पहले हम पापा के साथ रहते थे, अब पापा हमारे साथ रहते हैं…

पहले हम पापा के साथ रहते थे, अब पापा हमारे साथ रहते हैं…

दयाशंकर

आपके परिवार में कौन-कौन है. मैं पत्‍नी और दो बच्‍चे. अब परिवार का यह सामान्‍य परिचय हो गया है. हर कोई कुछ इसी तरह से अपने परिवार के बारे में बताता है. अगर कोई पुराना मित्र, दोस्‍त मिल जाए तो बात आगे बढ़ जाती है, ‘और माता-पिता’. वह हमारे साथ ही रहते हैं! यह आए दिन दो परिचित, मित्र के बीच होने वाले संवाद का सरल उदाहरण है. लेकिन जरा ठहरिए, जब आप युवा थे, करियर शुरू नहीं हुआ था, तब.

आप क्‍या कहते थे! तब आप कहते आपने माता-पिता का परिचय देते हुए कहते थे कि आप उनके साथ रहते हैं. दोनों बातों के व्‍याकरण में अंतर नहीं है, लेकिन ‘अर्थ’ में गहरा अंतर है. पहले आप परिवार के साथ रहते थे, लेकिन अब परिवार आपके साथ रहता है. पहले मालिक पिता थे, अब आप हो गए हैं! यह आपके स्‍टेटस को बदलने वाला वाक्‍य है. हम इस पर कई तरह के तर्क कर सकते हैं, लेकिन असल में यह आपके ‘मेंटल स्‍टेटस’ में आ रहे परिवर्तन का सटीक उदाहरण है.

हम भारतीय पिता के रिटायरमेंट को बहुत ज्‍यादा अहमि‍यहत देते हैं. जब तब वह काम कर रहे होते हैं, हम ‘उनके साथ’ रहते हैं, लेकिन जैसे ही वह रिटायर हो जाते हैं, ‘वह हमारे साथ’ रहने लग जाते हैं! 30 सितंबर, रविवार की शाम बेहद आत्‍मीय रही. गाजियाबाद के वसुंधरा में एक प्रतिष्ठित स्‍कूल के सभागार में ‘बदलाव और ढाई आखर फाउंडेशन’ ने ‘इंटरनेशल वर्ल्‍ड सिटीजंस डे’ के बहाने बुजुर्गों से सुंदर संवाद ‘कल और आज : कुछ अपनी कहें, कुछ हमारी सुनें’ का आयोजन किया था। शिक्षक, चिंतक, कवि, पत्रकार और समाजशास्‍त्री, काउंसलर्स इस संवाद का हिस्‍सा थे.

हम सबकी बातों के बीच कवि मंगला प्रसाद यादव ने अपनी एक कविता में उस ओर संकेत किया, जिस पर हमारी नजर जाती तो है, लेकिन वह हमारी सोच से बाहर है. रिश्‍तों में आ रही दरारों, बनती दीवारों के बीच उनके शब्‍द सीधे अंतर्मन पर असर करते हैं, ‘पहले हम पापा के साथ रहते थे, अब पापा हमारे साथ रहते हैं…’ हमने, आपने अक्‍सर इसे निजी, सार्वजनिक संवाद में महसूस किया होगा. जब तक पिता सक्षम हैं, कमा रहे हैं, वह आर्थिक रूप से सक्षम हैं, हम यही कहते हैं, हम पापा के साथ रहते हैं, (यहां एक शहर में रहने, न रहने से थोड़ा अंतर हो सकता है, इसलिए इस बात को तथ्‍य से अधिक भाव\संदर्भ में समझने की जरूरत है) लेकिन जैसे ही हम संपन्‍नता की गली में मुड़ते हैं, अचानक पिता और मां हमारे साथ रहने लगते हैं.

यहां यह समझना बेहद जरूरी है कि यह केवल शब्‍दों की बुनावट भर नहीं है. शब्‍द हमारी भावना के प्रतिनिधि हैं. उनके साथ हमारे विचार, श्रद्धा संबंद्ध होती है. बच्‍चा, जो आपकी नजर में छोटा है. लेकिन असल में वह हमारे बीच सबसे गहराई, संवेदना से चीजों को महसूस करने वाला है, सबकुछ देख समझ रहा है. वह इस ‘शिफ्टिंग’ को बखूबी नोटिस कर रहा है, कैसे दादा जी परिवार में नंबर ‘टू’ की ओर बढ़ रहे हैं और आप यानी बच्‍चे के पिता नंबर ‘वन’ हो रहे हैं. बच्‍चे के अनुभव, उसकी नजर में कुछ ‘छोटा-बड़ा’ नहीं है, वह तो हर चीज को बस समझने की कोशिश में है.

अगर उसने इस पॉवर शिफटिंग को समय की सच्‍चाई के अनुसार समझ लिया तो आप यह लिखकर रख लीजिए कि आपके रिटायर होते ही/ उसके सक्षम होते ही वह आपको उससे बदतर स्थिति की ओर ले जाएगा, जहां आप उसके ‘दादा’जी को ले जा रहे हैं. बच्‍चे व्‍यवहार से अधिक ‘कैसे’ और क्‍यों को ध्‍यान में रखते हैं. आपने बच्‍चे की पिटाई कर दी, इसमें वह पिटाई से अधिक इस बात को नोटिस में रखते हैं कि पिटाई किस बात पर और किन शब्‍दों के साथ हुई. इस बारे में अनेक शोध, मनोचिकित्‍सक अपनी राय दे चुके हैं कि बच्‍चों के सामने कही गई बातें उसके मन पर बहुत गहरा असर करती हैं. आगे चलकर शायद आप अपना व्‍यवहार बदल लें, लेकिन आपके शब्‍द उसके दिमाग में कहीं अधिक गहराई से जमे रहते हैं.

दादा-दादी, नाना-नानी, चचरे भाई-बहन, चाचा-चाची, मौसी और वह सभी रिश्‍ते जिनसे हमारा ‘कुटुंब’ बनता है, माता-पिता जितने ही मूल्‍यवान हैं. बच्‍चों की शिक्षा जरूरी है, लेकिन अगर उस शिक्षा में मूल्‍य नहीं हैं, मनुष्‍य की कद्र नहीं है, रिश्‍तों की ऊष्‍मा नहीं है, तो आगे चलकर बच्‍चा ‘मशीन बनेगा, मनुष्‍य नहीं! मशीन प्रेम नहीं करती, बस वह प्रेम का भरम बनाए रखने वाली चीजें बनाती है.

और याद रखिएगा, मशीन\रोबेट मनुष्‍य के साथ नहीं रहते, हां वह मनुष्‍य के लिए काम कर सकते हैं, लेकिन उस जादुई स्‍पर्श के बिना जो हमें किसी का बेटा, भतीजा, दोस्‍त, भाई बनता है.

(जी ऑनलाइन से साभार)


दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। आप उनसे ईमेल : [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं। आपने अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है। संपर्क- डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र), वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी)