बिहार में हर तरफ छठ की छटा बिखरी है । नदी किनारे बने घाट सजे हुए हैं। शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ छठ की औपचारिक शुरूआत हुई । रविवार को डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। ऐसे में रक्सौल की प्रदूषित सदानीरा नदी ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है । ऐसी लोकमान्यता है कि सदानीरा नदी के पवित्र जल से छठ पर्व में सूर्य को दिये जानेवाले अर्घ्य से दूध व पूत के रक्षा की याचना पूरी होती है, लेकिन जब यही जल इतना दूषित हो गया हो जिसका एक घूँट भी हम पीना पसंद न करते हो तो भला अपने ईष्ट को इसका अर्घ्यदान कैसे करेंगे। यह बात इन दिनों सीमायी इलाकों के छठव्रतियों के दिमाग में बिजली सी कौंध रही है। हम बात कर रहे हैं हिमालय के गर्भ से निकली सदानीरा सरिसवा नदी की। नेपाल से निकलने वाली ये नदी भारत में रक्सौल में इतना दूषित हो गई है कि नदी का पानी बिल्कुल काला पड़ गया है।
छठ के बहाने सरिसवा नदी को बचाने व इसे अविरल करने का संकल्प सीमांचल की जनता व छठ व्रतियों ने लिया है। सरिसवा नदी बचाव आंदोलन के बैनर तले बाबा मठिया स्थित सरिसवा नदी के तट पर सैकड़ों छठ व्रतियों को साड़ी और नारियल वितरित किया गया। इस अवसर पर व्रतियों व जनता को सरिसवा नदी को गन्दा नहीं करने और इसके अस्तित्व की रक्षा का संकल्प दिलाया गया।
12 गुणा अधिक है नदी के जल में टीडीएस
आंदोलन से जुड़े लोगों आर ओ एक्सपर्ट से नदी के किनारे बसे घरों से पेयजल की जाँच करायी तो चौकानेवाला परिणाम सामने आया। आरओ एक्सपर्ट पंकज झा और सुमित कुमार से कराई गई जांच में पानी में 12 गुणा अधिक टीडीएस पाया गया। औसतन पानी में टीडीएस ( टोटल डिजलभिंग सॉल्ट) 30 से 40 % होनी चाहिये। जबकि सरिसवा नदी की पानी में टीडीएस 230 -240 % हो गया है। इस से नदी किनारे बसे आधा किलोमीटर के आसपास के लोग प्रभावित होंगे।
शुक्रवार को कार्यक्रम में भारतीय सीमा पर नदी किनारे कूड़ा-कचरा को बीरगंज नगरपालिका द्वारा डम्प करना मानवता के खिलाफ है। इस कचरे से उत्पन बैक्ट्रिया सरिसवा नदी के माध्यम से रक्सौल को बीमार कर रही है। सरिसवा नदी बचाओ का नारा लिख कर 551 दीपो को प्रज्ज्वलित कर छठ व्रतियो को संकल्प दिलाया गया। सरिसवा नदी बचाओ आन्दोलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार सिन्हा ने छठ बाद अनिश्चितकालीन आंदोलन की चेतावनी दी ।नदी का जल प्रदूषित होने को लेकर भारत-नेपाल के कई संस्थाओं व पर्यावरणविदों की ओर से लगातार होता रहा है। वावजूद इसके अब तक इस दिशा में कोई कारगर पहल नहीं होने से आन्दोलन ही एक मात्र बिकल्प बचा है । इससे पहले भी पर्सा जिला प्रशासन कमेटी ने जांच कर वीरगंज उद्योग नगरी के 48 उद्योगों को सरिसवा नदी प्रदूषण के लिए आरोपित किया था। पर कोई कार्रवाई नही हुई।
कुणाल प्रताप सिंह। एमएस कॉलेज मोतिहारी के पूर्व छात्र। समाजसेवी और पत्रकार। इन दिनों इंडिया टुडे से जुड़े हुए हैं। हिंदुस्तान, प्रभात खबर और चौथी दुनिया के साथ भी पत्रकारिता के अनुभव बटोरे। लोक अदालत के सदस्य के बतौर सैंकड़ों छोटे-मोटे झगड़ों के निपटारे में अहम भूमिका निभाई।