वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार सुबह-सुबह आज ‘बाबू’ की याद आई ! मां-पिता के गये वर्षों गुजर
Category: गांव के रंग
हरित क्रांति वाला पूर्वांचल क्या कोरोना काल में करेगा नई क्रांति ?
कोरोना काल को ‘रिवर्स पलायन’ के तौर पर भी याद किया जाएगा। शहर की चकाचौंध छोड़कर बड़ी संख्या में लोग
बस 72 घंटों में टूट गया कोरोना का लॉकडाउन… निकल पड़े अपने गांव
अरुण प्रकाश लॉकडाउन का तीसरा दिन। देश के अलग-अलग हिस्सों से गरीबों की मदद करते पुलिसवालों और आम लोगों की
मुजफ्फरपुर में दो दिवसीय ग्राम समागम
टीम बदलाव, मुजफ्फरपुर गांधी चाहते थे कि इस देश के युवा एक निश्चित लक्ष्य लेकर गांवों में जायें और वहां
सरकार कारोबारी बन रही है, JNU की जंग के मायने समझें
पुष्यमित्र अभी जिस ट्रेन से देहरादून से लौट रहा था, वह ट्रेन हावड़ा तक जाती है। जाहिर सी बात है,
‘आप लोग जैसी हिंदी बोलते हैं उसमें बहुत दोष है’
आज से करीब 30-35 साल पहले की बात है । मैं एक स्कूल में बतौर शिक्षक कार्यरत था । घर
रचना प्रक्रिया का ‘अधूरा साक्षात्कार’
पशुपति शर्मा 23 जुलाई को ग्रेटर नोएडा में बंसी दा से एक और मुलाकात। कमरे में बिस्तर पर लेटी माताजी
हक लिए आपको लड़ना ही होगा
पुष्यमित्र पारिवारिक वजहों से लगभग आधा अगस्त महीना सहरसा आते-जाते गुजरा। इस दौरान मैने महसूस किया कि सड़क मार्ग से
अपने ही गांव में आज हम अजनबी बन गए
धीरेंद्र पुंडीर अपने ही मकान में हम अजनबी या अजनबी मकान में हम कुछ भी कह पाना मुश्किल है। अकेले
भारत की समकालीन राजनीति और अविश्वसनीयता का ताना-बाना !
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से कभी-कभी भारतीय राजनीति और उस पर अपने नियमित लेखन से मन उचटने लगता