चंबल प्रतिनिधि, बदलाव
चंबल नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में डाकुओं के आतंक की कहानी कौंधने लगती है, लेकिन बहुत कम लोग ही होंगे जो चंबल के गौरवमयी और क्रांति से ओत-प्रोत दास्तां से परिचित होंगे। अगर आप इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो आपको चंबल की वीरगाथाएं खुद-ब-खुद पता चल जाएंगी। 1857 की क्रांति से देश की आज़ादी का जो बीजारोपण हुआ, उसमें चंबल का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्हीं क्रांतिवीरों को याद करने के लिए पिछले दिनों चंबल की पचनदा नदी के तट पर जन संसद का आयोजन किया गया। देश की संसद की गोद में बैठकर जिस वक्त हमारी सरकार के सूरमा अपने बेमिसाल 3 साल का बखान करते नहीं थक रहे थे, उसी दौरान जेठ की तपती दुपहरी में पांच नदियों के संगम चंबल के पचनदा पर जनसंसद लगाकर देश के तमाम पत्रकार और जनता से सरोकार रखने वाले कई बुद्धजीवी चंबल के विकास पर चर्चा कर रहे थे।
हाथ में तिरंगा लिये सैकड़ों युवा चंबल की वादियों में घूमते नजर आए। जयहिंद के घोष ने हर किसी को 25 मई 1857 की क्रांतिगाथा की याद दिला दी। जनसंसद में चंबल के विकास और सरकार की योजनाओं पर चर्चा की गई। चंबल की मौजूदा दशा-दिशा पर स्थानीय लोगों ने खुल कर अपनी बात रखी और प्रस्तावित पचनदा बांध और चंबल एक्सप्रेस के नफा-नुकसान समेत हर पहलुओं पर चर्चा की गई। इन तमाम सवालों के बीच जनसंसद में सरकार के सामने चंबल के हक की आवाज उठाने का फैसला लिया गया।
चंबल के बाशिंदों की प्रमुख मांगें
1. चंबल की बुनियादी समस्याओं का अध्ययन कर निदान किया जाय
2. चंबल की एतिहासिक धरोहरों को संरक्षित कर पर्यटन से जोड़ा जाय
3. युवाओं को रोजगार के साधन मुहैया कराये जाएं ताकि पलायन रुक सके
4. नदियों पर पुल का निर्माण कराया जाए और गांवों को मुख्यालय से जोड़ा जाये
5. चंबल की सांस्कृतिक धरोहर और लोकगीतों को सहेजने का इंतजाम हो
6. लोकनायक जयप्रकाश के सुझावों को अमलीजामा पहनाया जाये
7. चंबल में व्याप्त कुप्रथाओं पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाये जाएं
8. चंबल में शूट की जाने वाली फिल्मों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा चंबल के विकास पर खर्च हो
9. चंबल की गौरवशाली पहचान बनाए रखने के लिए चंबल संग्रहालय बने
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैली क्रांतिकारियों की शरण स्थली चंबल आजादी के 7 दशक बाद भी उपेक्षित है। पचनदा का बहता पानी जितना शांत, ठहरा और साफ़-सुथरा दिखता है, बीहड़ के लोगों की जिंदगी उतनी ही उथल-पुथल भरी है। हमेशा से चम्बल घाटी को ‘डार्क ज़ोन’ बनाकर उसके साथ अन्याय किया गया जबकि उसके गर्भ में मौजूद खनिज तत्वों का खूब दोहन हुआ है। चंबल के बीहड़ों में आयोजित ‘जन संसद’ का मकसद चंबल के बाशिंदों की तपिश से देश और सरकार को अवगत करना था।
जन संसद के आयोजन की पृष्ठभूमि जामिया से एमफिल के विद्यार्थी रहे युवा सिनेमाकर्मी शाह आलम और साथियों ने तैयार की। शाह आलम नै पिछले साल साइकिल से चंबल की गलियां नापीं, लोगों से मिले और उनका दुख-दर्द जाना और समझा। यही नहीं देश भर में शाह आलम ने करीब 2300 किलोमीटर की साइकिल यात्रा के जरिए क्रांतिकारियों की वीरगाथा को संजोने का भी काम किया और उसे लिपिबद्ध करने में जुटे हैं। जनसंसद में शाह आलम की ये पंक्तियां कि- मुझे ग्रन्थी, पीर, पादरी और पुजारी मत बना। मुझे इंसान रहने दे, लकीर का फ़कीर मत बना।। ने सभी का मन मोह लिया ।
जनसंसद में इतिहासकार, पत्रकार, समाजसेवी और बड़ी संख्या में आम नागरिक शामिल हुए। वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह ने बताया कि कैसे 25 मई 1857 में जब पूरे देश में क्रांति के केंद्र ध्वस्त कर दिए गए, हजारों शहादतें हुईं, महानायकों को कालापानी भेज दिया गया, उस मुश्किल घड़ी में देश भर के क्रन्तिकारियों को अगर किसी ने पनाह दी तो वह चंबल ही था। चंबल उन दिनों युवा क्रांतिकारियों की पनाहगाह बना। चंबल को क्रांतिकारियों का ट्रेनिंग सेंटर भी कहा जाता था। गंगा सिंह, रूप सिंह सेंगर, निरंजन सिंह चौहान, जंगली-मंगली बाल्मीकि, पीतम सिंह, बंकट सिंह कुशवाह, मारुन सिंह, चौधरी रामप्रसाद पाठक, गंधर्व सिंह, भैरवी, तेजाबाई, मुराद अली खां, काशीबाई, शेर अंदाज़ अली, चिमना जी, दौलत सिंह कछवाह, बरजोर सिंह, खलक सिंह दौआ जैसे हजारों क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी और उस मुश्किल वक्त में एक दशक तक आजादी की मशाल जलाए रखी।
जनसंसद में शिरकत करने आए राज त्रिपाठी ने कहा कि हमें जनसंसद के आयोजकों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जिन्होंने अपनी लगन से हमें हमारे लड़ाका पुरखों के शौर्य और साहस से परिचित कराया। मध्य प्रदेश के भिण्ड से आये युवा साहित्यकार-इतिहासकार डॉ. जितेन्द्र विसारिया ने बताया कि कैसे ‘स्वराज मंडल’ में शामिल होकर चम्बल और पचनदा के वीरों ने ग्वालियर तक रानी झाँसी और तात्या टोपे की मदद की। 18 जून 1858 के 10-12 साल बाद तक ब्रिटिश हुकूमत को टक्कर देते रहे, लेकिन अंग्रेजों ने बड़ी ही चालाकी से क्रांतिकारियों पर डाकुओं का ऐसा ठप्पा लगाया कि एक सदी बीत जाने के बाद भी नहीं मिट सका।
इस जनसंसद में बड़ी संख्या में स्थानीय महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कंजौसा की मीरा बाई निषाद ने कहा-‘ हियाँ मजूरी है नहीं, सरकार से जो थोरी बहुत योजनाएं आती हैं, वे बड़ी जाति के खाये-अघाये लोगन के पेट मेंईं समाय जाती हैं…हमाये मुहल्ला में एक हू हेण्डपम्प नईं और उनके हियाँ दुइ-दुइ, तीन-तीन। मनरेगा में भी टाइम से मजूरी नईं मिलत। जयदेवी नाम की महिला ने वर्षों से प्रस्तावित ‘पचनदा डैम’ के बनने पर विस्थापित होने वाले 184 गांवों के लोगों के पुनर्वास पर अपनी चिंता प्रकट की और कहा कि साब! पचनदा पर जो बाँध बनाओ गओ तो हम गरीब कहाँ बसाए जैहें? पूरो इलाका बेहड़ है। जो भी खेती हैं, व नदी की तीर में है। बाँध बनो तो सब डूब जैहै, तब हम का खाएँगे, काँ रहेंगे?
कार्यक्रम के आखिर में सभी का आभार सदन के स्पीकर अवधेश सिंह चौहान ने किया और अगले साल फरवरी माह में दूसरी जनसंसद का औपचारिक ऐलान किया।
चम्बल का यह संदेश देश के कोने कोने तक पहुचे। जनता की चट्टानी एकता ही उसके जीवन में सुखद विहान ला सकती है।