नीतेश राणा
“क्या हमारा समाज आज़ादी के 70 सालों बाद भी औपनिवेशिक दंभ और दासता से मुक्त हो पाया है? ” ये सवाल बार-बार मेरे जेहन में कौंध रहा है। भारत का संविधान समानता, बोलने की आज़ादी, कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। ये देखकर काफी पीड़ा होती है कि खुले आम जातीय और वर्गीय भेदभाव की घटनाएं होती हैं और संविधान का मखौल बनाया जाता है। तैलीन लिंगदोह की घटना इसी सोच की पीड़ादायक अभिव्यक्ति है।
पूर्वोत्तर की इस महिला के साथ तथाकथित ‘एलिट’ दिल्ली गोल्फ क्लब में खुलेआम जातीय भेदभाव हुआ, उसे अपमानित किया गया। मुझे इस बात में गहरा संदेह है कि- उसे महज उसकी पारंपरिक वेश-भूषा की वजह से कल्ब के सदस्यों ने अपमानित किया, या मामला कहीं इससे ज्यादा गंभीर है? या फिर ऐसे लोगों में ग्रामीण (पारंपरिक) परिवेश को लेकर गहरी घृणा का भाव है? सवाल बड़ा है- आज़ाद भारत के किसी नागरिक को किस आधार पर किसी पब्लिक प्लेस में दाखिल होने से रोका जा सकता है?
एम पी बेजबरुआ की रिपोर्ट को भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है। भारतीय दंड विधान में धाराएं 153-सी और 509-ए को जोड़ा गया है, जिसके मुताबिक जातीय भेदभाव गैर-जमानती दंडात्मक अपराध हो चुका है। हालांकि, अभी इसे अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। यहां ये एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि अभी तक भारत में जातीय भेदभाव को लेकर कोई क़ानून अस्तित्व में नहीं है, जिसके आधार पर कार्रवाई हो। जब कभी ऐसी पीड़ादायक घटनाएं समाज में होती हैं, तो मैं एक सवाल खुद से पूछता हूं- हमें विदेशी धरती पर हिंदुस्तानियों के साथ होने वाले जातीय भेदभाव की निंदा करने का क्या हक है, जबकि हम खुद बड़ी बेशर्मी से अपनी ही ज़मीन पर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं?
तैलीन लिंगदोह की घटना में हुई नाइंसाफी और मनमाने रवैये के बारे में सोचता हूं तो ये जरूरी हो जाता है कि एक बार एलिट कहे जाने वाले दिल्ली गोल्फ क्लब के इतिहास पर भी एक नज़र डाल ली जाए। कल्ब की स्थापना नगर निगम की एक यूनिट के तौर पर 1947 में हुई लेकिन 1950 में इसे कॉरपोरेट संस्थान में तब्दील कर दिया गया। 1996 से दिल्ली गोल्फ क्लब 1956 के कंपनी एक्ट के तहत पंजीकृत है।
गौरतलब है कि ऐतिहासिक इंडिया गेट से महज कुछ दूरी पर दिल्ली गोल्फ क्लब को करीब 180 एकड़ जमीन लीज पर दी गई। इसका मकसद गोल्फ के खेल को बढ़ावा देना बताया गया। लीज के एक्सटेंशन का प्रावधान भी रखा गया। इसी के तहत 1994 में लीज को 20 साल के बढा दिया गया, जो 1991 से 2010 तक प्रभावी थी। 2002 में इस लीज को एक और विस्तार मिला 2011 से 2020 तक, और फिर इसे बढ़ाकर 2050 तक कर दिया गया। देश के सबसे प्राइम इलाके की इस प्रॉपर्टी के लिए दिल्ली गोल्फ क्लब महज 5.82 लाख रुपये का सालाना शुल्क अदा कर रहा है। सूत्रों की माने तो गोल्फ क्लब में फिलहाल महज 2500 से 3000 सदस्य हैं जो 180 एकड़ ज़मीन का उपभोग अपने शाही शौक के लिए कर रहे हैं। यहां तक कि शिकायतें ये भी हैं कि आरटीआई के तहत सूचनाएं मांगे जाने पर भी दिल्ली गोल्फ क्लब के अधिकारी याचिकाकर्ता को पूरी सूचनाएं देने से कतराते रहे हैं।
दिल्ली गोल्फ क्लब बेहद चुनिंदा लोगों को सदस्यता प्रदान करता है। इसके सदस्य अपने मनोरंजन के लिए प्रचुर सब्सिडी का लाभ उठा रहे हैं। क्लब के सदस्य गोल्फ के नाम पर मानो औपनिवेशिक सोच का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यहां ये उल्लेख करना अहम है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मशहूर गोल्फर सामान्य पृष्ठभूमि से ही आए हैं। तो सवाल ये कि गोल्फ क्लब के सदस्य गोल्फ के प्रोमोशन में ऐसा कौन सा महान योगदान दे रहे हैं? या ये सत्ता के गलियारे में सेल्फ-प्रोमोशन का जरिया भर है?
कई परेशान करनेवाले और विवादित मुद्दों का निपटारा किया जाना चाहिए। मेरा सवाल आम आदमी के हितों से जुड़ा है- ” क्या ये सही वक़्त नहीं है कि गोल्फ प्रोमोशन के नाम पर मनमाने तरीके से इस्तेमाल की जा रही इस ज़मीन की लीज़ को रद्द कर दिया जाए और ये ज़मीन ज़्यादा जरूरी सामूहिक उद्देश्यों, कार्यों के लिए राष्ट्र के लोगों को वापस लौटा दी जाए। या फिर इस दिल्ली क्लब में सभी को फ्री एंट्री मुहैया कराई जाए ताकि कुछ चुनिंदा लोगों का एकाधिकार इस क्लब पर ख़त्म हो। ”
दिल्ली गोल्फ क्लब में घटे इस तरह के घृणित वाकये के नतीजे चाहे जो भी हों, लेकिन तैलीन लिंगदोह के दिलो-दिमाग में जो ज़ख़्म इस घटना की वजह से हुए हैं, वो शायद ता-उम्र नहीं भरे जा सकेंगे।
नीतेश राणा। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट। एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (वित्त मंत्रालय) के कानूनी सलाहकार। सेंट स्टीफेंस, दिल्ली से उच्च शिक्षा। जवाहर नवोदय विद्यालय, पूर्णिया में शुरुआती तालीम। संघर्ष की अहमियत को समझने वाले एक अधिवक्ता, जिनके जेहन में सामाजिक संवेदनाएं जिंदा है, उसके लिए लड़ने की ललक बाकी है। आप इनसे 011 – 26288553, 41651977 या मोबाइल 9811692022 पर संपर्क कर सकते हैं।
नीतेश राणा जी की चिंता जायज है लेकिन इस सामाजीक भेदभाव की जड हमे पूंजीवादी वर्ग व्यवस्था मे तलाशनी होगीः। भारतीय संविधान में उल्लिखित जिस स्वतंत्रता , समानता और बंधुत्व की बात कही गयी है वह केवल कहने भर के लिए हैः यह तो आपके ही शब्दों मे ‘एलीट’वर्ग को ही प्राप्त है। पूंजीवादी व्यवस्था का यह चरिर मूल रूप से जन विरोधी है। ऐसे तमाम भारत दभाव से मुक्ति के लिए हम सबो को पूजीवाद विरोधी समाजवादी क्रांति को हर हाल मे सफल करना ही होगा।नहीं तो बडी मछलियां छोटी को निगलती ही रहेंगी और हमसभी इस कुदरती न्याय को महिमामंडित करते हुए आम आवाम के खिलाफ चल रहे जुल्म का मूक दर्शक ही बने रहेंगे।