दयाशंकर मिश्र आभार या खेद के फूल! हम जीवन के प्रति अपने चुनाव में इतने अस्पष्ट और द्वंद्व से भरे
Category: माटी की खुशबू
जीवन संवाद- प्रेम या नफरत ‘बदला’ छोड़ो, सुख मिलेगा
दयाशंकर मिश्र बदला किसी भी रूप में सुखकारी नहीं, बात केवल हिंसा की नहीं. प्रेम में बदले की कामना हिंसा
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और क्लारा जेट्किन की कहानी
ब्रह्मानंद ठाकुर 8 मार्च यानी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस। यह महिला दिवस क्लारा जेट्किन के नाम से अभिन्न रूप से जुड़ा
बंसी कौल की स्मृति में रंग-दस्तक
राकेश मालवीय स्मृतियां जब दस्तक देती हैं तो आपको हंसाती हैं, रुलाती हैं, गुदगुदाती हैं, कुछ जोड़ती हैं, कुछ घटाती
एक भाव का प्रेम होता है और एक अभाव का
पुष्य मित्रअभाव का प्रेम भूखा होता है और स्वार्थी भी। वह सिर्फ प्रेम चाहता है, किसी भी कीमत पर। वह
बंसी कौल को कहाँ ढूंढे रे बंदे?
सच्चिदानंद जोशीसब कुछ वैसा ही था जैसा होता है किसी नाटक के अंत में। सारे कलाकार अपने काम खत्म कर
‘मजदूर को मजबूर किया फिर किया बदनाम’
सुनील श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल से साभार उसे आप ने शराबकी दुकान पर देखा,उसकी फटी कमीज़ देखी,फटा पैंट भी देखा
क्यों कर रही हो इतना चीं-चीं ?
नीलू अखिलेश कुमार क्यों कर रही हो इतना चीं-चींकिमेरे सारे काम रुक गए हैं ।देखोशाम ढली। तुम्हारे जैसेकितने ही पक्षीलौट
बदलाव के रास्ते ‘उम्मीद की पाठशाला’ का सफर
शिरीष खरे उम्मीद की पाठशाला एक किताब भर नहीं बल्कि एक दस्तावेज है, जिसमें गोवा, महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़ के
नौकरी की तेरहवीं
पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार आज तेरहवीं हैकोई नहीं हैउसके साथवो अकेले सोच रहा हैअब क्या? उसनेनहीं रखाकोई‘श्राद्ध