धीरेंद्र पुंडीर हाथ पर चांद का फोटो खींच लेने से न चांद इतना छोटा होता कि हथेली पर आ जाए
Category: मेरा गांव, मेरा देश
महिला अधिकारों के ‘तलाक’ का हक किसको है?
धीरेंद्र पुंडीर बचपन में खेंतों को पार कर नदी के दूसरी तरफ बसे गांव न्यामू में जाना सिर्फ मेले के
रजत! अपनों के ‘आंसू’ की फिक्र भी कर लेते भाई
पंकज त्रिपाठी आजतक का युवा रिपोर्टर रजत सिंह। करीब 29 साल की उम्र में ही इस होनहार साथी ने बहुत कुछ
जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं…!
कुमार सर्वेश डॉ. लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं। लगता है अपने समाजवादी पितामह
वादियों के सन्नाटे के पीछे हैं ‘इंडिया वाले’
धीरेंद्र पुंडीर कश्मीर के हालात का पहला जायजा तो आपको फ्लाईट में बैठते ही हो जाता है। पहले आपको फ्लाईट
कश्मीर… उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से!
धीरेंद्र पुंडीर उसे बचाएं कैसे कोई टूट जाने से/वो दिल जो बाज न आए फरेब खाने से। कश्मीर में होना
वाराणसी हादसा- ‘गुरुमंत्र’ को क्यों नहीं माना
कुमार सर्वेश बाबा जय गुरुदेव ने कभी कहा था कि हमारे काम से किसी आम आदमी को परेशानी नहीं होनी
भोपाल में मिल रहे हैं माखनलाल के पुराने मीत
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय अपने रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में बृहद स्तर पर पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन
‘झिझिया’ से इतनी झिझक क्यों भाई !
पुष्य मित्र अगर हमें अपनी संस्कृति और लोक परंपराओं को जीवित रखना है तो उसे सिर्फ दिल में सहेजने भर
भरत मिलाप, मेला और हमारा बचपन
मृदुला शुक्ला बचपन में दशहरे पर नए कपड़े मिलने का दुर्लभ अवसर आता था । हम सारे भाई बहन नए