गोरखपुर में मासूमों की मौत पर पूरे देश में गुस्सा है और होना भी चाहिए । अब वक्त आ गया है जब हमें और आपको समान स्वास्थ्य और समान शिक्षा के लिए लड़ाई का बिगुल फूंक देना चाहिए । आखिर कब तक गरीब का बच्चा भगवान भरोसे जीता रहेगा । आखिर कब तक हम गरीब को उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ते रहेंगे । इसमें उसका क्या कसूर है, क्या कसूर है उन मासूमों का जिनकी अभी ठीक से आंखें भी नहीं खुली थी । आखिर ये बच्चे किसके थे, क्या किसी उद्योगपति या फिर राजनेता के थे या फिर किसी नौकरशाह के । नहीं बिल्कुल नहीं, ये बच्चे दो देश की आम जनता के थे, आम जनता यानी गरीब जनता जो हमेशा से भगवान भरोसे ही जिंदा रहती आई है । गुलामी के दौर में अंग्रेजों का जुल्म झेला और आजादी के बाद सफेद लिबास में लिपटे नेताओं की गुलामी झेल रही है । क्या कोई ये बता सकता है पिछले कुछ सालों में गोरखपुर में दिमागी बुखार से जितनी भी मौतें हुई हैं उसमें कितनी संख्या अमीर और राजनेताओं के परिवार की है । हो सकता है इक्का-दुक्का हो भी, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि मरने वालों की ज्यादातर संख्या गरीबों की ही रही हैं ।
अकेले गोरखपुर में हर साल सैकड़ों जानें हर साल जाती हैं । आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाएगा कि सरकार किसी की भी हो मरने वालों के आंकड़ों में कोई खास कमी नहीं आई। इसी साल के आंकड़ों की बात करें तो अब तक दिमागी बुखार से 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं । जबकि इंसेफलाटिस के प्रकोप का अभी महज एक महीना ही बीता है । क्योंकि जानलेवा दिमागी बुखार जुलाई से शुरू होता है और नवंबर तक इसका प्रकोप बना रहता है । फिर भी हमारी सरकारें कोई ठोस उपया नहीं कर पाती है । हालांकि हर साल सरकारें इंसेफलाइटिस से लड़ने का दंभ खूब भरती हैं ।
खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान दिमागी बुखार को चुनावी मुद्दा तक बनाने में पीछे नहीं रहे और उसे जड़ से उखाड़ फेंकने का भरोसा भी दिया । लिहाजा दिमागी बुखार से पीड़ित पूर्वांचल की जनता ने सीटों से मोदी की छोली भी भर दी लेकिन मोदी सरकार ने तीन साल पूरे होने के बाद भी आम जनता को निराश किया । हाल ही में गोरखपुर में एम्स के उद्घाटन के दौरान एक बार फिर पीएम मोदी ने अपने वाये को दोहराया लेकिन हुआ कुछ नहीं । मौतों का आंकड़ा रुकने का नाम ही नहीं लिया ।
इस बीच गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ जब यूपी के सीएम बने तो लोगों की उम्मीदें एक बार फिर बढ़ गईं सोचा योगीजी तो अपने हैं, उन्हें तो उनका दर्द जरूर पता होगा । शायद पता भी है इसीलिए तो सीएम योगी हर महीने गोरखपुर का दौरा भी करते हैं । अब ये अलग बात है कि गायों को चारा खिलाते हैं, पूजा-पाठ भी खूब करते हैं, लेकिन जनता की फिक्र कितनी है ये उनके गोरखपुर दौरे के महज कुछ घंटों बाद हुई मासूमों की मौत से समझा जा सकता है । हैरानी की बात तो ये है कि सीएम साहब घटना के दो दिन बाद भी गोरखपुर के बीआरडी (बाबा राघव दास ) मेडिकल कॉलेज जाने की जहमत नहीं उठा पाये । सीएम साहब के पास दूसरे कामों के लिए वक्त रहा लेकिन गोरखपुर की जनता के दुख में जाने का समय नहीं रहा । उन्होंने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को फौरन गोरखपुर भेज तो दिया, लेकिन सिद्धार्थनाथ सिंह तो योगी जी से भी ज्यादा तेज निकले और उन्होंने तुरंत जांच भी कर ली और ये नतीजा भी निकाल लिया कि अस्पताल में मासूमों की मौत गैस सिलेंडर की कमी से नहीं हुई है । हालांकि स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ ये नहीं बता सके कि फिर बच्चों की मौत की असल वजह क्या है ।
स्वास्थ्य मंत्री के बयान से शुरू हुई सियासत बदस्तूर जारी है । यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने सरकार पर सच छिपाने का आरोप लगाया और मुआवजे के रूप में पीड़ित परिवार को 20-20 लाख रुपये देने की मांग कर डाली । जैसा कि हमेशा इस देश में होता रहा है, जिंदा लोगों की फिक्र किसी को नहीं होती मरने के बाद हर कोई फिक्रजदा हो जाता है । मुआवजे का मरहम लगाया जाता है और धीर-धीरे लोग मौत को भूल जाते हैं, लेकिन असल समस्या जस की तस बनी रहती है । यही वजह है कि आज तक गोरखपुर समेत पूर्वांचल के तमाम जिले हर साल अपनों को खोने का दर्द झेल रहे हैं ।
ऐसा नहीं है कि ये बीमारी महज यूपी में ही हावी है, बल्कि पिछले 40 सालों से देश के 19 प्रदेशों में इसका प्रकोप हर साल देखने को मिलता है । पहली बार 1977 में इंसेफलाइटिस का मामला सामने आया था । ये दो तरह की होती है । पहला जापानी इंसेफलाइटिस जिसे हम जापानी बुखार भी कहते हैं जो मच्छरों के काटने से पैदा होती है । अच्छी बात ये है कि जापानी बुखार का टीका इजात कर लिया गया है जिससे मरीजों का इलाज हो जाता है, लेकिन जेईएस नाम से जाना जाने वाला इंसेफलाइटिस जो गंदे पानी की वजह से फैलता है इसका कोई टीका अभी तक नहीं इजात किया जा सका है । यानी इसके लिए सुरक्षा की सबसे बड़ा उपया है । फिर सवाल उठता है कि आखिर हमारी सरकारें साफ-सफाई और शुद्ध पानी का इंतजाम क्यों नहीं करती, जबकि सफाई के प्रचार-प्रसार के नाम हर साल करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये जाते हैं, फिर ऐसी नौबत क्यों आती है ? हमें आपको इस बात पर जरूर विचार करना चाहिए ।
हमें आपको बांटकर रखना सियासतदानों का पुराना तरीका है ताकि हम और आप आपस में उलझे रहें और मूल समस्या को उनके सामने ना उठायें । जैसा कि इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब देखने को मिल रहा है । एक तबका सरकार को गाली देता है तो एक तबका सरकार की गलत नीतियों और लापरवाही को भी जायज ठहराता है । इसलिए जब तक हम और आप अपने अधिकार के लिए सजग नहीं होंगे तब तक ये मौते यूं ही होती रहेगी । आज 30 मौते हुई हैं, कल ये आंकड़ा 300 नहीं होगा इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेगा ।
अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।