जीवन का संघर्ष और ‘डियर जिंदगी’ का फलसफा

जीवन का संघर्ष और ‘डियर जिंदगी’ का फलसफा

दयाशंकर जी के फेसबुक वॉल से साभार

कभी-कभी गुस्‍से की छाया, निराशा, ठगे जाने के बोध के बीच हम स्‍वयं को ऐसी चीजों से साबित करने में जुट जाते हैं, जिनसे हमारी मूल योग्‍यता का कोई रिश्‍ता नहीं होता. ऐसा करते हुए हम गुस्‍से को यू-टर्न देने की कोशिश में होते हैं, यह जानलेवा हो सकता है! इतना अधिक कि वह अपने भीतर आत्‍महत्‍या का बीज बोने जैसा है। वह मित्र के मित्र हैं। उनकी छवि एक ऐसे व्‍यक्ति के रूप में है, जो हमेशा शांत रहते हैं। कभी गुस्‍से में नहीं दिखते। हर बात पर अक्‍सर उनका उत्‍तर ऐसा होता है, जैसा आप चाहते हैं। इसलिए अगर कभी उनकी आवाज में गुस्‍सा मिले, तो मुझे चिंता होती है। कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ। मुझे उनकी आवाज में चिंता से अधिक गुस्‍सा मिला। हमने जल्‍द मिलने का फैसला किया। इस मुलाकात में उन्‍होंने जो बताया वह बहुत अधिक डारावना, चिंता में डालने के साथ सजग करने वाला भी रहा, क्‍योंकि ऐसा हममें से किसी के साथ भी हो सकता है।

सांकेतिक चित्र

सजग शास्‍त्री की कुछ दिन पहले अपने बॉस से अनबन हो गई। दोनों के बीच कटुता इतनी हो गई कि सजग ने इस्‍तीफा देने का मन बना लिया। इसमें सजग को सबसे अधिक दुख इस बात का था कि उनसे जो कहा गया था, उसे न केवल निभाने से इंकार किया गया, बल्कि अब उनके पास जो सुनहरा अवसर सामने आ रहा था, उसके प्रति अनादर प्रकट किया गया। सजग इससे बेहद व्‍यथित हुए, क्‍योंकि उन्‍होंने बॉस के कहने पर कोई बरस भर पहले इससे भी अच्‍छा प्रस्‍ताव ठुकरा दिया था। सजग ने उनसे कुछ नहीं कहा, लेकिन उनका गुस्‍सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। पारिवारि‍क जिम्‍मेदारियों के कारण यह भी संभव नहीं था कि अपने सामने दूसरा विकल्‍प न होने पर भी वह नौकरी छोड़ दें।

ऐसे में अचानक उनका अपने गांव जाने का रेल टिकट कंफर्म नहीं हुआ। उन्‍हें लगा कि हर जग‍ह उनके मन का काम नहीं हो पा रहा, परेशानी कहां, क्‍या है! जाहिर है, गांव में उन्‍होंने आने का वादा कर दिया था। उनके अंदर ऑफिस का गुस्‍सा तन के मैल जैसा बैठ गया। आखिर मैल क्‍या है, वह त्‍वचा के प्रति हमारी अनदेखी ही है। अचानक सजग ने अपनी नई कार, जिसे चलाने में वह स्‍वयं को दक्ष कहने से आज भी संकोच करेंगे, लभभग 1200 किलोमीटर लंबी दूरी के लिए सड़क पर उतार दी। एक्‍सप्रेस वे, भारी-भरकम यातायात के बीच, ट्रक के जोदरार हॉर्न से भी चौंक जाने वाले ने इस यात्रा का फैसला ले लिया। गांव जाने-आने के लिए ‘सड़क’ को चुनने के फैसले को आप केवल एक फैसले से समझेंगे, तो नहीं समझ पाएंगे। यहां ठहरकर सोचिए कि उन्होंने गुस्से की छाया में ऐसा फैसला लिया, जो वह सामान्‍य होने पर कभी नहीं लेते! क्‍योंकि इससे पहले जब भी ऐसे मौके आते, वह कहते, ‘अभी, अनुभव नहीं है, किसी तरह शहर में चल लेते हैं, यही पर्याप्‍त है।

यह सब जानने के बाद भी अगर यह हुआ, तो इसका कारण क्‍या यही है कि कभी-कभी गुस्‍से की छाया, निराशा, ठगे जाने के बोध के बीच हम स्‍वयं को ऐसी चीजों से साबित करने में जुट जाते हैं, जिनसे हमारी मूल योग्‍यता का कोई रिश्‍ता नहीं होता। ऐसा करते हुए हम गुस्‍से को यू-टर्न देने की कोशिश में होते हैं, यह जानलेवा हो सकता है! इतना अधिक कि वह अपने भीतर आत्‍महत्‍या का बीज बोने जैसा है! सड़क हादसे अक्‍सर दिमाग में चल रहे ऐसे स्‍पीड ब्रेकर का परिणाम होते हैं, जिनका जन्‍म घर, रिश्‍तों की टकराहट से हुआ है। हमें पता ही नहीं चलता कि कब यह बन जाते हैं, बनते ही ऐसा रूप धारण कर लेते हैं कि हमारा बिगड़ा संतुलन जीवन पर भारी पड़ जाता है।

सजग इतने ज्‍यादा व्‍याकुल, परेशान, क्षुब्‍ध थे कि उन्होंने ये सब अपने ऐसे दोस्‍त से भी यह सब नहीं बताया, जो उनकी पहली नौकरी से लेकर अब तक के हर छोटे-छोटे फैसले का साक्षी है। जिससे सजग यूं ही हर दिन नियमित रूप से बतियाते हैं। सजग ने यात्रा से लौटते ही तुरंत इस्‍तीफा दे दिया। जिसके बाद अब वह सामान्‍य हो रहे हैं, लेकिन जब मैंने उनका ध्‍यान गुस्‍से के यू-टर्न की ओर दिलाया, तो वह भी चौंके। कुछ भावुक होते हुए बोले, ‘मैं बहुत ज्‍यादा दुखी, गुस्‍से में था!’ उम्‍मीद है, धीमे-धीमे वह स्‍वस्‍थ हो जाएंगे। लेकिन हम उनसे मिला सबक जितनी जल्‍दी सीख लें, उतना अच्छा होगा। जीवन उतना सुखी, प्रसन्‍न और जिंदगी ‘डियर’ बनी रहेगी!


दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। आप उनसे ईमेल : [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं। आपने अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है। संपर्क- डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र), वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी