तीन अगस्त 2016, शाम छह बजे। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में विजय त्रिवेदी की अटल बिहारी वाजपेयी पर लिखी जीवनी ‘हार नहीं मानूंगा’ का लोकार्पण और फिर एक जबरदस्त पैनल डिस्कशन। गृहमंत्री राजनाथ सिंह पुस्तक का लोकार्पण करेंगे। इसके बाद ‘आज के दौर में वाजपेयी’ विषय पर एक परिचर्चा भी रखी गई है। इस परिचर्चा में मुख्य वक्ता के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, चिंतक और विचारक गोविन्दाचार्य, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और समता पार्टी से लंबे वक्त तक जुड़ी रहीं जया जेटली अपने विचार रखेंगे।
विजय त्रिवेदी की ये किताब हार्पर कॉलिन्स ने प्रकाशित की है। पुस्तक का शीर्षक ‘हार नहीं मानूंगा’ पहली नज़र में किसी सियासी शख्सियत पर लिखी पुस्तक की बजाय एक कवि मन की पड़ताल का एहसास दे जाता है। विजय त्रिवेदी ने एक राजनेता और कवि का दुर्लभ संतुलन साधने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को कितनी शिद्दत से किताब में पकड़ा और बयां किया है, इसको लेकर एक दिलचस्पी जरूर रहेगी।
विजय त्रिवेदी की पुस्तक का लोकार्पण 3 अगस्त को
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वाजपेयी की कविता – जंग ना होने देंगें को, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कब और कहां और क्यों पढ़ा, इस सवाल का जवाब पुस्तक में ही मिलेगा।
भारत–पाकिस्तान पड़ोसी,साथ –साथ रहना है,
प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,
तीन बार लड़ चुके लड़ाई, कितना मंहगा सौदा।
रूसी बम हो या अमेरिकी, ख़ून एक बहना है।
जो हम पर गुज़री, बच्चों के संग न होने देंगे। जंग ना होने देंगें।
विजय त्रिवेदी ने फेसबुक और ट्वीटर पर ऐसे ही कुछ जुमलों के साथ पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में सम्मिलित होने का न्योता भी भेजा है। बहरहाल, विजय त्रिवेदी की लिए ये कविताई इतनी आसान भी नहीं रही होगी। क्योंकि ये पुस्तक एक ऐसे वक्त में आ रही है जब बीजेपी के शासन के दो युगों – ‘अटल-आडवाणी’ युग और ‘मोदी-शाह’ युग को लेकर तुलनात्मक परिचर्चाएं जारी हैं। क्या पुस्तक ऐसे द्वंद्व को लेकर भी पाठकों को कुछ मूलभूत जवाब दे पाएगी?
विजय त्रिवेदी ने सियासी गलियारों में लंबा वक़्त तो गुजारा लेकिन कभी किसी एक विचारधारा को अपने पत्रकार मन पर हावी नहीं होने दिया। पूरी शालीनता और विनम्रता के साथ वो तमाम सवाल राजनेताओं से कर जाते हैं, जो जनता के मन में उथल-पुथल मचाते हैं। वो शख्सियत को बारीकियों में जाकर विश्लेषित करने की क्षमता रखते हैं। वो कबीर की तरह तंज कसने का माद्दा रखते हैं। तुलसी की तरह देश में बनते-बिगड़ते ‘राम-राज्य’ की प्रक्रिया को समझने और उसे विश्लेषित करने का कौशल भी उनके पास है। कबीर और तुलसी का कैसा सामंजस्य ‘हार नहीं मानूंगा’ में उन्होंने मुमकिन किया है, ये सब तो अब पाठकों को ही तय करना है।
देश के सबसे लोकप्रिय नेता का तमगा जिन अटल बिहारी वाजपेयी के नाम है, जिस प्रखर वक्ता को विरोधियों और समर्थकों- दोनों ने बड़े सम्मान के साथ सुना और सराहा उनके जीवन के किस्सों के लिए कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक हसीन शाम तो गुजारनी ही होगी।