सत्येंद्र कुमार तेरे शहर से तो कहीं अच्छा है मेरा गांव। चमक रहा है, दमक रहा है, महक रहा
Category: गांव की गलियां
ओ शहर, गांव से बड़े भय के साथ लौटता हूं
अमित शर्मा अब यहां की धूल में पहले-सी वो महक नहीं। अब यहां के ‘राम-राम’ वाले संबोधन में पहले-सा अपनापन