सत्येंद्र कुमार यादव साइकिल बड़ी काम की सवारी है। गांव, कस्बों और छोटे शहरों में गेहूं पिसवाने, धान कुटवाने से
Category: मेरा गांव, मेरा देश
इस तरह रहेगी मानवता, कब तक मनुष्य से डरी हुई ?
कीर्ति दीक्षित काश हे मजदूर! तुम भी असहिष्णु हो जाते, हे किसान! तुम भी असहिष्णु हो जाते। आकुल अन्तर की
हड़ताल के 35 दिन, सर्राफ़ा कारोबार में हाहाकार क्यों?
पशुपति शर्मा शुभाशीष दे। गीता ज्वैलर्स के प्रोपराइटर। गाजियाबाद के वसुंधरा में कमल ढाबे के सामने इनकी ज्वैलरी की छोटी
न्यूक्लियर प्लांट के ‘भयावह’ सच को ‘लीक’ करने की अंतहीन सज़ा
कुछ दिन पहले 11 मार्च को गुजरात में मौजूद काकरापार न्यूक्लियर प्लांट में लीकेज की ख़बर आई थी लेकिन इस
दिव्यांगों को समझने की ‘दिव्य दृष्टि’ नदारद है…
विनोद कुमार मिश्र साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र संघ में विकलांगों के अधिकार आधारित व्यवस्था के निर्माण हेतु जब घोषणा पत्र
देश की राजधानी में किसानों का मेला
अरुण यादव दिल्ली में कृषि मेला। राजधानी का ताना-बाना खेत-खलिहान वाला नहीं है, लेकिन पिछले हफ्ते देश के सबसे बड़े
गांव वालों ने लौटाईं अस्पताल की ‘सांसें’
पुष्यमित्र यह उन हौसले वाले ग्रामीणों की कथा है, जिन्होंने हाईकोर्ट से लड़ कर अपने गांव के बंद पड़े अस्पताल
गांधी के ग्राम-स्वराज को साकार करता गांव
शिवाजी राय चमचमाती गलियां, रात को हर चौक-चौराहे पर जलते लैंप पोस्ट, सुबह के वक़्त गलियों में साफ-सफाई करते बच्चे,
‘सागर’ की गहराई तो समझो साहब !
अरुण यादव पिछले कुछ दिनों से आशीष सागर दीक्षित का फेसबुल वॉल नहीं देख पाया था, लेकिन जब बदलाव पर
कर्जदार हम भी, कर्जदार तुम भी… बस किस्मत जुदा-जुदा है!
धीरेंद्र पुंडीर दस साल का बच्चा था। गांव में जाना था। एक जीप कॉपरेटिव डिपार्टमेंट की थी। उसमें बैठा हुआ