‘कमल’ पर आसीन ‘मलिन मणि’ का क्या करोगे ‘साहब’

‘कमल’ पर आसीन ‘मलिन मणि’ का क्या करोगे ‘साहब’

उर्मिलेश

भारतीय जनता पार्टी में एक नहीं, अनेक ‘अय्यर’ हैं, उनसे ज्यादा अमर्यादित और असयंमित शब्द निकालने वाले! उन्हें अपशब्दों का उस्ताद भी कह सकते हैं। उनके शब्द इसके ‘साक्षी’ हैं। यूपी हो या बिहार, मध्य प्रदेश हो या गुजरात, सिर्फ कुछ पुरूष-राजनेता ही नहीं, कई महिला-नेताओं ने भी अपशब्दों की बौछार करके सबको हैरत मे डाल दिया। दिल्ली के चुनाव के दौरान एक ‘साध्वी’ केंद्रीय राज्यमंत्री ने सभा मंच से ऐसे शब्द उच्चरित किये कि रोजाना शाम को बहस के नाम पर शब्दों का दंगल रचाने वाले न्यूज चैनल भी भाजपा नेत्री के शब्दों पर ‘बीप’ लगाते रहे। इसी तरह यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात के अनेक भाजपा नेता अपशब्दों की अनियंत्रित बौछार के लिए कुख्यात हैं। इनमें सिर्फ एक नेता पर पार्टी ने दिखावे की कार्रवाई की क्योंकि उन्होंने देश की सबसे प्रमुख दलित नेता के खिलाफ अभद्र और गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल किया था। यूपी चुनाव में पार्टी ने उसी नेता की पत्नी को न केवल टिकट दिया अपितु जीतने के बाद मंत्री भी बना दिया। राजनीति में अपशब्दों के अनियंत्रित प्रयोग के लिये कुख्यात कई लोग विधायी सदनों के सदस्य, सरकारों में मंत्री, शीर्ष नेता या संगठन में पदाधिकारी हैं। आमतौर पर अपने नेताओं की ऐसी हरकतों के लिये भाजपा अपनी मुख्य प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस की तरह कटघरे मे नहीं खड़ी की जाती!
भाजपा अपने विरोधियों को घेरने का गुर किसी भी अन्य दल से ज्यादा बेहतर जानती है। और भाजपा में भी यह महारथ सबसे ज्यादा गुजरात के भाजपा नेताओं को हासिल है। वे अपनी विरोधी पार्टी के किसी भी नेता या समर्थक की किसी भी अटपटे या आपत्तिजनक शब्द पर इतना बड़ा सियासी बवाल खड़ा कर देते हैं कि अवाम के बड़े मुद्दे दब जाते हैं और इसी तरह के गैर-मुद्दे अहम् बनकर चुनावी-परिदृश्य पर छा जाते हैं। इसलिये हाल के बरसों में भाजपा के रणीतिकारों को हर चुनाव में ऐसे ‘एक अय्यर’ की तलाश रहती है, जो कुछ अटपटा या आपत्तिजनक बोले ताकि वे उसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर समाज और जनता के वास्तविक बड़े मुद्दों से अपना पिंड छुड़ा लें। इस बार गुजरात के चुनाव में फिर मणिशंकर अय्यर के अटपटे शब्द का इसी उद्देश्य से इस्तेमाल हो रहा है।
विपक्षी खेमे से आये ऐसे अटपटे शब्दों को मोदी युग की भाजपा अपने लिये कीमती उपहार मानकर चलती है। इस वक्त गुजरात में भाजपा के चुनाव अभियान में अय्यर का बयान सबसे अहम् बन गया है। इसकी आड़ में भाजपा वहां के पाटीदारों के सवालों, किसानों, खासकर कपास उत्पादकों की मांगों और जीएसटी से उखड़े व्यापारियों की नाराजगी से लोगोंं का ध्यान हटाने की पुरजोर कोशिश करती दिखी। गुजरात में शनिवार को पहले चरण के मतदान हुआ लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रवार को राज्य में ऐसे कई स्थानों पर कार्यक्रम था, जहां मतदान दूसरे चरण में होना है। लेकिन टीवी पर उनके भाषण का लाइव प्रसारण वहां भी देखा जा रहा था, जहां शनिवार को मतदान हुआ। प्रधानमंत्री ने बनासकांठा और कुछ अन्य जगहों के अपने कार्यक्रमों में अय्यर महाशय के अपशब्दों को अहम् मुद्दा बनाया। भाजपा के सारे नेता इसी तर्ज पर अभियान चलाते नजर आये ।कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शुक्रवार को कई स्थानों पर आयोजित रैली में इस मुद्दे पर सफाई देते नजर आये। उनकी दलील थी कि कांग्रेस अय्यर को पार्टी से बर्खास्त कर चुकी है फिर भी भाजपा मुद्दा बनाने में जुटी हुई है, जबकि भाजपा नेता ही सबसे ज्यादा अपशब्दों का प्रयोग करते हैं।
‘अय्यर उवाच्’ गुजरात में भाजपा को एक ‘मनचाहा सियासी उपहार’ सा लग रहा है। देखना है, भाजपा इस पर लोगों में कितना भावनात्मक-उभार पैदा कर पाती है? यह महज संयोग नहीं कि सत्ताधारी पार्टी विधान सभा के चुनाव में गुजरात के ‘विकास माडल’ पर नहीं, लोगों का ध्यान मुगल, पाकिस्तान, खिलजी, पद्मावती, औरंगजेब और तरह-तरह के न जाने कितने जुमलों की तरफ आकृष्ट करने में जुटी है। देखना होगा, लोग अपने सवालों को तरजीह देते हैं या भावनात्मक मुद्दों में बहते हैं! चुनावी कौशल और प्रचार अभियान के मामले में भाजपा ज्यादा प्रभावशाली नजर आ रही है। लेकिन पाटीदारों के एक हिस्से की नाराजगी उसके लिये अब भी बड़ा सिरदर्द है। गुजरात का चुनाव इस बार किसी के लिये भी एकतरफा नहीं रह गया है। इसलिये कांटे की लड़ाई में तमाम लटके-झटके और जुमले उछल रहे हैं।


उर्मिलेश/ वरिष्ठ पत्रकार और लेखक । पत्रकारिता में करीब तीन दशक से ज्यादा का अनुभव। ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘हिन्दुस्तान’ में लंबे समय तक जुड़े रहे। राज्यसभा टीवी के कार्यकारी संपादक रह चुके हैं। दिन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता करने में मशगुल।