कुणाल प्रताप सिंह
रक्सौल का यह मुद्दा सड़क से लेकर संसद तक गूंजा। कई दफा धरना-प्रदर्शन भी हुआ। एक युवक ने इसी वर्ष जून में आमरण अनशन भी किया, जिसे तुड़वाने के लिए स्थानीय सांसद सहित पूरे प्रशासन को खासी मशक्कत करनी पड़ी। सांसद महोदय ने एक माह का समय मांगा। संसद में आवाज़ भी उठायी। रेल मंत्रालय को लिखा। बावजूद इसके समस्या जस की तस बनी रही। किसी तरह भी जब समस्या हल नहीं होती दिखी तो समाजसेवियों ने अंततः कोर्ट का सहारा लिया।
हम बात कर रहे हैं भारत-नेपाल के सीमाई शहर रक्सौल के प्रमुख समस्या क्लिंकर से प्रदूषण की। इसने शहर की आधी आबादी को साँस व फेफड़े के संक्रमण से जकड़ रखा है। इससे निजात दिलाने को लेकर पीआईएल रिट दायर की गई है। इस जनहित याचिका में रेल मंत्रालय , केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड (दिल्ली), राज्य प्रदूषण बोर्ड (पटना), स्वास्थ्य विभाग समेत 11 लोगों/संस्थाओं को पार्टी बनाया गया है।
दरअसल, नेपाल स्थित दो दर्जन से अधिक सीमेंट फैक्टरियों के लिए रॉ मटेरियल के रूप में इस्तेमाल किये जानेवाला क्लिंकर भारत के सतना से रक्सौल लाया जाता है। नेपाल के लिए आयातित सीमेंट क्लींकर रक्सौल यार्ड में ही लोडिंग-अनलोडिंग होता है। जब क्लिंकर का रैक लगता है तो रक्सौलवासियों के लिए सबसे कष्ट भरे दिन होते हैं। पूरा वातावरण क्लिंकर के डस्ट से भर जाता है। स्टेशन के आस-पास के लोगों को साँस लेना मुश्किल हो जाता है।
रक्सौल के लोगों की मांग है कि या तो इस माल को सीधा नेपाल भेजा जाय या रिहायशी इलाके से दूर लोडिंग-अनलोडिंग करायी जाय। यह मांग रक्सौलवासी लंबे अरसे से रेलवे से भी करते रहे हैं। स्वच्छ संस्था के संयोजक रणजीत सिंह की माने तो रेलवे गुड्स यार्ड में ढाई दशक से क्लिंकर उतारा जाता है। इसका प्रतिकूल प्रभाव लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। रक्सौल पीएचसी और डंकन के हेल्थ चेक अप में इस तथ्य की पुष्टि हो चुकि है कि यहां की लगभग आधी आबादी दिल और फेफड़े समेत अन्य घातक बीमारियों की चपेट में है। पिछले दिनों दायर याचिका में इस जानलेवा क्लिंकर की बीच शहर में अनलोडिंग रोकने की मांग की गयी है। साथ ही इसे सीधे नेपाल भेजने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है।
कुणाल प्रताप सिंह। एमएस कॉलेज मोतिहारी के पूर्व छात्र। समाजसेवी और पत्रकार। इन दिनों इंडिया टुडे से जुड़े हुए हैं।