गांधी के इस देश में हम कहें चाहें कुछ भी लेकिन जब बड़े मौके आते हैं तो हम अहिंसा के
Category: चौपाल
‘उन्माद’ की आग में अपने-अपने चेहरे देख लो
जेएनयू पर चर्चाओं का दौर जारी है। सोशल मीडिया पर जंग चल रही है। आपसे किए वादे के मुताबिक टीम
जेएनयू में हंगामा क्यों बरपा है… सबको पता है!
जेएनयू में ‘देशद्रोह’ पर हंगामा बरपा है। हंगामा ऐसा कि दो गुट बंट गए हैं। अब वैचारिक स्तर पर बातचीत
‘स्टार्ट अप’ से ‘स्टैंड अप’ तक… कहीं वो तमाशबीन ही न रह जाएं?
राजेंद्र तिवारी अस्सी के दशक में जब आर्थिक ‘ट्रिकल डाउन’ थ्योरी आयी थी और नब्बे के दशक में जब हमारी
मालदा से पूर्णिया तक ‘आग’ पर कोई न सेंके अपनी ‘रोटी’
कहां छिप गए वे सेक्युलर, मानवतावादी… ! पद्मपति शर्मा (फेसबुक वॉल पर) मालदा के बाद पूर्णिया ! यह हो क्या
‘घास की रोटी’ का जुमला यूं ही न उछालिए जनाब
आशीष सागर दीक्षित ” एक वो है जो रोटी बेलता है, एक वो है जो रोटी सेंकता है ! एक
ये फ़िक्र बे’कार’ नहीं, बेकार है सियासी ‘चिल्ल-पों’
सैयद जैग़म मुर्तज़ा भाई दिल्ली में बे-कार रहने वाले हम जैसे लोग तो ख़ुश हैं। पिछले पांच साल में चंद
हम चलते गए, कारवां बनता गया…
साल 2015 बीत गया और साल 2016 के सूरज ने दस्तक दे दी। पुराने साल में पाठकों से बने
गांव बीरबलपुर में 65 साल की ‘राजशाही’ का ख़ात्मा
अरुण प्रकाश क्या आप किसी ऐसे गांव के बारे में जानते हैं जहां ‘राजशाही’ रही हो। नहीं जानते हैं तो
अजीत अंजुम और मीडिया की ‘बैताल’ कथा
फेसबुक पर अजीत अंजुम की पोस्ट-एक टीवी न्यूज़ चैनल्स पर भूत /प्रेत /रहस्य /रोमांच/ डायन/ चुड़ैल और परियों की वापसी