कविता कृष्णन
बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार कांड में उच्च न्यायालय ने 11 दोषियों की उम्रक़ैद की सज़ा बरक़रार रखी। यह फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक है कि इसने गुजरात पुलिस के पांच लोगों को भी दोषी करार दिया – शायद पहली बार किसी दंगों वाले कांड में पुलिस कर्मियों को सज़ा हुई है। इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत होना चाहिए।
बिलकिस बानो ने खुद इस फैसले का स्वागत किया है। उनका बयान पढ़ने लायक है। उन्होंने कहा – “मेरे साथी भारतीय नागरिकों, मेरे गुजराती साथियों, मुस्लिम साथियों और विश्व की सभी महिलाओं से मैं कहना चाहती हूं कि माननीय न्यायाधीशों की ओर से दिए गए इस फैसले ने न्यायपालिका पर मेरा भरोसा बरक़रार रखा है। इस फैसले ने एक बार फिर मेरी सच्चाई को दोषमुक्त साबित किया है। एक इंसान, एक नागरिक, महिला और मां के तौर पर मेरे अधिकारों को बहुत ही क्रूरता के साथ कुचला गया था, लेकिन मैंने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा किया। अब मेरा परिवार और मैं ये महसूस कर रहे हैं कि अब हम फिर से बिना डर के ज़िंदगी शुरू कर सकते हैं।”
आपके बोल और वहशियत का नंगापन
सौरव शर्मा के फेसबुक वॉल से
दंगा फसाद हो या कोई और अपराध , उसकी असली वहशियत कहीं खो जाती है अखबार और टीवी की रिपोर्टिंग में। लोगों को एहसास नही हो पाता कि आखिर अपराध था कितना बड़ा। बिलकिस बानो का केस ऐसा ही है। 19 साल की बिलकिस 17 लोगों के साथ एक ट्रक में दंगाइयों से बच कर भाग रही थी गुजरात में। एक वहशी भीड़ ने ट्रक रोक कर, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। वो 5 माह की गर्भवती थी। उसकी 2 साल की बेटी साथ थी। इनमें से 14 लोगों को इन राक्षसों ने मार डाला। उस 2 साल की बच्ची को भी, उसका सर पटक कर।
हम अपने धर्म उन्माद, या जाति के गौरव में कई बार औरों को गलत या नीचा दिखाने की बातें कह जाते हैं, शायद बस अपने ड्राइंग रूम में ही, या दोस्तों के सामने। लेकिन जब ये आग समाज में फैलती है तो कैसी वहशियत लाती है, ज़रा बोलने से पहले सोचियेगा। किसी और का ख्याल करके न सही तो एक 2 साल के बच्चे का ही सही।
(सौरव शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, इंडिया टीवी के प्रमुख एंकरों में एक)
न्याय का मतलब प्रतिशोध नहीं है – सच्चाई के प्रति जवाबदेही है। बिलकिस बानो का संयमित बयान इस बात को समझता है। इसलिए बिलकिस बानो ने कहा है कि इस फैसले ने मेरी सच्चाई को खरा पाया है , स्थापित किया है। जिन पुलिस वालों ने सच्चाई को झुठलाने की कोशिश की, एक पूरे समुदाय के जीवन को नष्ट करने वालों को बचाने के लिए सबूत नष्ट किये, उन्हें सजा मिली है। बिलकिस बानो के इन शब्दों पर गौर किया जाना चाहिए।
मौत की सज़ा की मांग यहां हमें भटकाने, गुमराह करने वाली मांग है। अंग्रेज़ी में इसे red herring कहते हैं। हमें यह उम्मीद करनी चाहिए, मांग करनी चाहिये कि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को बरकरार रखें, न कि सीबीआई फिर मौत की सज़ा मांगे। हमें मांग करनी चाहिए कि राज्य प्रायोजित दंगों के हर मामले में इस फैसले की तर्ज पर न सिर्फ दोषियों को सज़ा हो बल्कि राज्य तंत्र – पुलिस प्रशासन – के उन तमाम लोगों को भी सज़ा हो जो पीड़ितों के बजाय दोषियों का साथ देते हैं।
और हमें यह याद करना और कराना चाहिए कि पुलिस वालों के दोषी पाए जाने के मायने क्या हैं। पुलिस वालों ने किसके इशारे पर सबूत नष्ट किये? आखिर गुजरात पुलिस तो गुजरात के गृह मंत्रालय के तहत ही तो है?
कविता कृष्णन। ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमन्स एसोसिएशन की सचिव। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा। भिलाई की रहने वाली कविता कृष्णन का इन दिनों दिल्ली में प्रवास।