभूमि में कलकल करती निर्मल गंगा मानो हमारा वेलकम कर रही हो। हम दोनों की योजना गंगा किनारे ठहरने की थी और हुआ भी सबकुछ योजना के मुताबिक। रात में जब शहर सो गया तो गंगा मधुर गीत सुनाने लगी। लग रहा था जैसे मां लोरी सुना रही हो। ऊपर से पवन देव हौले हौले अपनी शीतलता से मौसम को खुशनुमा बनाए हुए थे। मैं बाहर खुले आसमान के नीचे बैठकर गंगा पार पहाड़ों पर बने आशियाने के बीच टिटटिमाती रौशनी देख ऐसा लग रहा था कि घने बादलों के बीच आकाशगंगा धरती को निहार रही हो ।
1999 के बाद पहली बार इत्मीनान से ठहर कर ॠषिकेश को देखने का सौभाग्य मिला। गंगा बीच रिसार्ट, लक्ष्मण झूला के बिल्कुल पास है। इतना मनोरम दृश्य देख मन वहीं रम गया। ऐसा लगने लगा कि काश ये रात यहीं रुक जाती। भीगी भीगी सुहानी ऋतु का आनंद बिना ऋषिकेश आए नहीं मिल सकता। वैसे तो मैं सरयू किनारे का रहने वाला हूं। 25 साल तक सरयू की गोद में ही पला बढ़ा । ये अलग बात है कि पिछले 10 साल से कंक्रीट के जंगल में गुजर-बसर करने को मजबूर हूं। कंकरीट के शहर में प्रकृति से कम विकृतियों से ज्यादा पाला पड़ता है। फिर भी बहुतेरे अच्छे लोग हैं जिन्हें देख कर और उनके साथ रहकर कंकरीट के जंगल का खौफ थोड़ा कम हो जाता है।
हम जैसे लाखों लोग हर साल ऋषिकेश जाते हैं ताकि रिफ्रेश हो सकें। जंगल की उबाऊ आबोहवा से निकलकर खुली सांस और शुद्ध वातावरण में कुछ पल बिताने पर एक बात का एहसास जरूर हुआ कि प्रकृति आपको ऊर्जा देती है तभी तो लोग ऐसी जगहों पर खिंचे चले आते हैं। खैर 24 मई की रात ऋषिकेश में कब गुजर गई पता ही नहीं चला। सुबह की पहली किरण के साथ ही हम लोग तैयार हुए और निकल पड़े गंगा की सैर पर यानी करीब 9 किमी की रॉफ्टिंग के लिए। रात के वक्त गंगा को दूर से निहार रहा था लेकिन दिन के उजाले में गंगा की गोद में बैठकर, गंगा की लहरों पर खेलने का आनंद ही कुछ और था। करीब दो घंटे की लंबी रॉफ्टिंग के बाद हम लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई और फिर निकल पड़े लक्ष्मण झूला का आनंद उठाने। कुछ पल यहां गुजराने के बाद हम लोग लौट आए रिसॉर्ट।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रिय । मोबाइल नंबर- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।