पत्रकारिता में रहते हुए पत्रकारिता धर्म निभाने की ललक पता नहीं कितने पत्रकारों में बची रह गई है? लेकिन ऐसे
Category: चौपाल
सम्मान वापसी- भावना और तर्क में किसका पलड़ा भारी?
प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति दिवाकर मुक्तिबोध देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में नामचीन साहित्यकारों, फिल्मकारों, संस्कृतिकर्मियों और वैज्ञानिकों द्वारा राष्ट्रीय
गोयनका सम्मान का ‘राम नाम सत्य’
बाबा असहिष्णु आनंद जैसे विश्व भर में सिनेमा प्रेमियों को, खुद अभिनेता-अभिनेत्रियों को, फिल्म समीक्षकों को और सिनेमा के क्षेत्र
बिना बिजली के चुनावी ‘करंट’ दौड़ रहा है!
अरविंद पांडेय बाहर लालटेन जल रही है…जो छज्जे पर लगे हुक के सहारे टांग दी गई है। रोशनी इतनी ही
‘जनता की राजधानी’, ये लड़ाई इतनी आसान भी नहीं
पुरुषोत्तम असनोड़ा उत्तराखण्ड की ‘जनता की राजधानी’ के नाम से विख्यात गैरसैंण में 2 नवम्बर से आयोजित विधान सभा सत्र
इस ‘घाव’ को अब पक ही जाने दें!
सचिन कुमार जैन मैं दिल से चाहता हूँ कि बिहार में उनकी जबरदस्त जीत (विजय नहीं) हो। मैं चाहता हूँ कि
चुनावी महाभारत ‘बेईमान’… फिर भी नेताजी ‘अच्छे आदमी’ !
पुष्यमित्र “हमारे यहां के चुनावी माहौल के बारे में क्या जानना है? यह बात तो लगभग जग-जाहिर है कि हम
सुनपेड की ‘दबंग कथा’ पर मीडिया से ‘दबंग’ सवाल
धीरेंद्र पुंडीर हर घटना एक दम LIVE। आंखों के सामने। सच का सच। दूध का दूध, पानी का पानी। शीशे
सांसद से ज्यादा कड़ी शर्तें पंचायत चुनाव में क्यों ?
पवन शर्मा भारत में ग्राम पंचायतें ही लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी होती हैं। देश की बहुसंख्यक जनता का अपने दैनिक जीवन में ग्राम
ये प्रतिरोध की संस्कृति को सलाम करने का वक़्त है
प्रियदर्शन एक खूंखार, लथपथ समय में गलत के विरोध की हर पहल स्वागत योग्य है। जो इस पर सवाल उठाते हैं